28

2.3.28

चौपाई
খল বধি তুরত ফিরে রঘুবীরা৷ সোহ চাপ কর কটি তূনীরা৷৷
আরত গিরা সুনী জব সীতা৷ কহ লছিমন সন পরম সভীতা৷৷
জাহু বেগি সংকট অতি ভ্রাতা৷ লছিমন বিহসি কহা সুনু মাতা৷৷
ভৃকুটি বিলাস সৃষ্টি লয হোঈ৷ সপনেহুসংকট পরই কি সোঈ৷৷
মরম বচন জব সীতা বোলা৷ হরি প্রেরিত লছিমন মন ডোলা৷৷
বন দিসি দেব সৌংপি সব কাহূ৷ চলে জহারাবন সসি রাহূ৷৷
সূন বীচ দসকংধর দেখা৷ আবা নিকট জতী কেং বেষা৷৷
জাকেং ডর সুর অসুর ডেরাহীং৷ নিসি ন নীদ দিন অন্ন ন খাহীং৷৷
সো দসসীস স্বান কী নাঈ৷ ইত উত চিতই চলা ভড়িহাঈ৷৷

2.2.28

चौपाई
জানেউমরমু রাউ হি কহঈ৷ তুম্হহি কোহাব পরম প্রিয অহঈ৷৷
থাতি রাখি ন মাগিহু কাঊ৷ বিসরি গযউ মোহি ভোর সুভাঊ৷৷
ঝূঠেহুহমহি দোষু জনি দেহূ৷ দুই কৈ চারি মাগি মকু লেহূ৷৷
রঘুকুল রীতি সদা চলি আঈ৷ প্রান জাহুবরু বচনু ন জাঈ৷৷
নহিং অসত্য সম পাতক পুংজা৷ গিরি সম হোহিং কি কোটিক গুংজা৷৷
সত্যমূল সব সুকৃত সুহাএ৷ বেদ পুরান বিদিত মনু গাএ৷৷
তেহি পর রাম সপথ করি আঈ৷ সুকৃত সনেহ অবধি রঘুরাঈ৷৷
বাত দৃঢ়াই কুমতি হি বোলী৷ কুমত কুবিহগ কুলহ জনু খোলী৷৷

2.1.28

चौपाई
ভাযকুভাযঅনখ আলসহূ নাম জপত মংগল দিসি দসহূ৷
সুমিরি সো নাম রাম গুন গাথা৷ করউনাই রঘুনাথহি মাথা৷৷
মোরি সুধারিহি সো সব ভাী৷ জাসু কৃপা নহিং কৃপাঅঘাতী৷৷
রাম সুস্বামি কুসেবকু মোসো৷ নিজ দিসি দৈখি দযানিধি পোসো৷৷
লোকহুবেদ সুসাহিব রীতীং৷ বিনয সুনত পহিচানত প্রীতী৷৷
গনী গরীব গ্রামনর নাগর৷ পংডিত মূঢ় মলীন উজাগর৷৷
সুকবি কুকবি নিজ মতি অনুহারী৷ নৃপহি সরাহত সব নর নারী৷৷
সাধু সুজান সুসীল নৃপালা৷ ঈস অংস ভব পরম কৃপালা৷৷
সুনি সনমানহিং সবহি সুবানী৷ ভনিতি ভগতি নতি গতি পহিচানী৷৷

1.7.28

चौपाई
सुमन बाटिका सबहिं लगाई। बिबिध भाँति करि जतन बनाई।।
लता ललित बहु जाति सुहाई। फूलहिं सदा बंसत कि नाई।।
गुंजत मधुकर मुखर मनोहर। मारुत त्रिबिध सदा बह सुंदर।।
नाना खग बालकन्हि जिआए। बोलत मधुर उड़ात सुहाए।।
मोर हंस सारस पारावत। भवननि पर सोभा अति पावत।।
जहँ तहँ देखहिं निज परिछाहीं। बहु बिधि कूजहिं नृत्य कराहीं।।
सुक सारिका पढ़ावहिं बालक। कहहु राम रघुपति जनपालक।।
राज दुआर सकल बिधि चारू। बीथीं चौहट रूचिर बजारू।।

