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2.5.33

चौपाई
বার বার প্রভু চহই উঠাবা৷ প্রেম মগন তেহি উঠব ন ভাবা৷৷
প্রভু কর পংকজ কপি কেং সীসা৷ সুমিরি সো দসা মগন গৌরীসা৷৷
সাবধান মন করি পুনি সংকর৷ লাগে কহন কথা অতি সুংদর৷৷
কপি উঠাই প্রভু হৃদযলগাবা৷ কর গহি পরম নিকট বৈঠাবা৷৷
কহু কপি রাবন পালিত লংকা৷ কেহি বিধি দহেউ দুর্গ অতি বংকা৷৷
প্রভু প্রসন্ন জানা হনুমানা৷ বোলা বচন বিগত অভিমানা৷৷
সাখামৃগ কে বড়ি মনুসাঈ৷ সাখা তেং সাখা পর জাঈ৷৷
নাঘি সিংধু হাটকপুর জারা৷ নিসিচর গন বিধি বিপিন উজারা৷
সো সব তব প্রতাপ রঘুরাঈ৷ নাথ ন কছূ মোরি প্রভুতাঈ৷৷

2.3.33

चौपाई
কোমল চিত অতি দীনদযালা৷ কারন বিনু রঘুনাথ কৃপালা৷৷
গীধ অধম খগ আমিষ ভোগী৷ গতি দীন্হি জো জাচত জোগী৷৷
সুনহু উমা তে লোগ অভাগী৷ হরি তজি হোহিং বিষয অনুরাগী৷৷
পুনি সীতহি খোজত দ্বৌ ভাঈ৷ চলে বিলোকত বন বহুতাঈ৷৷
সংকুল লতা বিটপ ঘন কানন৷ বহু খগ মৃগ তহগজ পংচানন৷৷
আবত পংথ কবংধ নিপাতা৷ তেহিং সব কহী সাপ কৈ বাতা৷৷
দুরবাসা মোহি দীন্হী সাপা৷ প্রভু পদ পেখি মিটা সো পাপা৷৷
সুনু গংধর্ব কহউমৈ তোহী৷ মোহি ন সোহাই ব্রহ্মকুল দ্রোহী৷৷

2.2.33

चौपाई
জিঐ মীন বরূ বারি বিহীনা৷ মনি বিনু ফনিকু জিঐ দুখ দীনা৷৷
কহউসুভাউ ন ছলু মন মাহীং৷ জীবনু মোর রাম বিনু নাহীং৷৷
সমুঝি দেখু জিযপ্রিযা প্রবীনা৷ জীবনু রাম দরস আধীনা৷৷
সুনি ম্রদু বচন কুমতি অতি জরঈ৷ মনহুঅনল আহুতি ঘৃত পরঈ৷৷
কহই করহু কিন কোটি উপাযা৷ ইহান লাগিহি রাউরি মাযা৷৷
দেহু কি লেহু অজসু করি নাহীং৷ মোহি ন বহুত প্রপংচ সোহাহীং৷
রামু সাধু তুম্হ সাধু সযানে৷ রামমাতু ভলি সব পহিচানে৷৷
জস কৌসিলামোর ভল তাকা৷ তস ফলু উন্হহি দেউকরি সাকা৷৷

2.1.33

चौपाई
কীন্হি প্রস্ন জেহি ভাি ভবানী৷ জেহি বিধি সংকর কহা বখানী৷৷
সো সব হেতু কহব মৈং গাঈ৷ কথাপ্রবংধ বিচিত্র বনাঈ৷৷
জেহি যহ কথা সুনী নহিং হোঈ৷ জনি আচরজু করৈং সুনি সোঈ৷৷
কথা অলৌকিক সুনহিং জে গ্যানী৷ নহিং আচরজু করহিং অস জানী৷৷
রামকথা কৈ মিতি জগ নাহীং৷ অসি প্রতীতি তিন্হ কে মন মাহীং৷৷
নানা ভাি রাম অবতারা৷ রামাযন সত কোটি অপারা৷৷
কলপভেদ হরিচরিত সুহাএ৷ ভাি অনেক মুনীসন্হ গাএ৷৷
করিঅ ন সংসয অস উর আনী৷ সুনিঅ কথা সারদ রতি মানী৷৷

