17

2.3.17

चौपाई
ভগতি জোগ সুনি অতি সুখ পাবা৷ লছিমন প্রভু চরনন্হি সিরু নাবা৷৷
এহি বিধি গএ কছুক দিন বীতী৷ কহত বিরাগ গ্যান গুন নীতী৷৷
সূপনখা রাবন কৈ বহিনী৷ দুষ্ট হৃদয দারুন জস অহিনী৷৷
পংচবটী সো গই এক বারা৷ দেখি বিকল ভই জুগল কুমারা৷৷
ভ্রাতা পিতা পুত্র উরগারী৷ পুরুষ মনোহর নিরখত নারী৷৷
হোই বিকল সক মনহি ন রোকী৷ জিমি রবিমনি দ্রব রবিহি বিলোকী৷৷
রুচির রুপ ধরি প্রভু পহিং জাঈ৷ বোলী বচন বহুত মুসুকাঈ৷৷
তুম্হ সম পুরুষ ন মো সম নারী৷ যহ সোগ বিধি রচা বিচারী৷৷
মম অনুরূপ পুরুষ জগ মাহীং৷ দেখেউখোজি লোক তিহু নাহীং৷৷

2.2.17

चौपाई
সাদর পুনি পুনি পূতি ওহী৷ সবরী গান মৃগী জনু মোহী৷৷
তসি মতি ফিরী অহই জসি ভাবী৷ রহসী চেরি ঘাত জনু ফাবী৷৷
তুম্হ পূহু মৈং কহত ডেরাঊ ধরেউ মোর ঘরফোরী নাঊ৷
সজি প্রতীতি বহুবিধি গঢ়ি ছোলী৷ অবধ সাঢ়সাতী তব বোলী৷৷
প্রিয সিয রামু কহা তুম্হ রানী৷ রামহি তুম্হ প্রিয সো ফুরি বানী৷৷
রহা প্রথম অব তে দিন বীতে৷ সমউ ফিরেং রিপু হোহিং পিংরীতে৷৷
ভানু কমল কুল পোষনিহারা৷ বিনু জল জারি করই সোই ছারা৷৷
জরি তুম্হারি চহ সবতি উখারী৷ রূহু করি উপাউ বর বারী৷৷

2.1.17

चौपाई
প্রনবউপরিজন সহিত বিদেহূ৷ জাহি রাম পদ গূঢ় সনেহূ৷৷
জোগ ভোগ মহরাখেউ গোঈ৷ রাম বিলোকত প্রগটেউ সোঈ৷৷
প্রনবউপ্রথম ভরত কে চরনা৷ জাসু নেম ব্রত জাই ন বরনা৷৷
রাম চরন পংকজ মন জাসূ৷ লুবুধ মধুপ ইব তজই ন পাসূ৷৷
বংদউলছিমন পদ জলজাতা৷ সীতল সুভগ ভগত সুখ দাতা৷৷
রঘুপতি কীরতি বিমল পতাকা৷ দংড সমান ভযউ জস জাকা৷৷
সেষ সহস্ত্রসীস জগ কারন৷ জো অবতরেউ ভূমি ভয টারন৷৷
সদা সো সানুকূল রহ মো পর৷ কৃপাসিংধু সৌমিত্রি গুনাকর৷৷
রিপুসূদন পদ কমল নমামী৷ সূর সুসীল ভরত অনুগামী৷৷
মহাবীর বিনবউহনুমানা৷ রাম জাসু জস আপ বখানা৷৷

1.7.17

चौपाई
सुनि प्रभु बचन मगन सब भए। को हम कहाँ बिसरि तन गए।।
एकटक रहे जोरि कर आगे। सकहिं न कछु कहि अति अनुरागे।।
परम प्रेम तिन्ह कर प्रभु देखा। कहा बिबिध बिधि ग्यान बिसेषा।।
प्रभु सन्मुख कछु कहन न पारहिं। पुनि पुनि चरन सरोज निहारहिं।।
तब प्रभु भूषन बसन मगाए। नाना रंग अनूप सुहाए।।
सुग्रीवहि प्रथमहिं पहिराए। बसन भरत निज हाथ बनाए।।
प्रभु प्रेरित लछिमन पहिराए। लंकापति रघुपति मन भाए।।
अंगद बैठ रहा नहिं डोला। प्रीति देखि प्रभु ताहि न बोला।।