1.6.28

चौपाई
सठ साखामृग जोरि सहाई। बाँधा सिंधु इहइ प्रभुताई।।
नाघहिं खग अनेक बारीसा। सूर न होहिं ते सुनु सब कीसा।।
मम भुज सागर बल जल पूरा। जहँ बूड़े बहु सुर नर सूरा।।
बीस पयोधि अगाध अपारा। को अस बीर जो पाइहि पारा।।
दिगपालन्ह मैं नीर भरावा। भूप सुजस खल मोहि सुनावा।।
जौं पै समर सुभट तव नाथा। पुनि पुनि कहसि जासु गुन गाथा।।
तौ बसीठ पठवत केहि काजा। रिपु सन प्रीति करत नहिं लाजा।।
हरगिरि मथन निरखु मम बाहू। पुनि सठ कपि निज प्रभुहि सराहू।।

दोहा/सोरठा

1.5.28

चौपाई
चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्त्रवहिं सुनि निसिचर नारी।।
नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलकिला कपिन्ह सुनावा।।
हरषे सब बिलोकि हनुमाना। नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना।।
मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचन्द्र कर काजा।।
मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी।।
चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा।।
तब मधुबन भीतर सब आए। अंगद संमत मधु फल खाए।।
रखवारे जब बरजन लागे। मुष्टि प्रहार हनत सब भागे।।

दोहा/सोरठा

1.4.28

चौपाई
अनुज क्रिया करि सागर तीरा। कहि निज कथा सुनहु कपि बीरा।।
हम द्वौ बंधु प्रथम तरुनाई । गगन गए रबि निकट उडाई।।
तेज न सहि सक सो फिरि आवा । मै अभिमानी रबि निअरावा ।।
जरे पंख अति तेज अपारा । परेउँ भूमि करि घोर चिकारा ।।
मुनि एक नाम चंद्रमा ओही। लागी दया देखी करि मोही।।
बहु प्रकार तेंहि ग्यान सुनावा । देहि जनित अभिमानी छड़ावा ।।
त्रेताँ ब्रह्म मनुज तनु धरिही। तासु नारि निसिचर पति हरिही।।
तासु खोज पठइहि प्रभू दूता। तिन्हहि मिलें तैं होब पुनीता।।

1.3.28

चौपाई
खल बधि तुरत फिरे रघुबीरा। सोह चाप कर कटि तूनीरा।।
आरत गिरा सुनी जब सीता। कह लछिमन सन परम सभीता।।
जाहु बेगि संकट अति भ्राता। लछिमन बिहसि कहा सुनु माता।।
भृकुटि बिलास सृष्टि लय होई। सपनेहुँ संकट परइ कि सोई।।
मरम बचन जब सीता बोला। हरि प्रेरित लछिमन मन डोला।।
बन दिसि देव सौंपि सब काहू। चले जहाँ रावन ससि राहू।।
सून बीच दसकंधर देखा। आवा निकट जती कें बेषा।।
जाकें डर सुर असुर डेराहीं। निसि न नीद दिन अन्न न खाहीं।।
सो दससीस स्वान की नाई। इत उत चितइ चला भड़िहाई।।

1.2.28

चौपाई
जानेउँ मरमु राउ हँसि कहई। तुम्हहि कोहाब परम प्रिय अहई।।
थाति राखि न मागिहु काऊ। बिसरि गयउ मोहि भोर सुभाऊ।।
झूठेहुँ हमहि दोषु जनि देहू। दुइ कै चारि मागि मकु लेहू।।
रघुकुल रीति सदा चलि आई। प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई।।
नहिं असत्य सम पातक पुंजा। गिरि सम होहिं कि कोटिक गुंजा।।
सत्यमूल सब सुकृत सुहाए। बेद पुरान बिदित मनु गाए।।
तेहि पर राम सपथ करि आई। सुकृत सनेह अवधि रघुराई।।
बात दृढ़ाइ कुमति हँसि बोली। कुमत कुबिहग कुलह जनु खोली।।

दोहा/सोरठा

1.1.28

चौपाई
भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ।।
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा।।
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती।।
राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो। निज दिसि दैखि दयानिधि पोसो।।
लोकहुँ बेद सुसाहिब रीतीं। बिनय सुनत पहिचानत प्रीती।।
गनी गरीब ग्रामनर नागर। पंडित मूढ़ मलीन उजागर।।
सुकबि कुकबि निज मति अनुहारी। नृपहि सराहत सब नर नारी।।
साधु सुजान सुसील नृपाला। ईस अंस भव परम कृपाला।।
सुनि सनमानहिं सबहि सुबानी। भनिति भगति नति गति पहिचानी।।

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