13

2.3.13

चौपाई
তব রঘুবীর কহা মুনি পাহীং৷ তুম্হ সন প্রভু দুরাব কছু নাহী৷৷
তুম্হ জানহু জেহি কারন আযউ তাতে তাত ন কহি সমুঝাযউ৷
অব সো মংত্র দেহু প্রভু মোহী৷ জেহি প্রকার মারৌং মুনিদ্রোহী৷৷
মুনি মুসকানে সুনি প্রভু বানী৷ পূছেহু নাথ মোহি কা জানী৷৷
তুম্হরেইভজন প্রভাব অঘারী৷ জানউমহিমা কছুক তুম্হারী৷৷
ঊমরি তরু বিসাল তব মাযা৷ ফল ব্রহ্মাংড অনেক নিকাযা৷৷
জীব চরাচর জংতু সমানা৷ ভীতর বসহি ন জানহিং আনা৷৷
তে ফল ভচ্ছক কঠিন করালা৷ তব ভযডরত সদা সোউ কালা৷৷
তে তুম্হ সকল লোকপতি সাঈং৷ পূেহু মোহি মনুজ কী নাঈং৷৷

2.2.13

चौपाई
দীখ মংথরা নগরু বনাবা৷ মংজুল মংগল বাজ বধাবা৷৷
পূছেসি লোগন্হ কাহ উছাহূ৷ রাম তিলকু সুনি ভা উর দাহূ৷৷
করই বিচারু কুবুদ্ধি কুজাতী৷ হোই অকাজু কবনি বিধি রাতী৷৷
দেখি লাগি মধু কুটিল কিরাতী৷ জিমি গবতকই লেউকেহি ভাী৷৷
ভরত মাতু পহিং গই বিলখানী৷ কা অনমনি হসি কহ হি রানী৷৷
ঊতরু দেই ন লেই উসাসূ৷ নারি চরিত করি ঢারই আূ৷৷
হি কহ রানি গালু বড় তোরেং৷ দীন্হ লখন সিখ অস মন মোরেং৷৷
তবহুন বোল চেরি বড়ি পাপিনি৷ ছাড়ই স্বাস কারি জনু সািনি৷৷

2.1.13

चौपाई
সব জানত প্রভু প্রভুতা সোঈ৷ তদপি কহেং বিনু রহা ন কোঈ৷৷
তহাবেদ অস কারন রাখা৷ ভজন প্রভাউ ভাি বহু ভাষা৷৷
এক অনীহ অরূপ অনামা৷ অজ সচ্চিদানংদ পর ধামা৷৷
ব্যাপক বিস্বরূপ ভগবানা৷ তেহিং ধরি দেহ চরিত কৃত নানা৷৷
সো কেবল ভগতন হিত লাগী৷ পরম কৃপাল প্রনত অনুরাগী৷৷
জেহি জন পর মমতা অতি ছোহূ৷ জেহিং করুনা করি কীন্হ ন কোহূ৷৷
গঈ বহোর গরীব নেবাজূ৷ সরল সবল সাহিব রঘুরাজূ৷৷
বুধ বরনহিং হরি জস অস জানী৷ করহি পুনীত সুফল নিজ বানী৷৷
তেহিং বল মৈং রঘুপতি গুন গাথা৷ কহিহউনাই রাম পদ মাথা৷৷

1.7.13


छंद
जय सगुन निर्गुन रूप रूप अनूप भूप सिरोमने।
दसकंधरादि प्रचंड निसिचर प्रबल खल भुज बल हने।।
अवतार नर संसार भार बिभंजि दारुन दुख दहे।
जय प्रनतपाल दयाल प्रभु संजुक्त सक्ति नमामहे।।1।।
तव बिषम माया बस सुरासुर नाग नर अग जग हरे।
भव पंथ भ्रमत अमित दिवस निसि काल कर्म गुननि भरे।।
जे नाथ करि करुना बिलोके त्रिबिधि दुख ते निर्बहे।
भव खेद छेदन दच्छ हम कहुँ रच्छ राम नमामहे।।2।।
जे ग्यान मान बिमत्त तव भव हरनि भक्ति न आदरी।
ते पाइ सुर दुर्लभ पदादपि परत हम देखत हरी।।

