130

4.1.130

चौपाई
ಬಸಹಿಂ ನಗರ ಸುಂದರ ನರ ನಾರೀ. ಜನು ಬಹು ಮನಸಿಜ ರತಿ ತನುಧಾರೀ..
ತೇಹಿಂ ಪುರ ಬಸಇ ಸೀಲನಿಧಿ ರಾಜಾ. ಅಗನಿತ ಹಯ ಗಯ ಸೇನ ಸಮಾಜಾ..
ಸತ ಸುರೇಸ ಸಮ ಬಿಭವ ಬಿಲಾಸಾ. ರೂಪ ತೇಜ ಬಲ ನೀತಿ ನಿವಾಸಾ..
ಬಿಸ್ವಮೋಹನೀ ತಾಸು ಕುಮಾರೀ. ಶ್ರೀ ಬಿಮೋಹ ಜಿಸು ರೂಪು ನಿಹಾರೀ..
ಸೋಇ ಹರಿಮಾಯಾ ಸಬ ಗುನ ಖಾನೀ. ಸೋಭಾ ತಾಸು ಕಿ ಜಾಇ ಬಖಾನೀ..
ಕರಇ ಸ್ವಯಂಬರ ಸೋ ನೃಪಬಾಲಾ. ಆಏ ತಹಅಗನಿತ ಮಹಿಪಾಲಾ..
ಮುನಿ ಕೌತುಕೀ ನಗರ ತೇಹಿಂ ಗಯಊ. ಪುರಬಾಸಿನ್ಹ ಸಬ ಪೂಛತ ಭಯಊ..
ಸುನಿ ಸಬ ಚರಿತ ಭೂಪಗೃಹಆಏ. ಕರಿ ಪೂಜಾ ನೃಪ ಮುನಿ ಬೈಠಾಏ..

3.7.130

चौपाई
યહ સુભ સંભુ ઉમા સંબાદા। સુખ સંપાદન સમન બિષાદા।।
ભવ ભંજન ગંજન સંદેહા। જન રંજન સજ્જન પ્રિય એહા।।
રામ ઉપાસક જે જગ માહીં। એહિ સમ પ્રિય તિન્હ કે કછુ નાહીં।।
રઘુપતિ કૃપાજથામતિ ગાવા। મૈં યહ પાવન ચરિત સુહાવા।।
એહિં કલિકાલ ન સાધન દૂજા। જોગ જગ્ય જપ તપ બ્રત પૂજા।।
રામહિ સુમિરિઅ ગાઇઅ રામહિ। સંતત સુનિઅ રામ ગુન ગ્રામહિ।।
જાસુ પતિત પાવન બડ઼ બાના। ગાવહિં કબિ શ્રુતિ સંત પુરાના।।
તાહિ ભજહિ મન તજિ કુટિલાઈ। રામ ભજેં ગતિ કેહિં નહિં પાઈ।।

3.2.130

चौपाई
કામ કોહ મદ માન ન મોહા। લોભ ન છોભ ન રાગ ન દ્રોહા।।
જિન્હ કેં કપટ દંભ નહિં માયા। તિન્હ કેં હૃદય બસહુ રઘુરાયા।।
સબ કે પ્રિય સબ કે હિતકારી। દુખ સુખ સરિસ પ્રસંસા ગારી।।
કહહિં સત્ય પ્રિય બચન બિચારી। જાગત સોવત સરન તુમ્હારી।।
તુમ્હહિ છાડ઼િ ગતિ દૂસરિ નાહીં। રામ બસહુ તિન્હ કે મન માહીં।।
જનની સમ જાનહિં પરનારી। ધનુ પરાવ બિષ તેં બિષ ભારી।।
જે હરષહિં પર સંપતિ દેખી। દુખિત હોહિં પર બિપતિ બિસેષી।।
જિન્હહિ રામ તુમ્હ પ્રાનપિઆરે। તિન્હ કે મન સુભ સદન તુમ્હારે।।

3.1.130

चौपाई
બસહિં નગર સુંદર નર નારી। જનુ બહુ મનસિજ રતિ તનુધારી।।
તેહિં પુર બસઇ સીલનિધિ રાજા। અગનિત હય ગય સેન સમાજા।।
સત સુરેસ સમ બિભવ બિલાસા। રૂપ તેજ બલ નીતિ નિવાસા।।
બિસ્વમોહની તાસુ કુમારી। શ્રી બિમોહ જિસુ રૂપુ નિહારી।।
સોઇ હરિમાયા સબ ગુન ખાની। સોભા તાસુ કિ જાઇ બખાની।।
કરઇ સ્વયંબર સો નૃપબાલા। આએ તહઅગનિત મહિપાલા।।
મુનિ કૌતુકી નગર તેહિં ગયઊ। પુરબાસિન્હ સબ પૂછત ભયઊ।।
સુનિ સબ ચરિત ભૂપગૃહઆએ। કરિ પૂજા નૃપ મુનિ બૈઠાએ।।

