34

2.5.34

चौपाई
নাথ ভগতি অতি সুখদাযনী৷ দেহু কৃপা করি অনপাযনী৷৷
সুনি প্রভু পরম সরল কপি বানী৷ এবমস্তু তব কহেউ ভবানী৷৷
উমা রাম সুভাউ জেহিং জানা৷ তাহি ভজনু তজি ভাব ন আনা৷৷
যহ সংবাদ জাসু উর আবা৷ রঘুপতি চরন ভগতি সোই পাবা৷৷
সুনি প্রভু বচন কহহিং কপিবৃংদা৷ জয জয জয কৃপাল সুখকংদা৷৷
তব রঘুপতি কপিপতিহি বোলাবা৷ কহা চলৈং কর করহু বনাবা৷৷
অব বিলংবু কেহি কারন কীজে৷ তুরত কপিন্হ কহুআযসু দীজে৷৷
কৌতুক দেখি সুমন বহু বরষী৷ নভ তেং ভবন চলে সুর হরষী৷৷

2.3.34

चौपाई
সাপত তাড়ত পরুষ কহংতা৷ বিপ্র পূজ্য অস গাবহিং সংতা৷৷
পূজিঅ বিপ্র সীল গুন হীনা৷ সূদ্র ন গুন গন গ্যান প্রবীনা৷৷
কহি নিজ ধর্ম তাহি সমুঝাবা৷ নিজ পদ প্রীতি দেখি মন ভাবা৷৷
রঘুপতি চরন কমল সিরু নাঈ৷ গযউ গগন আপনি গতি পাঈ৷৷
তাহি দেই গতি রাম উদারা৷ সবরী কেং আশ্রম পগু ধারা৷৷
সবরী দেখি রাম গৃহআএ৷ মুনি কে বচন সমুঝি জিযভাএ৷৷
সরসিজ লোচন বাহু বিসালা৷ জটা মুকুট সির উর বনমালা৷৷
স্যাম গৌর সুংদর দোউ ভাঈ৷ সবরী পরী চরন লপটাঈ৷৷
প্রেম মগন মুখ বচন ন আবা৷ পুনি পুনি পদ সরোজ সির নাবা৷৷

2.2.34

चौपाई
অস কহি কুটিল ভঈ উঠি ঠাঢ়ী৷ মানহুরোষ তরংগিনি বাঢ়ী৷৷
পাপ পহার প্রগট ভই সোঈ৷ ভরী ক্রোধ জল জাই ন জোঈ৷৷
দোউ বর কূল কঠিন হঠ ধারা৷ ভব কূবরী বচন প্রচারা৷৷
ঢাহত ভূপরূপ তরু মূলা৷ চলী বিপতি বারিধি অনুকূলা৷৷
লখী নরেস বাত ফুরি সাী৷ তিয মিস মীচু সীস পর নাচী৷৷
গহি পদ বিনয কীন্হ বৈঠারী৷ জনি দিনকর কুল হোসি কুঠারী৷৷
মাগু মাথ অবহীং দেউতোহী৷ রাম বিরহজনি মারসি মোহী৷৷
রাখু রাম কহুজেহি তেহি ভাী৷ নাহিং ত জরিহি জনম ভরি ছাতী৷৷

2.1.34

चौपाई
এহি বিধি সব সংসয করি দূরী৷ সির ধরি গুর পদ পংকজ ধূরী৷৷
পুনি সবহী বিনবউকর জোরী৷ করত কথা জেহিং লাগ ন খোরী৷৷
সাদর সিবহি নাই অব মাথা৷ বরনউবিসদ রাম গুন গাথা৷৷
সংবত সোরহ সৈ একতীসা৷ করউকথা হরি পদ ধরি সীসা৷৷
নৌমী ভৌম বার মধু মাসা৷ অবধপুরীং যহ চরিত প্রকাসা৷৷
জেহি দিন রাম জনম শ্রুতি গাবহিং৷ তীরথ সকল তহাচলি আবহিং৷৷
অসুর নাগ খগ নর মুনি দেবা৷ আই করহিং রঘুনাযক সেবা৷৷
জন্ম মহোত্সব রচহিং সুজানা৷ করহিং রাম কল কীরতি গানা৷৷

1.7.34

चौपाई
सुनि प्रभु बचन हरषि मुनि चारी। पुलकित तन अस्तुति अनुसारी।।
जय भगवंत अनंत अनामय। अनघ अनेक एक करुनामय।।
जय निर्गुन जय जय गुन सागर। सुख मंदिर सुंदर अति नागर।।
जय इंदिरा रमन जय भूधर। अनुपम अज अनादि सोभाकर।।
ग्यान निधान अमान मानप्रद। पावन सुजस पुरान बेद बद।।
तग्य कृतग्य अग्यता भंजन। नाम अनेक अनाम निरंजन।।
सर्ब सर्बगत सर्ब उरालय। बससि सदा हम कहुँ परिपालय।।
द्वंद बिपति भव फंद बिभंजय। ह्रदि बसि राम काम मद गंजय।।

