38

2.5.38

चौपाई
সোই রাবন কহুবনি সহাঈ৷ অস্তুতি করহিং সুনাই সুনাঈ৷৷
অবসর জানি বিভীষনু আবা৷ ভ্রাতা চরন সীসু তেহিং নাবা৷৷
পুনি সিরু নাই বৈঠ নিজ আসন৷ বোলা বচন পাই অনুসাসন৷৷
জৌ কৃপাল পূিহু মোহি বাতা৷ মতি অনুরুপ কহউহিত তাতা৷৷
জো আপন চাহৈ কল্যানা৷ সুজসু সুমতি সুভ গতি সুখ নানা৷৷
সো পরনারি লিলার গোসাঈং৷ তজউ চউথি কে চংদ কি নাঈ৷৷
চৌদহ ভুবন এক পতি হোঈ৷ ভূতদ্রোহ তিষ্টই নহিং সোঈ৷৷
গুন সাগর নাগর নর জোঊ৷ অলপ লোভ ভল কহই ন কোঊ৷৷

2.3.38

चौपाई
বিটপ বিসাল লতা অরুঝানী৷ বিবিধ বিতান দিএ জনু তানী৷৷
কদলি তাল বর ধুজা পতাকা৷ দৈখি ন মোহ ধীর মন জাকা৷৷
বিবিধ ভাি ফূলে তরু নানা৷ জনু বানৈত বনে বহু বানা৷৷
কহুকহুসুন্দর বিটপ সুহাএ৷ জনু ভট বিলগ বিলগ হোই ছাএ৷৷
কূজত পিক মানহুগজ মাতে৷ ঢেক মহোখ ঊ বিসরাতে৷৷
মোর চকোর কীর বর বাজী৷ পারাবত মরাল সব তাজী৷৷
তীতির লাবক পদচর জূথা৷ বরনি ন জাই মনোজ বরুথা৷৷
রথ গিরি সিলা দুংদুভী ঝরনা৷ চাতক বংদী গুন গন বরনা৷৷
মধুকর মুখর ভেরি সহনাঈ৷ ত্রিবিধ বযারি বসীঠীং আঈ৷৷
চতুরংগিনী সেন স লীন্হেং৷ বিচরত সবহি চুনৌতী দীন্হেং৷৷

2.2.38

चौपाई
পছিলে পহর ভূপু নিত জাগা৷ আজু হমহি বড় অচরজু লাগা৷৷
জাহু সুমংত্র জগাবহু জাঈ৷ কীজিঅ কাজু রজাযসু পাঈ৷৷
গএ সুমংত্রু তব রাউর মাহী৷ দেখি ভযাবন জাত ডেরাহীং৷৷
ধাই খাই জনু জাই ন হেরা৷ মানহুবিপতি বিষাদ বসেরা৷৷
পূছেং কোউ ন ঊতরু দেঈ৷ গএ জেংহিং ভবন ভূপ কৈকৈঈ৷৷
কহি জযজীব বৈঠ সিরু নাঈ৷ দৈখি ভূপ গতি গযউ সুখাঈ৷৷
সোচ বিকল বিবরন মহি পরেঊ৷ মানহুকমল মূলু পরিহরেঊ৷৷
সচিউ সভীত সকই নহিং পূী৷ বোলী অসুভ ভরী সুভ ছূছী৷৷

2.1.38

चौपाई
জে গাবহিং যহ চরিত সারে৷ তেই এহি তাল চতুর রখবারে৷৷
সদা সুনহিং সাদর নর নারী৷ তেই সুরবর মানস অধিকারী৷৷
অতি খল জে বিষঈ বগ কাগা৷ এহিং সর নিকট ন জাহিং অভাগা৷৷
সংবুক ভেক সেবার সমানা৷ ইহান বিষয কথা রস নানা৷৷
তেহি কারন আবত হিযহারে৷ কামী কাক বলাক বিচারে৷৷
আবত এহিং সর অতি কঠিনাঈ৷ রাম কৃপা বিনু আই ন জাঈ৷৷
কঠিন কুসংগ কুপংথ করালা৷ তিন্হ কে বচন বাঘ হরি ব্যালা৷৷
গৃহ কারজ নানা জংজালা৷ তে অতি দুর্গম সৈল বিসালা৷৷
বন বহু বিষম মোহ মদ মানা৷ নদীং কুতর্ক ভযংকর নানা৷৷