2.7.130

चौपाई
যহ সুভ সংভু উমা সংবাদা৷ সুখ সংপাদন সমন বিষাদা৷৷
ভব ভংজন গংজন সংদেহা৷ জন রংজন সজ্জন প্রিয এহা৷৷
রাম উপাসক জে জগ মাহীং৷ এহি সম প্রিয তিন্হ কে কছু নাহীং৷৷
রঘুপতি কৃপাজথামতি গাবা৷ মৈং যহ পাবন চরিত সুহাবা৷৷
এহিং কলিকাল ন সাধন দূজা৷ জোগ জগ্য জপ তপ ব্রত পূজা৷৷
রামহি সুমিরিঅ গাইঅ রামহি৷ সংতত সুনিঅ রাম গুন গ্রামহি৷৷
জাসু পতিত পাবন বড় বানা৷ গাবহিং কবি শ্রুতি সংত পুরানা৷৷
তাহি ভজহি মন তজি কুটিলাঈ৷ রাম ভজেং গতি কেহিং নহিং পাঈ৷৷

2.2.130

चौपाई
কাম কোহ মদ মান ন মোহা৷ লোভ ন ছোভ ন রাগ ন দ্রোহা৷৷
জিন্হ কেং কপট দংভ নহিং মাযা৷ তিন্হ কেং হৃদয বসহু রঘুরাযা৷৷
সব কে প্রিয সব কে হিতকারী৷ দুখ সুখ সরিস প্রসংসা গারী৷৷
কহহিং সত্য প্রিয বচন বিচারী৷ জাগত সোবত সরন তুম্হারী৷৷
তুম্হহি ছাড়ি গতি দূসরি নাহীং৷ রাম বসহু তিন্হ কে মন মাহীং৷৷
জননী সম জানহিং পরনারী৷ ধনু পরাব বিষ তেং বিষ ভারী৷৷
জে হরষহিং পর সংপতি দেখী৷ দুখিত হোহিং পর বিপতি বিসেষী৷৷
জিন্হহি রাম তুম্হ প্রানপিআরে৷ তিন্হ কে মন সুভ সদন তুম্হারে৷৷

2.1.130

चौपाई
বসহিং নগর সুংদর নর নারী৷ জনু বহু মনসিজ রতি তনুধারী৷৷
তেহিং পুর বসই সীলনিধি রাজা৷ অগনিত হয গয সেন সমাজা৷৷
সত সুরেস সম বিভব বিলাসা৷ রূপ তেজ বল নীতি নিবাসা৷৷
বিস্বমোহনী তাসু কুমারী৷ শ্রী বিমোহ জিসু রূপু নিহারী৷৷
সোই হরিমাযা সব গুন খানী৷ সোভা তাসু কি জাই বখানী৷৷
করই স্বযংবর সো নৃপবালা৷ আএ তহঅগনিত মহিপালা৷৷
মুনি কৌতুকী নগর তেহিং গযঊ৷ পুরবাসিন্হ সব পূছত ভযঊ৷৷
সুনি সব চরিত ভূপগৃহআএ৷ করি পূজা নৃপ মুনি বৈঠাএ৷৷

1.7.130

चौपाई
यह सुभ संभु उमा संबादा। सुख संपादन समन बिषादा।।
भव भंजन गंजन संदेहा। जन रंजन सज्जन प्रिय एहा।।
राम उपासक जे जग माहीं। एहि सम प्रिय तिन्ह के कछु नाहीं।।
रघुपति कृपाँ जथामति गावा। मैं यह पावन चरित सुहावा।।
एहिं कलिकाल न साधन दूजा। जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा।।
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि। संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि।।
जासु पतित पावन बड़ बाना। गावहिं कबि श्रुति संत पुराना।।
ताहि भजहि मन तजि कुटिलाई। राम भजें गति केहिं नहिं पाई।।

छंद

1.2.130

चौपाई
काम कोह मद मान न मोहा। लोभ न छोभ न राग न द्रोहा।।
जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया। तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया।।
सब के प्रिय सब के हितकारी। दुख सुख सरिस प्रसंसा गारी।।
कहहिं सत्य प्रिय बचन बिचारी। जागत सोवत सरन तुम्हारी।।
तुम्हहि छाड़ि गति दूसरि नाहीं। राम बसहु तिन्ह के मन माहीं।।
जननी सम जानहिं परनारी। धनु पराव बिष तें बिष भारी।।
जे हरषहिं पर संपति देखी। दुखित होहिं पर बिपति बिसेषी।।
जिन्हहि राम तुम्ह प्रानपिआरे। तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे।।

1.1.130

चौपाई
बसहिं नगर सुंदर नर नारी। जनु बहु मनसिज रति तनुधारी।।
तेहिं पुर बसइ सीलनिधि राजा। अगनित हय गय सेन समाजा।।
सत सुरेस सम बिभव बिलासा। रूप तेज बल नीति निवासा।।
बिस्वमोहनी तासु कुमारी। श्री बिमोह जिसु रूपु निहारी।।
सोइ हरिमाया सब गुन खानी। सोभा तासु कि जाइ बखानी।।
करइ स्वयंबर सो नृपबाला। आए तहँ अगनित महिपाला।।
मुनि कौतुकी नगर तेहिं गयऊ। पुरबासिन्ह सब पूछत भयऊ।।
सुनि सब चरित भूपगृहँ आए। करि पूजा नृप मुनि बैठाए।।

दोहा/सोरठा

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