1

2.3.1

चौपाई
পুর নর ভরত প্রীতি মৈং গাঈ৷ মতি অনুরূপ অনূপ সুহাঈ৷৷
অব প্রভু চরিত সুনহু অতি পাবন৷ করত জে বন সুর নর মুনি ভাবন৷৷
এক বার চুনি কুসুম সুহাএ৷ নিজ কর ভূষন রাম বনাএ৷৷
সীতহি পহিরাএ প্রভু সাদর৷ বৈঠে ফটিক সিলা পর সুংদর৷৷
সুরপতি সুত ধরি বাযস বেষা৷ সঠ চাহত রঘুপতি বল দেখা৷৷
জিমি পিপীলিকা সাগর থাহা৷ মহা মংদমতি পাবন চাহা৷৷
সীতা চরন চৌংচ হতি ভাগা৷ মূঢ় মংদমতি কারন কাগা৷৷
চলা রুধির রঘুনাযক জানা৷ সীংক ধনুষ সাযক সংধানা৷৷

2.2.1

चौपाई
জব তেং রামু ব্যাহি ঘর আএ৷ নিত নব মংগল মোদ বধাএ৷৷
ভুবন চারিদস ভূধর ভারী৷ সুকৃত মেঘ বরষহি সুখ বারী৷৷
রিধি সিধি সংপতি নদীং সুহাঈ৷ উমগি অবধ অংবুধি কহুআঈ৷৷
মনিগন পুর নর নারি সুজাতী৷ সুচি অমোল সুংদর সব ভাী৷৷
কহি ন জাই কছু নগর বিভূতী৷ জনু এতনিঅ বিরংচি করতূতী৷৷
সব বিধি সব পুর লোগ সুখারী৷ রামচংদ মুখ চংদু নিহারী৷৷
মুদিত মাতু সব সখীং সহেলী৷ ফলিত বিলোকি মনোরথ বেলী৷৷
রাম রূপু গুনসীলু সুভাঊ৷ প্রমুদিত হোই দেখি সুনি রাঊ৷৷

2.1.1

चौपाई
বংদউ গুরু পদ পদুম পরাগা৷ সুরুচি সুবাস সরস অনুরাগা৷৷
অমিয মূরিময চূরন চারূ৷ সমন সকল ভব রুজ পরিবারূ৷৷
সুকৃতি সংভু তন বিমল বিভূতী৷ মংজুল মংগল মোদ প্রসূতী৷৷
জন মন মংজু মুকুর মল হরনী৷ কিএতিলক গুন গন বস করনী৷৷
শ্রীগুর পদ নখ মনি গন জোতী৷ সুমিরত দিব্য দ্রৃষ্টি হিযহোতী৷৷
দলন মোহ তম সো সপ্রকাসূ৷ বড়ে ভাগ উর আবই জাসূ৷৷
উঘরহিং বিমল বিলোচন হী কে৷ মিটহিং দোষ দুখ ভব রজনী কে৷৷
সূঝহিং রাম চরিত মনি মানিক৷ গুপুত প্রগট জহজো জেহি খানিক৷৷

1.7.1

चौपाई
रहेउ एक दिन अवधि अधारा। समुझत मन दुख भयउ अपारा।।
कारन कवन नाथ नहिं आयउ। जानि कुटिल किधौं मोहि बिसरायउ।।
अहह धन्य लछिमन बड़भागी। राम पदारबिंदु अनुरागी।।
कपटी कुटिल मोहि प्रभु चीन्हा। ताते नाथ संग नहिं लीन्हा।।
जौं करनी समुझै प्रभु मोरी। नहिं निस्तार कलप सत कोरी।।
जन अवगुन प्रभु मान न काऊ। दीन बंधु अति मृदुल सुभाऊ।।
मोरि जियँ भरोस दृढ़ सोई। मिलिहहिं राम सगुन सुभ होई।।
बीतें अवधि रहहि जौं प्राना। अधम कवन जग मोहि समाना।।

1.6.1

चौपाई
यह लघु जलधि तरत कति बारा। अस सुनि पुनि कह पवनकुमारा।।
प्रभु प्रताप बड़वानल भारी। सोषेउ प्रथम पयोनिधि बारी।।
तब रिपु नारी रुदन जल धारा। भरेउ बहोरि भयउ तेहिं खारा।।
सुनि अति उकुति पवनसुत केरी। हरषे कपि रघुपति तन हेरी।।
जामवंत बोले दोउ भाई। नल नीलहि सब कथा सुनाई।।
राम प्रताप सुमिरि मन माहीं। करहु सेतु प्रयास कछु नाहीं।।
बोलि लिए कपि निकर बहोरी। सकल सुनहु बिनती कछु मोरी।।
राम चरन पंकज उर धरहू। कौतुक एक भालु कपि करहू।।
धावहु मर्कट बिकट बरूथा। आनहु बिटप गिरिन्ह के जूथा।।

1.5.1

चौपाई
जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए।।
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई।।
जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी।।
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा।।
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।।
बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी।।
जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता।।
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना।।
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रमहारी।।

1.4.1

चौपाई
आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक परवत निअराया।।
तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा।।
अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना।।
धरि बटु रूप देखु तैं जाई। कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई।।
पठए बालि होहिं मन मैला। भागौं तुरत तजौं यह सैला।।
बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ।।
को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा।।
कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी।।
मृदुल मनोहर सुंदर गाता। सहत दुसह बन आतप बाता।।

1.3.1

चौपाई
पुर नर भरत प्रीति मैं गाई। मति अनुरूप अनूप सुहाई।।
अब प्रभु चरित सुनहु अति पावन। करत जे बन सुर नर मुनि भावन।।
एक बार चुनि कुसुम सुहाए। निज कर भूषन राम बनाए।।
सीतहि पहिराए प्रभु सादर। बैठे फटिक सिला पर सुंदर।।
सुरपति सुत धरि बायस बेषा। सठ चाहत रघुपति बल देखा।।
जिमि पिपीलिका सागर थाहा। महा मंदमति पावन चाहा।।
सीता चरन चौंच हति भागा। मूढ़ मंदमति कारन कागा।।
चला रुधिर रघुनायक जाना। सींक धनुष सायक संधाना।।

दोहा/सोरठा

1.2.1

चौपाई
जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए।।
भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहि सुख बारी।।
रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई। उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई।।
मनिगन पुर नर नारि सुजाती। सुचि अमोल सुंदर सब भाँती।।
कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती।।
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी।।
मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली।।
राम रूपु गुनसीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ।।

दोहा/सोरठा

1.1.1

चौपाई
बंदउ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।
अमिय मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू।।
सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती।।
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी।।
श्रीगुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य द्रृष्टि हियँ होती।।
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू।।
उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के।।
सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक।।

दोहा/सोरठा

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