1.7.38

चौपाई
बिषय अलंपट सील गुनाकर। पर दुख दुख सुख सुख देखे पर।।
सम अभूतरिपु बिमद बिरागी। लोभामरष हरष भय त्यागी।।
कोमलचित दीनन्ह पर दाया। मन बच क्रम मम भगति अमाया।।
सबहि मानप्रद आपु अमानी। भरत प्रान सम मम ते प्रानी।।
बिगत काम मम नाम परायन। सांति बिरति बिनती मुदितायन।।
सीतलता सरलता मयत्री। द्विज पद प्रीति धर्म जनयत्री।।
ए सब लच्छन बसहिं जासु उर। जानेहु तात संत संतत फुर।।
सम दम नियम नीति नहिं डोलहिं। परुष बचन कबहूँ नहिं बोलहिं।।

1.6.38

चौपाई
नारि बचन सुनि बिसिख समाना। सभाँ गयउ उठि होत बिहाना।।
बैठ जाइ सिंघासन फूली। अति अभिमान त्रास सब भूली।।
इहाँ राम अंगदहि बोलावा। आइ चरन पंकज सिरु नावा।।
अति आदर सपीप बैठारी। बोले बिहँसि कृपाल खरारी।।
बालितनय कौतुक अति मोही। तात सत्य कहु पूछउँ तोही।।।
रावनु जातुधान कुल टीका। भुज बल अतुल जासु जग लीका।।
तासु मुकुट तुम्ह चारि चलाए। कहहु तात कवनी बिधि पाए।।
सुनु सर्बग्य प्रनत सुखकारी। मुकुट न होहिं भूप गुन चारी।।
साम दान अरु दंड बिभेदा। नृप उर बसहिं नाथ कह बेदा।।

1.5.38

चौपाई
सोइ रावन कहुँ बनि सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई।।
अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा।।
पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन।।
जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरुप कहउँ हित ताता।।
जो आपन चाहै कल्याना। सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना।।
सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाई।।
चौदह भुवन एक पति होई। भूतद्रोह तिष्टइ नहिं सोई।।
गुन सागर नागर नर जोऊ। अलप लोभ भल कहइ न कोऊ।।

दोहा/सोरठा

1.3.38

चौपाई
बिटप बिसाल लता अरुझानी। बिबिध बितान दिए जनु तानी।।
कदलि ताल बर धुजा पताका। दैखि न मोह धीर मन जाका।।
बिबिध भाँति फूले तरु नाना। जनु बानैत बने बहु बाना।।
कहुँ कहुँ सुन्दर बिटप सुहाए। जनु भट बिलग बिलग होइ छाए।।
कूजत पिक मानहुँ गज माते। ढेक महोख ऊँट बिसराते।।
मोर चकोर कीर बर बाजी। पारावत मराल सब ताजी।।
तीतिर लावक पदचर जूथा। बरनि न जाइ मनोज बरुथा।।
रथ गिरि सिला दुंदुभी झरना। चातक बंदी गुन गन बरना।।
मधुकर मुखर भेरि सहनाई। त्रिबिध बयारि बसीठीं आई।।

1.2.38

चौपाई
पछिले पहर भूपु नित जागा। आजु हमहि बड़ अचरजु लागा।।
जाहु सुमंत्र जगावहु जाई। कीजिअ काजु रजायसु पाई।।
गए सुमंत्रु तब राउर माही। देखि भयावन जात डेराहीं।।
धाइ खाइ जनु जाइ न हेरा। मानहुँ बिपति बिषाद बसेरा।।
पूछें कोउ न ऊतरु देई। गए जेंहिं भवन भूप कैकैई।।
कहि जयजीव बैठ सिरु नाई। दैखि भूप गति गयउ सुखाई।।
सोच बिकल बिबरन महि परेऊ। मानहुँ कमल मूलु परिहरेऊ।।
सचिउ सभीत सकइ नहिं पूँछी। बोली असुभ भरी सुभ छूछी।।

दोहा/सोरठा

1.1.38

चौपाई
जे गावहिं यह चरित सँभारे। तेइ एहि ताल चतुर रखवारे।।
सदा सुनहिं सादर नर नारी। तेइ सुरबर मानस अधिकारी।।
अति खल जे बिषई बग कागा। एहिं सर निकट न जाहिं अभागा।।
संबुक भेक सेवार समाना। इहाँ न बिषय कथा रस नाना।।
तेहि कारन आवत हियँ हारे। कामी काक बलाक बिचारे।।
आवत एहिं सर अति कठिनाई। राम कृपा बिनु आइ न जाई।।
कठिन कुसंग कुपंथ कराला। तिन्ह के बचन बाघ हरि ब्याला।।
गृह कारज नाना जंजाला। ते अति दुर्गम सैल बिसाला।।
बन बहु बिषम मोह मद माना। नदीं कुतर्क भयंकर नाना।।

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