26

2.3.26

चौपाई
জাহু ভবন কুল কুসল বিচারী৷ সুনত জরা দীন্হিসি বহু গারী৷৷
গুরু জিমি মূঢ় করসি মম বোধা৷ কহু জগ মোহি সমান কো জোধা৷৷
তব মারীচ হৃদযঅনুমানা৷ নবহি বিরোধেং নহিং কল্যানা৷৷
সস্ত্রী মর্মী প্রভু সঠ ধনী৷ বৈদ বংদি কবি ভানস গুনী৷৷
উভয ভাি দেখা নিজ মরনা৷ তব তাকিসি রঘুনাযক সরনা৷৷
উতরু দেত মোহি বধব অভাগেং৷ কস ন মরৌং রঘুপতি সর লাগেং৷৷
অস জিযজানি দসানন সংগা৷ চলা রাম পদ প্রেম অভংগা৷৷
মন অতি হরষ জনাব ন তেহী৷ আজু দেখিহউপরম সনেহী৷৷

2.2.26

चौपाई
অনহিত তোর প্রিযা কেইকীন্হা৷ কেহি দুই সির কেহি জমু চহ লীন্হা৷৷
কহু কেহি রংকহি করৌ নরেসূ৷ কহু কেহি নৃপহি নিকাসৌং দেসূ৷৷
সকউতোর অরি অমরউ মারী৷ কাহ কীট বপুরে নর নারী৷৷
জানসি মোর সুভাউ বরোরূ৷ মনু তব আনন চংদ চকোরূ৷৷
প্রিযা প্রান সুত সরবসু মোরেং৷ পরিজন প্রজা সকল বস তোরেং৷৷
জৌং কছু কহৌ কপটু করি তোহী৷ ভামিনি রাম সপথ সত মোহী৷৷
বিহসি মাগু মনভাবতি বাতা৷ ভূষন সজহি মনোহর গাতা৷৷
ঘরী কুঘরী সমুঝি জিযদেখূ৷ বেগি প্রিযা পরিহরহি কুবেষূ৷৷

2.1.26

चौपाई
নাম প্রসাদ সংভু অবিনাসী৷ সাজু অমংগল মংগল রাসী৷৷
সুক সনকাদি সিদ্ধ মুনি জোগী৷ নাম প্রসাদ ব্রহ্মসুখ ভোগী৷৷
নারদ জানেউ নাম প্রতাপূ৷ জগ প্রিয হরি হরি হর প্রিয আপূ৷৷
নামু জপত প্রভু কীন্হ প্রসাদূ৷ ভগত সিরোমনি ভে প্রহলাদূ৷৷
ধ্রুবসগলানি জপেউ হরি নাঊ পাযউ অচল অনূপম ঠাঊ৷
সুমিরি পবনসুত পাবন নামূ৷ অপনে বস করি রাখে রামূ৷৷
অপতু অজামিলু গজু গনিকাঊ৷ ভএ মুকুত হরি নাম প্রভাঊ৷৷
কহৌং কহালগি নাম বড়াঈ৷ রামু ন সকহিং নাম গুন গাঈ৷৷

1.7.26

चौपाई
प्रातकाल सरऊ करि मज्जन। बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन।।
बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं। सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं।।
अनुजन्ह संजुत भोजन करहीं। देखि सकल जननीं सुख भरहीं।।
भरत सत्रुहन दोनउ भाई। सहित पवनसुत उपबन जाई।।
बूझहिं बैठि राम गुन गाहा। कह हनुमान सुमति अवगाहा।।
सुनत बिमल गुन अति सुख पावहिं। बहुरि बहुरि करि बिनय कहावहिं।।
सब कें गृह गृह होहिं पुराना। रामचरित पावन बिधि नाना।।
नर अरु नारि राम गुन गानहिं। करहिं दिवस निसि जात न जानहिं।।

