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2.3.21

चौपाई
জব রঘুনাথ সমর রিপু জীতে৷ সুর নর মুনি সব কে ভয বীতে৷৷
তব লছিমন সীতহি লৈ আএ৷ প্রভু পদ পরত হরষি উর লাএ৷
সীতা চিতব স্যাম মৃদু গাতা৷ পরম প্রেম লোচন ন অঘাতা৷৷
পংচবটীং বসি শ্রীরঘুনাযক৷ করত চরিত সুর মুনি সুখদাযক৷৷
ধুআদেখি খরদূষন কেরা৷ জাই সুপনখারাবন প্রেরা৷৷
বোলি বচন ক্রোধ করি ভারী৷ দেস কোস কৈ সুরতি বিসারী৷৷
করসি পান সোবসি দিনু রাতী৷ সুধি নহিং তব সির পর আরাতী৷৷
রাজ নীতি বিনু ধন বিনু ধর্মা৷ হরিহি সমর্পে বিনু সতকর্মা৷৷
বিদ্যা বিনু বিবেক উপজাএ শ্রম ফল পঢ়ে কিএঅরু পাএ৷

2.2.21

चौपाई
নৈহর জনমু ভরব বরু জাই৷ জিঅত ন করবি সবতি সেবকাঈ৷৷
অরি বস দৈউ জিআবত জাহী৷ মরনু নীক তেহি জীবন চাহী৷৷
দীন বচন কহ বহুবিধি রানী৷ সুনি কুবরীং তিযমাযা ঠানী৷৷
অস কস কহহু মানি মন ঊনা৷ সুখু সোহাগু তুম্হ কহুদিন দূনা৷৷
জেহিং রাউর অতি অনভল তাকা৷ সোই পাইহি যহু ফলু পরিপাকা৷৷
জব তেং কুমত সুনা মৈং স্বামিনি৷ ভূখ ন বাসর নীংদ ন জামিনি৷৷
পূেউ গুনিন্হ রেখ তিন্হ খাী৷ ভরত ভুআল হোহিং যহ সাী৷৷
ভামিনি করহু ত কহৌং উপাঊ৷ হৈ তুম্হরীং সেবা বস রাঊ৷৷

2.1.21

चौपाई
সমুঝত সরিস নাম অরু নামী৷ প্রীতি পরসপর প্রভু অনুগামী৷৷
নাম রূপ দুই ঈস উপাধী৷ অকথ অনাদি সুসামুঝি সাধী৷৷
কো বড় ছোট কহত অপরাধূ৷ সুনি গুন ভেদ সমুঝিহহিং সাধূ৷৷
দেখিঅহিং রূপ নাম আধীনা৷ রূপ গ্যান নহিং নাম বিহীনা৷৷
রূপ বিসেষ নাম বিনু জানেং৷ করতল গত ন পরহিং পহিচানেং৷৷
সুমিরিঅ নাম রূপ বিনু দেখেং৷ আবত হৃদযসনেহ বিসেষেং৷৷
নাম রূপ গতি অকথ কহানী৷ সমুঝত সুখদ ন পরতি বখানী৷৷
অগুন সগুন বিচ নাম সুসাখী৷ উভয প্রবোধক চতুর দুভাষী৷৷

1.7.21

चौपाई
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।
चारिउ चरन धर्म जग माहीं। पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं।।
राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परम गति के अधिकारी।।
अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा।।
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना।।
सब निर्दंभ धर्मरत पुनी। नर अरु नारि चतुर सब गुनी।।
सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी।।

1.6.21

चौपाई
रे कपिपोत बोलु संभारी। मूढ़ न जानेहि मोहि सुरारी।।
कहु निज नाम जनक कर भाई। केहि नातें मानिऐ मिताई।।
अंगद नाम बालि कर बेटा। तासों कबहुँ भई ही भेटा।।
अंगद बचन सुनत सकुचाना। रहा बालि बानर मैं जाना।।
अंगद तहीं बालि कर बालक। उपजेहु बंस अनल कुल घालक।।
गर्भ न गयहु ब्यर्थ तुम्ह जायहु। निज मुख तापस दूत कहायहु।।
अब कहु कुसल बालि कहँ अहई। बिहँसि बचन तब अंगद कहई।।
दिन दस गएँ बालि पहिं जाई। बूझेहु कुसल सखा उर लाई।।
राम बिरोध कुसल जसि होई। सो सब तोहि सुनाइहि सोई।।