1.6.13

चौपाई
देखु बिभीषन दच्छिन आसा। घन घंमड दामिनि बिलासा।।
मधुर मधुर गरजइ घन घोरा। होइ बृष्टि जनि उपल कठोरा।।
कहत बिभीषन सुनहु कृपाला। होइ न तड़ित न बारिद माला।।
लंका सिखर उपर आगारा। तहँ दसकंघर देख अखारा।।
छत्र मेघडंबर सिर धारी। सोइ जनु जलद घटा अति कारी।।
मंदोदरी श्रवन ताटंका। सोइ प्रभु जनु दामिनी दमंका।।
बाजहिं ताल मृदंग अनूपा। सोइ रव मधुर सुनहु सुरभूपा।।
प्रभु मुसुकान समुझि अभिमाना। चाप चढ़ाइ बान संधाना।।

दोहा/सोरठा

1.5.13

चौपाई
तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर।।
चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी।।
जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई।।
सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना।।
रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा।।
लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई।।
श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई। कहि सो प्रगट होति किन भाई।।
तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैंठीं मन बिसमय भयऊ।।
राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की।।

1.4.13

चौपाई
सुंदर बन कुसुमित अति सोभा। गुंजत मधुप निकर मधु लोभा।।
कंद मूल फल पत्र सुहाए। भए बहुत जब ते प्रभु आए ।।
देखि मनोहर सैल अनूपा। रहे तहँ अनुज सहित सुरभूपा।।
मधुकर खग मृग तनु धरि देवा। करहिं सिद्ध मुनि प्रभु कै सेवा।।
मंगलरुप भयउ बन तब ते । कीन्ह निवास रमापति जब ते।।
फटिक सिला अति सुभ्र सुहाई। सुख आसीन तहाँ द्वौ भाई।।
कहत अनुज सन कथा अनेका। भगति बिरति नृपनीति बिबेका।।
बरषा काल मेघ नभ छाए। गरजत लागत परम सुहाए।।

दोहा/सोरठा

1.3.13

चौपाई
तब रघुबीर कहा मुनि पाहीं। तुम्ह सन प्रभु दुराव कछु नाही।।
तुम्ह जानहु जेहि कारन आयउँ। ताते तात न कहि समुझायउँ।।
अब सो मंत्र देहु प्रभु मोही। जेहि प्रकार मारौं मुनिद्रोही।।
मुनि मुसकाने सुनि प्रभु बानी। पूछेहु नाथ मोहि का जानी।।
तुम्हरेइँ भजन प्रभाव अघारी। जानउँ महिमा कछुक तुम्हारी।।
ऊमरि तरु बिसाल तव माया। फल ब्रह्मांड अनेक निकाया।।
जीव चराचर जंतु समाना। भीतर बसहि न जानहिं आना।।
ते फल भच्छक कठिन कराला। तव भयँ डरत सदा सोउ काला।।
ते तुम्ह सकल लोकपति साईं। पूँछेहु मोहि मनुज की नाईं।।

1.2.13

चौपाई
दीख मंथरा नगरु बनावा। मंजुल मंगल बाज बधावा।।
पूछेसि लोगन्ह काह उछाहू। राम तिलकु सुनि भा उर दाहू।।
करइ बिचारु कुबुद्धि कुजाती। होइ अकाजु कवनि बिधि राती।।
देखि लागि मधु कुटिल किराती। जिमि गवँ तकइ लेउँ केहि भाँती।।
भरत मातु पहिं गइ बिलखानी। का अनमनि हसि कह हँसि रानी।।
ऊतरु देइ न लेइ उसासू। नारि चरित करि ढारइ आँसू।।
हँसि कह रानि गालु बड़ तोरें। दीन्ह लखन सिख अस मन मोरें।।
तबहुँ न बोल चेरि बड़ि पापिनि। छाड़इ स्वास कारि जनु साँपिनि।।

1.1.13

चौपाई
सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई।।
तहाँ बेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा।।
एक अनीह अरूप अनामा। अज सच्चिदानंद पर धामा।।
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना। तेहिं धरि देह चरित कृत नाना।।
सो केवल भगतन हित लागी। परम कृपाल प्रनत अनुरागी।।
जेहि जन पर ममता अति छोहू। जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू।।
गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।
बुध बरनहिं हरि जस अस जानी। करहि पुनीत सुफल निज बानी।।
तेहिं बल मैं रघुपति गुन गाथा। कहिहउँ नाइ राम पद माथा।।

Pages

Subscribe to RSS - 13