1.6.26

चौपाई
सुनि अंगद सकोप कह बानी। बोलु सँभारि अधम अभिमानी।।
सहसबाहु भुज गहन अपारा। दहन अनल सम जासु कुठारा।।
जासु परसु सागर खर धारा। बूड़े नृप अगनित बहु बारा।।
तासु गर्ब जेहि देखत भागा। सो नर क्यों दससीस अभागा।।
राम मनुज कस रे सठ बंगा। धन्वी कामु नदी पुनि गंगा।।
पसु सुरधेनु कल्पतरु रूखा। अन्न दान अरु रस पीयूषा।।
बैनतेय खग अहि सहसानन। चिंतामनि पुनि उपल दसानन।।
सुनु मतिमंद लोक बैकुंठा। लाभ कि रघुपति भगति अकुंठा।।

दोहा/सोरठा

1.5.26

चौपाई
देह बिसाल परम हरुआई। मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई।।
जरइ नगर भा लोग बिहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला।।
तात मातु हा सुनिअ पुकारा। एहि अवसर को हमहि उबारा।।
हम जो कहा यह कपि नहिं होई। बानर रूप धरें सुर कोई।।
साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा।।
जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं।।
ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा। जरा न सो तेहि कारन गिरिजा।।
उलटि पलटि लंका सब जारी। कूदि परा पुनि सिंधु मझारी।।

दोहा/सोरठा

1.4.26

चौपाई
इहाँ बिचारहिं कपि मन माहीं। बीती अवधि काज कछु नाहीं।।
सब मिलि कहहिं परस्पर बाता। बिनु सुधि लएँ करब का भ्राता।।
कह अंगद लोचन भरि बारी। दुहुँ प्रकार भइ मृत्यु हमारी।।
इहाँ न सुधि सीता कै पाई। उहाँ गएँ मारिहि कपिराई।।
पिता बधे पर मारत मोही। राखा राम निहोर न ओही।।
पुनि पुनि अंगद कह सब पाहीं। मरन भयउ कछु संसय नाहीं।।
अंगद बचन सुनत कपि बीरा। बोलि न सकहिं नयन बह नीरा।।
छन एक सोच मगन होइ रहे। पुनि अस वचन कहत सब भए।।
हम सीता कै सुधि लिन्हें बिना। नहिं जैंहैं जुबराज प्रबीना।।

1.3.26

चौपाई
जाहु भवन कुल कुसल बिचारी। सुनत जरा दीन्हिसि बहु गारी।।
गुरु जिमि मूढ़ करसि मम बोधा। कहु जग मोहि समान को जोधा।।
तब मारीच हृदयँ अनुमाना। नवहि बिरोधें नहिं कल्याना।।
सस्त्री मर्मी प्रभु सठ धनी। बैद बंदि कबि भानस गुनी।।
उभय भाँति देखा निज मरना। तब ताकिसि रघुनायक सरना।।
उतरु देत मोहि बधब अभागें। कस न मरौं रघुपति सर लागें।।
अस जियँ जानि दसानन संगा। चला राम पद प्रेम अभंगा।।
मन अति हरष जनाव न तेही। आजु देखिहउँ परम सनेही।।

1.2.26

चौपाई
अनहित तोर प्रिया केइँ कीन्हा। केहि दुइ सिर केहि जमु चह लीन्हा।।
कहु केहि रंकहि करौ नरेसू। कहु केहि नृपहि निकासौं देसू।।
सकउँ तोर अरि अमरउ मारी। काह कीट बपुरे नर नारी।।
जानसि मोर सुभाउ बरोरू। मनु तव आनन चंद चकोरू।।
प्रिया प्रान सुत सरबसु मोरें। परिजन प्रजा सकल बस तोरें।।
जौं कछु कहौ कपटु करि तोही। भामिनि राम सपथ सत मोही।।
बिहसि मागु मनभावति बाता। भूषन सजहि मनोहर गाता।।
घरी कुघरी समुझि जियँ देखू। बेगि प्रिया परिहरहि कुबेषू।।

दोहा/सोरठा

1.1.26

चौपाई
नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु अमंगल मंगल रासी।।
सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी। नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी।।
नारद जानेउ नाम प्रतापू। जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू।।
नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू। भगत सिरोमनि भे प्रहलादू।।
ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ। पायउ अचल अनूपम ठाऊँ।।
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू।।
अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ। भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ।।
कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई। रामु न सकहिं नाम गुन गाई।।

दोहा/सोरठा

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