1.6.34

चौपाई
मै तव दसन तोरिबे लायक। आयसु मोहि न दीन्ह रघुनायक।।
असि रिस होति दसउ मुख तोरौं। लंका गहि समुद्र महँ बोरौं।।
गूलरि फल समान तव लंका। बसहु मध्य तुम्ह जंतु असंका।।
मैं बानर फल खात न बारा। आयसु दीन्ह न राम उदारा।।
जुगति सुनत रावन मुसुकाई। मूढ़ सिखिहि कहँ बहुत झुठाई।।
बालि न कबहुँ गाल अस मारा। मिलि तपसिन्ह तैं भएसि लबारा।।
साँचेहुँ मैं लबार भुज बीहा। जौं न उपारिउँ तव दस जीहा।।
समुझि राम प्रताप कपि कोपा। सभा माझ पन करि पद रोपा।।
जौं मम चरन सकसि सठ टारी। फिरहिं रामु सीता मैं हारी।।

1.5.34

चौपाई
नाथ भगति अति सुखदायनी। देहु कृपा करि अनपायनी।।
सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी। एवमस्तु तब कहेउ भवानी।।
उमा राम सुभाउ जेहिं जाना। ताहि भजनु तजि भाव न आना।।
यह संवाद जासु उर आवा। रघुपति चरन भगति सोइ पावा।।
सुनि प्रभु बचन कहहिं कपिबृंदा। जय जय जय कृपाल सुखकंदा।।
तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा। कहा चलैं कर करहु बनावा।।
अब बिलंबु केहि कारन कीजे। तुरत कपिन्ह कहुँ आयसु दीजे।।
कौतुक देखि सुमन बहु बरषी। नभ तें भवन चले सुर हरषी।।

दोहा/सोरठा

1.3.34

चौपाई
सापत ताड़त परुष कहंता। बिप्र पूज्य अस गावहिं संता।।
पूजिअ बिप्र सील गुन हीना। सूद्र न गुन गन ग्यान प्रबीना।।
कहि निज धर्म ताहि समुझावा। निज पद प्रीति देखि मन भावा।।
रघुपति चरन कमल सिरु नाई। गयउ गगन आपनि गति पाई।।
ताहि देइ गति राम उदारा। सबरी कें आश्रम पगु धारा।।
सबरी देखि राम गृहँ आए। मुनि के बचन समुझि जियँ भाए।।
सरसिज लोचन बाहु बिसाला। जटा मुकुट सिर उर बनमाला।।
स्याम गौर सुंदर दोउ भाई। सबरी परी चरन लपटाई।।
प्रेम मगन मुख बचन न आवा। पुनि पुनि पद सरोज सिर नावा।।

1.2.34

चौपाई
अस कहि कुटिल भई उठि ठाढ़ी। मानहुँ रोष तरंगिनि बाढ़ी।।
पाप पहार प्रगट भइ सोई। भरी क्रोध जल जाइ न जोई।।
दोउ बर कूल कठिन हठ धारा। भवँर कूबरी बचन प्रचारा।।
ढाहत भूपरूप तरु मूला। चली बिपति बारिधि अनुकूला।।
लखी नरेस बात फुरि साँची। तिय मिस मीचु सीस पर नाची।।
गहि पद बिनय कीन्ह बैठारी। जनि दिनकर कुल होसि कुठारी।।
मागु माथ अबहीं देउँ तोही। राम बिरहँ जनि मारसि मोही।।
राखु राम कहुँ जेहि तेहि भाँती। नाहिं त जरिहि जनम भरि छाती।।

दोहा/सोरठा

1.1.34

चौपाई
एहि बिधि सब संसय करि दूरी। सिर धरि गुर पद पंकज धूरी।।
पुनि सबही बिनवउँ कर जोरी। करत कथा जेहिं लाग न खोरी।।
सादर सिवहि नाइ अब माथा। बरनउँ बिसद राम गुन गाथा।।
संबत सोरह सै एकतीसा। करउँ कथा हरि पद धरि सीसा।।
नौमी भौम बार मधु मासा। अवधपुरीं यह चरित प्रकासा।।
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं। तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं।।
असुर नाग खग नर मुनि देवा। आइ करहिं रघुनायक सेवा।।
जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना। करहिं राम कल कीरति गाना।।

दोहा/सोरठा

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