23

2.3.23

चौपाई
সুর নর অসুর নাগ খগ মাহীং৷ মোরে অনুচর কহকোউ নাহীং৷৷
খর দূষন মোহি সম বলবংতা৷ তিন্হহি কো মারই বিনু ভগবংতা৷৷
সুর রংজন ভংজন মহি ভারা৷ জৌং ভগবংত লীন্হ অবতারা৷৷
তৌ মৈ জাই বৈরু হঠি করঊ প্রভু সর প্রান তজেং ভব তরঊ৷
হোইহি ভজনু ন তামস দেহা৷ মন ক্রম বচন মংত্র দৃঢ় এহা৷৷
জৌং নররুপ ভূপসুত কোঊ৷ হরিহউনারি জীতি রন দোঊ৷৷
চলা অকেল জান চঢি তহবা বস মারীচ সিংধু তট জহবা৷
ইহারাম জসি জুগুতি বনাঈ৷ সুনহু উমা সো কথা সুহাঈ৷৷

2.2.23

चौपाई
কুবরিহি রানি প্রানপ্রিয জানী৷ বার বার বড়ি বুদ্ধি বখানী৷৷
তোহি সম হিত ন মোর সংসারা৷ বহে জাত কই ভইসি অধারা৷৷
জৌং বিধি পুরব মনোরথু কালী৷ করৌং তোহি চখ পূতরি আলী৷৷
বহুবিধি চেরিহি আদরু দেঈ৷ কোপভবন গবনি কৈকেঈ৷৷
বিপতি বীজু বরষা রিতু চেরী৷ ভুইভই কুমতি কৈকেঈ কেরী৷৷
পাই কপট জলু অংকুর জামা৷ বর দোউ দল দুখ ফল পরিনামা৷৷
কোপ সমাজু সাজি সবু সোঈ৷ রাজু করত নিজ কুমতি বিগোঈ৷৷
রাউর নগর কোলাহলু হোঈ৷ যহ কুচালি কছু জান ন কোঈ৷৷

2.1.23

चौपाई
অগুন সগুন দুই ব্রহ্ম সরূপা৷ অকথ অগাধ অনাদি অনূপা৷৷
মোরেং মত বড় নামু দুহূ তেং৷ কিএ জেহিং জুগ নিজ বস নিজ বূতেং৷৷
প্রোঢ়ি সুজন জনি জানহিং জন কী৷ কহউপ্রতীতি প্রীতি রুচি মন কী৷৷
একু দারুগত দেখিঅ একূ৷ পাবক সম জুগ ব্রহ্ম বিবেকূ৷৷
উভয অগম জুগ সুগম নাম তেং৷ কহেউনামু বড় ব্রহ্ম রাম তেং৷৷
ব্যাপকু একু ব্রহ্ম অবিনাসী৷ সত চেতন ধন আন রাসী৷৷
অস প্রভু হৃদযঅছত অবিকারী৷ সকল জীব জগ দীন দুখারী৷৷
নাম নিরূপন নাম জতন তেং৷ সোউ প্রগটত জিমি মোল রতন তেং৷৷

1.7.23

चौपाई
फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन। रहहि एक सँग गज पंचानन।।
खग मृग सहज बयरु बिसराई। सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई।।
कूजहिं खग मृग नाना बृंदा। अभय चरहिं बन करहिं अनंदा।।
सीतल सुरभि पवन बह मंदा। गूंजत अलि लै चलि मकरंदा।।
लता बिटप मागें मधु चवहीं। मनभावतो धेनु पय स्त्रवहीं।।
ससि संपन्न सदा रह धरनी। त्रेताँ भइ कृतजुग कै करनी।।
प्रगटीं गिरिन्ह बिबिध मनि खानी। जगदातमा भूप जग जानी।।
सरिता सकल बहहिं बर बारी। सीतल अमल स्वाद सुखकारी।।
सागर निज मरजादाँ रहहीं। डारहिं रत्न तटन्हि नर लहहीं।।

