22

2.3.22

चौपाई
সুনত সভাসদ উঠে অকুলাঈ৷ সমুঝাঈ গহি বাহউঠাঈ৷৷
কহ লংকেস কহসি নিজ বাতা৷ কেংইতব নাসা কান নিপাতা৷৷
অবধ নৃপতি দসরথ কে জাএ৷ পুরুষ সিংঘ বন খেলন আএ৷৷
সমুঝি পরী মোহি উন্হ কৈ করনী৷ রহিত নিসাচর করিহহিং ধরনী৷৷
জিন্হ কর ভুজবল পাই দসানন৷ অভয ভএ বিচরত মুনি কানন৷৷
দেখত বালক কাল সমানা৷ পরম ধীর ধন্বী গুন নানা৷৷
অতুলিত বল প্রতাপ দ্বৌ ভ্রাতা৷ খল বধ রত সুর মুনি সুখদাতা৷৷
সোভাধাম রাম অস নামা৷ তিন্হ কে সংগ নারি এক স্যামা৷৷
রুপ রাসি বিধি নারি সারী৷ রতি সত কোটি তাসু বলিহারী৷৷

2.2.22

चौपाई
কুবরীং করি কবুলী কৈকেঈ৷ কপট ছুরী উর পাহন টেঈ৷৷
লখই ন রানি নিকট দুখু কৈংসে৷ চরই হরিত তিন বলিপসু জৈসেং৷৷
সুনত বাত মৃদু অংত কঠোরী৷ দেতি মনহুমধু মাহুর ঘোরী৷৷
কহই চেরি সুধি অহই কি নাহী৷ স্বামিনি কহিহু কথা মোহি পাহীং৷৷
দুই বরদান ভূপ সন থাতী৷ মাগহু আজু জুড়াবহু ছাতী৷৷
সুতহি রাজু রামহি বনবাসূ৷ দেহু লেহু সব সবতি হুলাসু৷৷
ভূপতি রাম সপথ জব করঈ৷ তব মাগেহু জেহিং বচনু ন টরঈ৷৷
হোই অকাজু আজু নিসি বীতেং৷ বচনু মোর প্রিয মানেহু জী তেং৷৷

2.1.22

चौपाई
নাম জীহজপি জাগহিং জোগী৷ বিরতি বিরংচি প্রপংচ বিযোগী৷৷
ব্রহ্মসুখহি অনুভবহিং অনূপা৷ অকথ অনাময নাম ন রূপা৷৷
জানা চহহিং গূঢ় গতি জেঊ৷ নাম জীহজপি জানহিং তেঊ৷৷
সাধক নাম জপহিং লয লাএ হোহিং সিদ্ধ অনিমাদিক পাএ৷
জপহিং নামু জন আরত ভারী৷ মিটহিং কুসংকট হোহিং সুখারী৷৷
রাম ভগত জগ চারি প্রকারা৷ সুকৃতী চারিউ অনঘ উদারা৷৷
চহূ চতুর কহুনাম অধারা৷ গ্যানী প্রভুহি বিসেষি পিআরা৷৷
চহুজুগ চহুশ্রুতি না প্রভাঊ৷ কলি বিসেষি নহিং আন উপাঊ৷৷

1.7.22

चौपाई
भूमि सप्त सागर मेखला। एक भूप रघुपति कोसला।।
भुअन अनेक रोम प्रति जासू। यह प्रभुता कछु बहुत न तासू।।
सो महिमा समुझत प्रभु केरी। यह बरनत हीनता घनेरी।।
सोउ महिमा खगेस जिन्ह जानी। फिरी एहिं चरित तिन्हहुँ रति मानी।।
सोउ जाने कर फल यह लीला। कहहिं महा मुनिबर दमसीला।।
राम राज कर सुख संपदा। बरनि न सकइ फनीस सारदा।।
सब उदार सब पर उपकारी। बिप्र चरन सेवक नर नारी।।
एकनारि ब्रत रत सब झारी। ते मन बच क्रम पति हितकारी।।

