19

2.3.19

चौपाई
প্রভু বিলোকি সর সকহিং ন ডারী৷ থকিত ভঈ রজনীচর ধারী৷৷
সচিব বোলি বোলে খর দূষন৷ যহ কোউ নৃপবালক নর ভূষন৷৷
নাগ অসুর সুর নর মুনি জেতে৷ দেখে জিতে হতে হম কেতে৷৷
হম ভরি জন্ম সুনহু সব ভাঈ৷ দেখী নহিং অসি সুংদরতাঈ৷৷
জদ্যপি ভগিনী কীন্হ কুরূপা৷ বধ লাযক নহিং পুরুষ অনূপা৷৷
দেহু তুরত নিজ নারি দুরাঈ৷ জীঅত ভবন জাহু দ্বৌ ভাঈ৷৷
মোর কহা তুম্হ তাহি সুনাবহু৷ তাসু বচন সুনি আতুর আবহু৷৷
দূতন্হ কহা রাম সন জাঈ৷ সুনত রাম বোলে মুসকাঈ৷৷
হম ছত্রী মৃগযা বন করহীং৷ তুম্হ সে খল মৃগ খৌজত ফিরহীং৷৷

2.2.19

चौपाई
ভাবী বস প্রতীতি উর আঈ৷ পূ রানি পুনি সপথ দেবাঈ৷৷
কা পূছহুতুম্হ অবহুন জানা৷ নিজ হিত অনহিত পসু পহিচানা৷৷
ভযউ পাখু দিন সজত সমাজূ৷ তুম্হ পাঈ সুধি মোহি সন আজূ৷৷
খাইঅ পহিরিঅ রাজ তুম্হারেং৷ সত্য কহেং নহিং দোষু হমারেং৷৷
জৌং অসত্য কছু কহব বনাঈ৷ তৌ বিধি দেইহি হমহি সজাঈ৷৷
রামহি তিলক কালি জৌং ভযঊ৷ তুম্হ কহুবিপতি বীজু বিধি বযঊ৷৷
রেখ খাই কহউবলু ভাষী৷ ভামিনি ভইহু দূধ কই মাখী৷৷
জৌং সুত সহিত করহু সেবকাঈ৷ তৌ ঘর রহহু ন আন উপাঈ৷৷

2.1.19

चौपाई
বংদউনাম রাম রঘুবর কো৷ হেতু কৃসানু ভানু হিমকর কো৷৷
বিধি হরি হরময বেদ প্রান সো৷ অগুন অনূপম গুন নিধান সো৷৷
মহামংত্র জোই জপত মহেসূ৷ কাসীং মুকুতি হেতু উপদেসূ৷৷
মহিমা জাসু জান গনরাউ৷ প্রথম পূজিঅত নাম প্রভাঊ৷৷
জান আদিকবি নাম প্রতাপূ৷ ভযউ সুদ্ধ করি উলটা জাপূ৷৷
সহস নাম সম সুনি সিব বানী৷ জপি জেঈ পিয সংগ ভবানী৷৷
হরষে হেতু হেরি হর হী কো৷ কিয ভূষন তিয ভূষন তী কো৷৷
নাম প্রভাউ জান সিব নীকো৷ কালকূট ফলু দীন্হ অমী কো৷৷

1.7.19

चौपाई
भरत अनुज सौमित्र समेता। पठवन चले भगत कृत चेता।।
अंगद हृदयँ प्रेम नहिं थोरा। फिरि फिरि चितव राम कीं ओरा।।
बार बार कर दंड प्रनामा। मन अस रहन कहहिं मोहि रामा।।
राम बिलोकनि बोलनि चलनी। सुमिरि सुमिरि सोचत हँसि मिलनी।।
प्रभु रुख देखि बिनय बहु भाषी। चलेउ हृदयँ पद पंकज राखी।।
अति आदर सब कपि पहुँचाए। भाइन्ह सहित भरत पुनि आए।।
तब सुग्रीव चरन गहि नाना। भाँति बिनय कीन्हे हनुमाना।।
दिन दस करि रघुपति पद सेवा। पुनि तव चरन देखिहउँ देवा।।
पुन्य पुंज तुम्ह पवनकुमारा। सेवहु जाइ कृपा आगारा।।

