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2.5.32

चौपाई
সুনি সীতা দুখ প্রভু সুখ অযনা৷ ভরি আএ জল রাজিব নযনা৷৷
বচন কা মন মম গতি জাহী৷ সপনেহুবূঝিঅ বিপতি কি তাহী৷৷
কহ হনুমংত বিপতি প্রভু সোঈ৷ জব তব সুমিরন ভজন ন হোঈ৷৷
কেতিক বাত প্রভু জাতুধান কী৷ রিপুহি জীতি আনিবী জানকী৷৷
সুনু কপি তোহি সমান উপকারী৷ নহিং কোউ সুর নর মুনি তনুধারী৷৷
প্রতি উপকার করৌং কা তোরা৷ সনমুখ হোই ন সকত মন মোরা৷৷
সুনু সুত উরিন মৈং নাহীং৷ দেখেউকরি বিচার মন মাহীং৷৷
পুনি পুনি কপিহি চিতব সুরত্রাতা৷ লোচন নীর পুলক অতি গাতা৷৷

2.3.32

चौपाई
গীধ দেহ তজি ধরি হরি রুপা৷ ভূষন বহু পট পীত অনূপা৷৷
স্যাম গাত বিসাল ভুজ চারী৷ অস্তুতি করত নযন ভরি বারী৷৷

2.2.32

चौपाई
রাম সপথ সত কহুউসুভাঊ৷ রামমাতু কছু কহেউ ন কাঊ৷৷
মৈং সবু কীন্হ তোহি বিনু পূেং৷ তেহি তেং পরেউ মনোরথু ছূছেং৷৷
রিস পরিহরূ অব মংগল সাজূ৷ কছু দিন গএভরত জুবরাজূ৷৷
একহি বাত মোহি দুখু লাগা৷ বর দূসর অসমংজস মাগা৷৷
অজহুহৃদয জরত তেহি আা৷ রিস পরিহাস কি সােহুসাা৷৷
কহু তজি রোষু রাম অপরাধূ৷ সবু কোউ কহই রামু সুঠি সাধূ৷৷
তুহূসরাহসি করসি সনেহূ৷ অব সুনি মোহি ভযউ সংদেহূ৷৷
জাসু সুভাউ অরিহি অনুকূলা৷ সো কিমি করিহি মাতু প্রতিকূলা৷৷

2.1.32

चौपाई
রাম চরিত চিংতামনি চারূ৷ সংত সুমতি তিয সুভগ সিংগারূ৷৷
জগ মংগল গুন গ্রাম রাম কে৷ দানি মুকুতি ধন ধরম ধাম কে৷৷
সদগুর গ্যান বিরাগ জোগ কে৷ বিবুধ বৈদ ভব ভীম রোগ কে৷৷
জননি জনক সিয রাম প্রেম কে৷ বীজ সকল ব্রত ধরম নেম কে৷৷
সমন পাপ সংতাপ সোক কে৷ প্রিয পালক পরলোক লোক কে৷৷
সচিব সুভট ভূপতি বিচার কে৷ কুংভজ লোভ উদধি অপার কে৷৷
কাম কোহ কলিমল করিগন কে৷ কেহরি সাবক জন মন বন কে৷৷
অতিথি পূজ্য প্রিযতম পুরারি কে৷ কামদ ঘন দারিদ দবারি কে৷৷
মংত্র মহামনি বিষয ব্যাল কে৷ মেটত কঠিন কুঅংক ভাল কে৷৷

1.7.32

चौपाई
भ्रातन्ह सहित रामु एक बारा। संग परम प्रिय पवनकुमारा।।
सुंदर उपबन देखन गए। सब तरु कुसुमित पल्लव नए।।
जानि समय सनकादिक आए। तेज पुंज गुन सील सुहाए।।
ब्रह्मानंद सदा लयलीना। देखत बालक बहुकालीना।।
रूप धरें जनु चारिउ बेदा। समदरसी मुनि बिगत बिभेदा।।
आसा बसन ब्यसन यह तिन्हहीं। रघुपति चरित होइ तहँ सुनहीं।।
तहाँ रहे सनकादि भवानी। जहँ घटसंभव मुनिबर ग्यानी।।
राम कथा मुनिबर बहु बरनी। ग्यान जोनि पावक जिमि अरनी।।

1.6.32

चौपाई
जब तेहिं कीन्ह राम कै निंदा। क्रोधवंत अति भयउ कपिंदा।।
हरि हर निंदा सुनइ जो काना। होइ पाप गोघात समाना।।
कटकटान कपिकुंजर भारी। दुहु भुजदंड तमकि महि मारी।।
डोलत धरनि सभासद खसे। चले भाजि भय मारुत ग्रसे।।
गिरत सँभारि उठा दसकंधर। भूतल परे मुकुट अति सुंदर।।
कछु तेहिं लै निज सिरन्हि सँवारे। कछु अंगद प्रभु पास पबारे।।
आवत मुकुट देखि कपि भागे। दिनहीं लूक परन बिधि लागे।।
की रावन करि कोप चलाए। कुलिस चारि आवत अति धाए।।
कह प्रभु हँसि जनि हृदयँ डेराहू। लूक न असनि केतु नहिं राहू।।

1.5.32

चौपाई
सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना। भरि आए जल राजिव नयना।।
बचन काँय मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही।।
कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई। जब तव सुमिरन भजन न होई।।
केतिक बात प्रभु जातुधान की। रिपुहि जीति आनिबी जानकी।।
सुनु कपि तोहि समान उपकारी। नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी।।
प्रति उपकार करौं का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा।।
सुनु सुत उरिन मैं नाहीं। देखेउँ करि बिचार मन माहीं।।
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता। लोचन नीर पुलक अति गाता।।

1.3.32

चौपाई
गीध देह तजि धरि हरि रुपा। भूषन बहु पट पीत अनूपा।।
स्याम गात बिसाल भुज चारी। अस्तुति करत नयन भरि बारी।।

1.2.32

चौपाई
राम सपथ सत कहुउँ सुभाऊ। राममातु कछु कहेउ न काऊ।।
मैं सबु कीन्ह तोहि बिनु पूँछें। तेहि तें परेउ मनोरथु छूछें।।
रिस परिहरू अब मंगल साजू। कछु दिन गएँ भरत जुबराजू।।
एकहि बात मोहि दुखु लागा। बर दूसर असमंजस मागा।।
अजहुँ हृदय जरत तेहि आँचा। रिस परिहास कि साँचेहुँ साँचा।।
कहु तजि रोषु राम अपराधू। सबु कोउ कहइ रामु सुठि साधू।।
तुहूँ सराहसि करसि सनेहू। अब सुनि मोहि भयउ संदेहू।।
जासु सुभाउ अरिहि अनुकूला। सो किमि करिहि मातु प्रतिकूला।।

दोहा/सोरठा

1.1.32

चौपाई
राम चरित चिंतामनि चारू। संत सुमति तिय सुभग सिंगारू।।
जग मंगल गुन ग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के।।
सदगुर ग्यान बिराग जोग के। बिबुध बैद भव भीम रोग के।।
जननि जनक सिय राम प्रेम के। बीज सकल ब्रत धरम नेम के।।
समन पाप संताप सोक के। प्रिय पालक परलोक लोक के।।
सचिव सुभट भूपति बिचार के। कुंभज लोभ उदधि अपार के।।
काम कोह कलिमल करिगन के। केहरि सावक जन मन बन के।।
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद घन दारिद दवारि के।।
मंत्र महामनि बिषय ब्याल के। मेटत कठिन कुअंक भाल के।।

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