1.7.33

चौपाई
कीन्ह दंडवत तीनिउँ भाई। सहित पवनसुत सुख अधिकाई।।
मुनि रघुपति छबि अतुल बिलोकी। भए मगन मन सके न रोकी।।
स्यामल गात सरोरुह लोचन। सुंदरता मंदिर भव मोचन।।
एकटक रहे निमेष न लावहिं। प्रभु कर जोरें सीस नवावहिं।।
तिन्ह कै दसा देखि रघुबीरा। स्त्रवत नयन जल पुलक सरीरा।।
कर गहि प्रभु मुनिबर बैठारे। परम मनोहर बचन उचारे।।
आजु धन्य मैं सुनहु मुनीसा। तुम्हरें दरस जाहिं अघ खीसा।।
बड़े भाग पाइब सतसंगा। बिनहिं प्रयास होहिं भव भंगा।।

1.6.33

चौपाई
एहि बिधि बेगि सूभट सब धावहु। खाहु भालु कपि जहँ जहँ पावहु।।
मर्कटहीन करहु महि जाई। जिअत धरहु तापस द्वौ भाई।।
पुनि सकोप बोलेउ जुबराजा। गाल बजावत तोहि न लाजा।।
मरु गर काटि निलज कुलघाती। बल बिलोकि बिहरति नहिं छाती।।
रे त्रिय चोर कुमारग गामी। खल मल रासि मंदमति कामी।।
सन्यपात जल्पसि दुर्बादा। भएसि कालबस खल मनुजादा।।
याको फलु पावहिगो आगें। बानर भालु चपेटन्हि लागें।।
रामु मनुज बोलत असि बानी। गिरहिं न तव रसना अभिमानी।।
गिरिहहिं रसना संसय नाहीं। सिरन्हि समेत समर महि माहीं।।

1.5.33

चौपाई
बार बार प्रभु चहइ उठावा। प्रेम मगन तेहि उठब न भावा।।
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा।।
सावधान मन करि पुनि संकर। लागे कहन कथा अति सुंदर।।
कपि उठाइ प्रभु हृदयँ लगावा। कर गहि परम निकट बैठावा।।
कहु कपि रावन पालित लंका। केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका।।
प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना। बोला बचन बिगत अभिमाना।।
साखामृग के बड़ि मनुसाई। साखा तें साखा पर जाई।।
नाघि सिंधु हाटकपुर जारा। निसिचर गन बिधि बिपिन उजारा।
सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई।।

1.3.33

चौपाई
कोमल चित अति दीनदयाला। कारन बिनु रघुनाथ कृपाला।।
गीध अधम खग आमिष भोगी। गति दीन्हि जो जाचत जोगी।।
सुनहु उमा ते लोग अभागी। हरि तजि होहिं बिषय अनुरागी।।
पुनि सीतहि खोजत द्वौ भाई। चले बिलोकत बन बहुताई।।
संकुल लता बिटप घन कानन। बहु खग मृग तहँ गज पंचानन।।
आवत पंथ कबंध निपाता। तेहिं सब कही साप कै बाता।।
दुरबासा मोहि दीन्ही सापा। प्रभु पद पेखि मिटा सो पापा।।
सुनु गंधर्ब कहउँ मै तोही। मोहि न सोहाइ ब्रह्मकुल द्रोही।।

दोहा/सोरठा

1.2.33

चौपाई
जिऐ मीन बरू बारि बिहीना। मनि बिनु फनिकु जिऐ दुख दीना।।
कहउँ सुभाउ न छलु मन माहीं। जीवनु मोर राम बिनु नाहीं।।
समुझि देखु जियँ प्रिया प्रबीना। जीवनु राम दरस आधीना।।
सुनि म्रदु बचन कुमति अति जरई। मनहुँ अनल आहुति घृत परई।।
कहइ करहु किन कोटि उपाया। इहाँ न लागिहि राउरि माया।।
देहु कि लेहु अजसु करि नाहीं। मोहि न बहुत प्रपंच सोहाहीं।
रामु साधु तुम्ह साधु सयाने। राममातु भलि सब पहिचाने।।
जस कौसिलाँ मोर भल ताका। तस फलु उन्हहि देउँ करि साका।।

1.1.33

चौपाई
कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी। जेहि बिधि संकर कहा बखानी।।
सो सब हेतु कहब मैं गाई। कथाप्रबंध बिचित्र बनाई।।
जेहि यह कथा सुनी नहिं होई। जनि आचरजु करैं सुनि सोई।।
कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी।।
रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं।।
नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा।।
कलपभेद हरिचरित सुहाए। भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए।।
करिअ न संसय अस उर आनी। सुनिअ कथा सारद रति मानी।।

दोहा/सोरठा

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