1.6.19

चौपाई
तुरत निसाचर एक पठावा। समाचार रावनहि जनावा।।
सुनत बिहँसि बोला दससीसा। आनहु बोलि कहाँ कर कीसा।।
आयसु पाइ दूत बहु धाए। कपिकुंजरहि बोलि लै आए।।
अंगद दीख दसानन बैंसें। सहित प्रान कज्जलगिरि जैसें।।
भुजा बिटप सिर सृंग समाना। रोमावली लता जनु नाना।।
मुख नासिका नयन अरु काना। गिरि कंदरा खोह अनुमाना।।
गयउ सभाँ मन नेकु न मुरा। बालितनय अतिबल बाँकुरा।।
उठे सभासद कपि कहुँ देखी। रावन उर भा क्रौध बिसेषी।।

दोहा/सोरठा

1.5.19

चौपाई
सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना।।
मारसि जनि सुत बांधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही।।
चला इंद्रजित अतुलित जोधा। बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा।।
कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा।।
अति बिसाल तरु एक उपारा। बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा।।
रहे महाभट ताके संगा। गहि गहि कपि मर्दइ निज अंगा।।
तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा।
मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई।।
उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया। जीति न जाइ प्रभंजन जाया।।

1.4.19

चौपाई
इहाँ पवनसुत हृदयँ बिचारा। राम काजु सुग्रीवँ बिसारा।।
निकट जाइ चरनन्हि सिरु नावा। चारिहु बिधि तेहि कहि समुझावा।।
सुनि सुग्रीवँ परम भय माना। बिषयँ मोर हरि लीन्हेउ ग्याना।।
अब मारुतसुत दूत समूहा। पठवहु जहँ तहँ बानर जूहा।।
कहहु पाख महुँ आव न जोई। मोरें कर ता कर बध होई।।
तब हनुमंत बोलाए दूता। सब कर करि सनमान बहूता।।
भय अरु प्रीति नीति देखाई। चले सकल चरनन्हि सिर नाई।।
एहि अवसर लछिमन पुर आए। क्रोध देखि जहँ तहँ कपि धाए।।

दोहा/सोरठा

1.3.19

चौपाई
प्रभु बिलोकि सर सकहिं न डारी। थकित भई रजनीचर धारी।।
सचिव बोलि बोले खर दूषन। यह कोउ नृपबालक नर भूषन।।
नाग असुर सुर नर मुनि जेते। देखे जिते हते हम केते।।
हम भरि जन्म सुनहु सब भाई। देखी नहिं असि सुंदरताई।।
जद्यपि भगिनी कीन्ह कुरूपा। बध लायक नहिं पुरुष अनूपा।।
देहु तुरत निज नारि दुराई। जीअत भवन जाहु द्वौ भाई।।
मोर कहा तुम्ह ताहि सुनावहु। तासु बचन सुनि आतुर आवहु।।
दूतन्ह कहा राम सन जाई। सुनत राम बोले मुसकाई।।
हम छत्री मृगया बन करहीं। तुम्ह से खल मृग खौजत फिरहीं।।

1.2.19

चौपाई
भावी बस प्रतीति उर आई। पूँछ रानि पुनि सपथ देवाई।।
का पूछहुँ तुम्ह अबहुँ न जाना। निज हित अनहित पसु पहिचाना।।
भयउ पाखु दिन सजत समाजू। तुम्ह पाई सुधि मोहि सन आजू।।
खाइअ पहिरिअ राज तुम्हारें। सत्य कहें नहिं दोषु हमारें।।
जौं असत्य कछु कहब बनाई। तौ बिधि देइहि हमहि सजाई।।
रामहि तिलक कालि जौं भयऊ। तुम्ह कहुँ बिपति बीजु बिधि बयऊ।।
रेख खँचाइ कहउँ बलु भाषी। भामिनि भइहु दूध कइ माखी।।
जौं सुत सहित करहु सेवकाई। तौ घर रहहु न आन उपाई।।

दोहा/सोरठा

1.1.19

चौपाई
बंदउँ नाम राम रघुवर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को।।
बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो।।
महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू।।
महिमा जासु जान गनराउ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ।।
जान आदिकबि नाम प्रतापू। भयउ सुद्ध करि उलटा जापू।।
सहस नाम सम सुनि सिव बानी। जपि जेई पिय संग भवानी।।
हरषे हेतु हेरि हर ही को। किय भूषन तिय भूषन ती को।।
नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।

दोहा/सोरठा

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