1.6.22

चौपाई
सिव बिरंचि सुर मुनि समुदाई। चाहत जासु चरन सेवकाई।।
तासु दूत होइ हम कुल बोरा। अइसिहुँ मति उर बिहर न तोरा।।
सुनि कठोर बानी कपि केरी। कहत दसानन नयन तरेरी।।
खल तव कठिन बचन सब सहऊँ। नीति धर्म मैं जानत अहऊँ।।
कह कपि धर्मसीलता तोरी। हमहुँ सुनी कृत पर त्रिय चोरी।।
देखी नयन दूत रखवारी। बूड़ि न मरहु धर्म ब्रतधारी।।
कान नाक बिनु भगिनि निहारी। छमा कीन्हि तुम्ह धर्म बिचारी।।
धर्मसीलता तव जग जागी। पावा दरसु हमहुँ बड़भागी।।

दोहा/सोरठा

1.5.22

चौपाई
जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई।।
समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा।।
खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा। कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा।।
सब कें देह परम प्रिय स्वामी। मारहिं मोहि कुमारग गामी।।
जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बाँधेउ तनयँ तुम्हारे।।
मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा। कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा।।
बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन।।
देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी।।

1.4.22

चौपाई
बानर कटक उमा में देखा। सो मूरुख जो करन चह लेखा।।
आइ राम पद नावहिं माथा। निरखि बदनु सब होहिं सनाथा।।
अस कपि एक न सेना माहीं। राम कुसल जेहि पूछी नाहीं।।
यह कछु नहिं प्रभु कइ अधिकाई। बिस्वरूप ब्यापक रघुराई।।
ठाढ़े जहँ तहँ आयसु पाई। कह सुग्रीव सबहि समुझाई।।
राम काजु अरु मोर निहोरा। बानर जूथ जाहु चहुँ ओरा।।
जनकसुता कहुँ खोजहु जाई। मास दिवस महँ आएहु भाई।।
अवधि मेटि जो बिनु सुधि पाएँ। आवइ बनिहि सो मोहि मराएँ।।

दोहा/सोरठा

1.3.22

चौपाई
सुनत सभासद उठे अकुलाई। समुझाई गहि बाहँ उठाई।।
कह लंकेस कहसि निज बाता। केंइँ तव नासा कान निपाता।।
अवध नृपति दसरथ के जाए। पुरुष सिंघ बन खेलन आए।।
समुझि परी मोहि उन्ह कै करनी। रहित निसाचर करिहहिं धरनी।।
जिन्ह कर भुजबल पाइ दसानन। अभय भए बिचरत मुनि कानन।।
देखत बालक काल समाना। परम धीर धन्वी गुन नाना।।
अतुलित बल प्रताप द्वौ भ्राता। खल बध रत सुर मुनि सुखदाता।।
सोभाधाम राम अस नामा। तिन्ह के संग नारि एक स्यामा।।
रुप रासि बिधि नारि सँवारी। रति सत कोटि तासु बलिहारी।।

1.2.22

चौपाई
कुबरीं करि कबुली कैकेई। कपट छुरी उर पाहन टेई।।
लखइ न रानि निकट दुखु कैंसे। चरइ हरित तिन बलिपसु जैसें।।
सुनत बात मृदु अंत कठोरी। देति मनहुँ मधु माहुर घोरी।।
कहइ चेरि सुधि अहइ कि नाही। स्वामिनि कहिहु कथा मोहि पाहीं।।
दुइ बरदान भूप सन थाती। मागहु आजु जुड़ावहु छाती।।
सुतहि राजु रामहि बनवासू। देहु लेहु सब सवति हुलासु।।
भूपति राम सपथ जब करई। तब मागेहु जेहिं बचनु न टरई।।
होइ अकाजु आजु निसि बीतें। बचनु मोर प्रिय मानेहु जी तें।।

दोहा/सोरठा

1.1.22

चौपाई
नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी। बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी।।
ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा। अकथ अनामय नाम न रूपा।।
जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ। नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ।।
साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
राम भगत जग चारि प्रकारा। सुकृती चारिउ अनघ उदारा।।
चहू चतुर कहुँ नाम अधारा। ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा।।
चहुँ जुग चहुँ श्रुति ना प्रभाऊ। कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ।।

दोहा/सोरठा

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