1.5.21

चौपाई
कह लंकेस कवन तैं कीसा। केहिं के बल घालेहि बन खीसा।।
की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असंक सठ तोही।।
मारे निसिचर केहिं अपराधा। कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा।।
सुन रावन ब्रह्मांड निकाया। पाइ जासु बल बिरचित माया।।
जाकें बल बिरंचि हरि ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा।
जा बल सीस धरत सहसानन। अंडकोस समेत गिरि कानन।।
धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह ते सठन्ह सिखावनु दाता।
हर कोदंड कठिन जेहि भंजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा।।
खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली। बधे सकल अतुलित बलसाली।।

1.4.21

चौपाई
नाइ चरन सिरु कह कर जोरी। नाथ मोहि कछु नाहिन खोरी।।
अतिसय प्रबल देव तब माया। छूटइ राम करहु जौं दाया।।
बिषय बस्य सुर नर मुनि स्वामी। मैं पावँर पसु कपि अति कामी।।
नारि नयन सर जाहि न लागा। घोर क्रोध तम निसि जो जागा।।
लोभ पाँस जेहिं गर न बँधाया। सो नर तुम्ह समान रघुराया।।
यह गुन साधन तें नहिं होई। तुम्हरी कृपाँ पाव कोइ कोई।।
तब रघुपति बोले मुसकाई। तुम्ह प्रिय मोहि भरत जिमि भाई।।
अब सोइ जतनु करहु मन लाई। जेहि बिधि सीता कै सुधि पाई।।

1.3.21

चौपाई
जब रघुनाथ समर रिपु जीते। सुर नर मुनि सब के भय बीते।।
तब लछिमन सीतहि लै आए। प्रभु पद परत हरषि उर लाए।
सीता चितव स्याम मृदु गाता। परम प्रेम लोचन न अघाता।।
पंचवटीं बसि श्रीरघुनायक। करत चरित सुर मुनि सुखदायक।।
धुआँ देखि खरदूषन केरा। जाइ सुपनखाँ रावन प्रेरा।।
बोलि बचन क्रोध करि भारी। देस कोस कै सुरति बिसारी।।
करसि पान सोवसि दिनु राती। सुधि नहिं तव सिर पर आराती।।
राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा। हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा।।
बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ। श्रम फल पढ़े किएँ अरु पाएँ।।

1.2.21

चौपाई
नैहर जनमु भरब बरु जाइ। जिअत न करबि सवति सेवकाई।।
अरि बस दैउ जिआवत जाही। मरनु नीक तेहि जीवन चाही।।
दीन बचन कह बहुबिधि रानी। सुनि कुबरीं तियमाया ठानी।।
अस कस कहहु मानि मन ऊना। सुखु सोहागु तुम्ह कहुँ दिन दूना।।
जेहिं राउर अति अनभल ताका। सोइ पाइहि यहु फलु परिपाका।।
जब तें कुमत सुना मैं स्वामिनि। भूख न बासर नींद न जामिनि।।
पूँछेउ गुनिन्ह रेख तिन्ह खाँची। भरत भुआल होहिं यह साँची।।
भामिनि करहु त कहौं उपाऊ। है तुम्हरीं सेवा बस राऊ।।

दोहा/सोरठा

1.1.21

चौपाई
समुझत सरिस नाम अरु नामी। प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी।।
नाम रूप दुइ ईस उपाधी। अकथ अनादि सुसामुझि साधी।।
को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेद समुझिहहिं साधू।।
देखिअहिं रूप नाम आधीना। रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना।।
रूप बिसेष नाम बिनु जानें। करतल गत न परहिं पहिचानें।।
सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें। आवत हृदयँ सनेह बिसेषें।।
नाम रूप गति अकथ कहानी। समुझत सुखद न परति बखानी।।
अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी। उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी।।

दोहा/सोरठा

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