1.6.17

चौपाई
इहाँ प्रात जागे रघुराई। पूछा मत सब सचिव बोलाई।।
कहहु बेगि का करिअ उपाई। जामवंत कह पद सिरु नाई।।
सुनु सर्बग्य सकल उर बासी। बुधि बल तेज धर्म गुन रासी।।
मंत्र कहउँ निज मति अनुसारा। दूत पठाइअ बालिकुमारा।।
नीक मंत्र सब के मन माना। अंगद सन कह कृपानिधाना।।
बालितनय बुधि बल गुन धामा। लंका जाहु तात मम कामा।।
बहुत बुझाइ तुम्हहि का कहऊँ। परम चतुर मैं जानत अहऊँ।।
काजु हमार तासु हित होई। रिपु सन करेहु बतकही सोई।।

दोहा/सोरठा

1.5.17

चौपाई
मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी।।
आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना।।
अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू।।
करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना।।
बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा।।
अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता।।
सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लागि देखि सुंदर फल रूखा।।
सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी। परम सुभट रजनीचर भारी।।
तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं। जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं।।

1.4.17

चौपाई
सुखी मीन जे नीर अगाधा। जिमि हरि सरन न एकउ बाधा।।
फूलें कमल सोह सर कैसा। निर्गुन ब्रम्ह सगुन भएँ जैसा।।
गुंजत मधुकर मुखर अनूपा। सुंदर खग रव नाना रूपा।।
चक्रबाक मन दुख निसि पैखी। जिमि दुर्जन पर संपति देखी।।
चातक रटत तृषा अति ओही। जिमि सुख लहइ न संकरद्रोही।।
सरदातप निसि ससि अपहरई। संत दरस जिमि पातक टरई।।
देखि इंदु चकोर समुदाई। चितवतहिं जिमि हरिजन हरि पाई।।
मसक दंस बीते हिम त्रासा। जिमि द्विज द्रोह किएँ कुल नासा।।

दोहा/सोरठा

1.3.17

चौपाई
भगति जोग सुनि अति सुख पावा। लछिमन प्रभु चरनन्हि सिरु नावा।।
एहि बिधि गए कछुक दिन बीती। कहत बिराग ग्यान गुन नीती।।
सूपनखा रावन कै बहिनी। दुष्ट हृदय दारुन जस अहिनी।।
पंचबटी सो गइ एक बारा। देखि बिकल भइ जुगल कुमारा।।
भ्राता पिता पुत्र उरगारी। पुरुष मनोहर निरखत नारी।।
होइ बिकल सक मनहि न रोकी। जिमि रबिमनि द्रव रबिहि बिलोकी।।
रुचिर रुप धरि प्रभु पहिं जाई। बोली बचन बहुत मुसुकाई।।
तुम्ह सम पुरुष न मो सम नारी। यह सँजोग बिधि रचा बिचारी।।
मम अनुरूप पुरुष जग माहीं। देखेउँ खोजि लोक तिहु नाहीं।।

1.2.17

चौपाई
सादर पुनि पुनि पूँछति ओही। सबरी गान मृगी जनु मोही।।
तसि मति फिरी अहइ जसि भाबी। रहसी चेरि घात जनु फाबी।।
तुम्ह पूँछहु मैं कहत डेराऊँ। धरेउ मोर घरफोरी नाऊँ।।
सजि प्रतीति बहुबिधि गढ़ि छोली। अवध साढ़साती तब बोली।।
प्रिय सिय रामु कहा तुम्ह रानी। रामहि तुम्ह प्रिय सो फुरि बानी।।
रहा प्रथम अब ते दिन बीते। समउ फिरें रिपु होहिं पिंरीते।।
भानु कमल कुल पोषनिहारा। बिनु जल जारि करइ सोइ छारा।।
जरि तुम्हारि चह सवति उखारी। रूँधहु करि उपाउ बर बारी।।

1.1.17

चौपाई
प्रनवउँ परिजन सहित बिदेहू। जाहि राम पद गूढ़ सनेहू।।
जोग भोग महँ राखेउ गोई। राम बिलोकत प्रगटेउ सोई।।
प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना। जासु नेम ब्रत जाइ न बरना।।
राम चरन पंकज मन जासू। लुबुध मधुप इव तजइ न पासू।।
बंदउँ लछिमन पद जलजाता। सीतल सुभग भगत सुख दाता।।
रघुपति कीरति बिमल पताका। दंड समान भयउ जस जाका।।
सेष सहस्त्रसीस जग कारन। जो अवतरेउ भूमि भय टारन।।
सदा सो सानुकूल रह मो पर। कृपासिंधु सौमित्रि गुनाकर।।
रिपुसूदन पद कमल नमामी। सूर सुसील भरत अनुगामी।।

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