1.6.23

चौपाई
तुम्हरे कटक माझ सुनु अंगद। मो सन भिरिहि कवन जोधा बद।।
तव प्रभु नारि बिरहँ बलहीना। अनुज तासु दुख दुखी मलीना।।
तुम्ह सुग्रीव कूलद्रुम दोऊ। अनुज हमार भीरु अति सोऊ।।
जामवंत मंत्री अति बूढ़ा। सो कि होइ अब समरारूढ़ा।।
सिल्पि कर्म जानहिं नल नीला। है कपि एक महा बलसीला।।
आवा प्रथम नगरु जेंहिं जारा। सुनत बचन कह बालिकुमारा।।
सत्य बचन कहु निसिचर नाहा। साँचेहुँ कीस कीन्ह पुर दाहा।।
रावन नगर अल्प कपि दहई। सुनि अस बचन सत्य को कहई।।
जो अति सुभट सराहेहु रावन। सो सुग्रीव केर लघु धावन।।

1.5.23

चौपाई
राम चरन पंकज उर धरहू। लंका अचल राज तुम्ह करहू।।
रिषि पुलिस्त जसु बिमल मंयका। तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका।।
राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा।।
बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषण भूषित बर नारी।।
राम बिमुख संपति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई।।
सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गए पुनि तबहिं सुखाहीं।।
सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी।।
संकर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही।।

दोहा/सोरठा

1.4.23

चौपाई
सुनहु नील अंगद हनुमाना। जामवंत मतिधीर सुजाना।।
सकल सुभट मिलि दच्छिन जाहू। सीता सुधि पूँछेउ सब काहू।।
मन क्रम बचन सो जतन बिचारेहु। रामचंद्र कर काजु सँवारेहु।।
भानु पीठि सेइअ उर आगी। स्वामिहि सर्ब भाव छल त्यागी।।
तजि माया सेइअ परलोका। मिटहिं सकल भव संभव सोका।।
देह धरे कर यह फलु भाई। भजिअ राम सब काम बिहाई।।
सोइ गुनग्य सोई बड़भागी । जो रघुबीर चरन अनुरागी।।
आयसु मागि चरन सिरु नाई। चले हरषि सुमिरत रघुराई।।
पाछें पवन तनय सिरु नावा। जानि काज प्रभु निकट बोलावा।।

1.3.23

चौपाई
सुर नर असुर नाग खग माहीं। मोरे अनुचर कहँ कोउ नाहीं।।
खर दूषन मोहि सम बलवंता। तिन्हहि को मारइ बिनु भगवंता।।
सुर रंजन भंजन महि भारा। जौं भगवंत लीन्ह अवतारा।।
तौ मै जाइ बैरु हठि करऊँ। प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ।।
होइहि भजनु न तामस देहा। मन क्रम बचन मंत्र दृढ़ एहा।।
जौं नररुप भूपसुत कोऊ। हरिहउँ नारि जीति रन दोऊ।।
चला अकेल जान चढि तहवाँ। बस मारीच सिंधु तट जहवाँ।।
इहाँ राम जसि जुगुति बनाई। सुनहु उमा सो कथा सुहाई।।

दोहा/सोरठा

1.2.23

चौपाई
कुबरिहि रानि प्रानप्रिय जानी। बार बार बड़ि बुद्धि बखानी।।
तोहि सम हित न मोर संसारा। बहे जात कइ भइसि अधारा।।
जौं बिधि पुरब मनोरथु काली। करौं तोहि चख पूतरि आली।।
बहुबिधि चेरिहि आदरु देई। कोपभवन गवनि कैकेई।।
बिपति बीजु बरषा रितु चेरी। भुइँ भइ कुमति कैकेई केरी।।
पाइ कपट जलु अंकुर जामा। बर दोउ दल दुख फल परिनामा।।
कोप समाजु साजि सबु सोई। राजु करत निज कुमति बिगोई।।
राउर नगर कोलाहलु होई। यह कुचालि कछु जान न कोई।।

दोहा/सोरठा

1.1.23

चौपाई
अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा। अकथ अगाध अनादि अनूपा।।
मोरें मत बड़ नामु दुहू तें। किए जेहिं जुग निज बस निज बूतें।।
प्रोढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की। कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की।।
एकु दारुगत देखिअ एकू। पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू।।
उभय अगम जुग सुगम नाम तें। कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें।।
ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी। सत चेतन धन आनँद रासी।।
अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी। सकल जीव जग दीन दुखारी।।
नाम निरूपन नाम जतन तें। सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें।।

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