40

2.5.40

चौपाई
মাল্যবংত অতি সচিব সযানা৷ তাসু বচন সুনি অতি সুখ মানা৷৷
তাত অনুজ তব নীতি বিভূষন৷ সো উর ধরহু জো কহত বিভীষন৷৷
রিপু উতকরষ কহত সঠ দোঊ৷ দূরি ন করহু ইহাহই কোঊ৷৷
মাল্যবংত গৃহ গযউ বহোরী৷ কহই বিভীষনু পুনি কর জোরী৷৷
সুমতি কুমতি সব কেং উর রহহীং৷ নাথ পুরান নিগম অস কহহীং৷৷
জহাসুমতি তহসংপতি নানা৷ জহাকুমতি তহবিপতি নিদানা৷৷
তব উর কুমতি বসী বিপরীতা৷ হিত অনহিত মানহু রিপু প্রীতা৷৷
কালরাতি নিসিচর কুল কেরী৷ তেহি সীতা পর প্রীতি ঘনেরী৷৷

2.3.40

चौपाई
বিকসে সরসিজ নানা রংগা৷ মধুর মুখর গুংজত বহু ভৃংগা৷৷
বোলত জলকুক্কুট কলহংসা৷ প্রভু বিলোকি জনু করত প্রসংসা৷৷
চক্রবাক বক খগ সমুদাঈ৷ দেখত বনই বরনি নহিং জাঈ৷৷
সুন্দর খগ গন গিরা সুহাঈ৷ জাত পথিক জনু লেত বোলাঈ৷৷
তাল সমীপ মুনিন্হ গৃহ ছাএ৷ চহু দিসি কানন বিটপ সুহাএ৷৷
চংপক বকুল কদংব তমালা৷ পাটল পনস পরাস রসালা৷৷
নব পল্লব কুসুমিত তরু নানা৷ চংচরীক পটলী কর গানা৷৷
সীতল মংদ সুগংধ সুভাঊ৷ সংতত বহই মনোহর বাঊ৷৷
কুহূ কুহূ কোকিল ধুনি করহীং৷ সুনি রব সরস ধ্যান মুনি টরহীং৷৷

2.2.40

चौपाई
সূখহিং অধর জরই সবু অংগূ৷ মনহুদীন মনিহীন ভুঅংগূ৷৷
সরুষ সমীপ দীখি কৈকেঈ৷ মানহুমীচু ঘরী গনি লেঈ৷৷
করুনাময মৃদু রাম সুভাঊ৷ প্রথম দীখ দুখু সুনা ন কাঊ৷৷
তদপি ধীর ধরি সমউ বিচারী৷ পূী মধুর বচন মহতারী৷৷
মোহি কহু মাতু তাত দুখ কারন৷ করিঅ জতন জেহিং হোই নিবারন৷৷
সুনহু রাম সবু কারন এহূ৷ রাজহি তুম পর বহুত সনেহূ৷৷
দেন কহেন্হি মোহি দুই বরদানা৷ মাগেউজো কছু মোহি সোহানা৷
সো সুনি ভযউ ভূপ উর সোচূ৷ ছাড়ি ন সকহিং তুম্হার সোচূ৷৷

2.1.40

चौपाई
রামভগতি সুরসরিতহি জাঈ৷ মিলী সুকীরতি সরজু সুহাঈ৷৷
সানুজ রাম সমর জসু পাবন৷ মিলেউ মহানদু সোন সুহাবন৷৷
জুগ বিচ ভগতি দেবধুনি ধারা৷ সোহতি সহিত সুবিরতি বিচারা৷৷
ত্রিবিধ তাপ ত্রাসক তিমুহানী৷ রাম সরুপ সিংধু সমুহানী৷৷
মানস মূল মিলী সুরসরিহী৷ সুনত সুজন মন পাবন করিহী৷৷
বিচ বিচ কথা বিচিত্র বিভাগা৷ জনু সরি তীর তীর বন বাগা৷৷
উমা মহেস বিবাহ বরাতী৷ তে জলচর অগনিত বহুভাী৷৷
রঘুবর জনম অনংদ বধাঈ৷ ভব তরংগ মনোহরতাঈ৷৷

1.7.40

चौपाई
लोभइ ओढ़न लोभइ डासन। सिस्त्रोदर पर जमपुर त्रास न।।
काहू की जौं सुनहिं बड़ाई। स्वास लेहिं जनु जूड़ी आई।।
जब काहू कै देखहिं बिपती। सुखी भए मानहुँ जग नृपती।।
स्वारथ रत परिवार बिरोधी। लंपट काम लोभ अति क्रोधी।।
मातु पिता गुर बिप्र न मानहिं। आपु गए अरु घालहिं आनहिं।।
करहिं मोह बस द्रोह परावा। संत संग हरि कथा न भावा।।
अवगुन सिंधु मंदमति कामी। बेद बिदूषक परधन स्वामी।।
बिप्र द्रोह पर द्रोह बिसेषा। दंभ कपट जियँ धरें सुबेषा।।

1.6.40

चौपाई
लंकाँ भयउ कोलाहल भारी। सुना दसानन अति अहँकारी।।
देखहु बनरन्ह केरि ढिठाई। बिहँसि निसाचर सेन बोलाई।।
आए कीस काल के प्रेरे। छुधावंत सब निसिचर मेरे।।
अस कहि अट्टहास सठ कीन्हा। गृह बैठे अहार बिधि दीन्हा।।
सुभट सकल चारिहुँ दिसि जाहू। धरि धरि भालु कीस सब खाहू।।
उमा रावनहि अस अभिमाना। जिमि टिट्टिभ खग सूत उताना।।
चले निसाचर आयसु मागी। गहि कर भिंडिपाल बर साँगी।।
तोमर मुग्दर परसु प्रचंडा। सुल कृपान परिघ गिरिखंडा।।
जिमि अरुनोपल निकर निहारी। धावहिं सठ खग मांस अहारी।।

1.5.40

चौपाई
माल्यवंत अति सचिव सयाना। तासु बचन सुनि अति सुख माना।।
तात अनुज तव नीति बिभूषन। सो उर धरहु जो कहत बिभीषन।।
रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ। दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ।।
माल्यवंत गृह गयउ बहोरी। कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी।।
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं।।
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना।।
तव उर कुमति बसी बिपरीता। हित अनहित मानहु रिपु प्रीता।।
कालराति निसिचर कुल केरी। तेहि सीता पर प्रीति घनेरी।।

दोहा/सोरठा

1.3.40

चौपाई
बिकसे सरसिज नाना रंगा। मधुर मुखर गुंजत बहु भृंगा।।
बोलत जलकुक्कुट कलहंसा। प्रभु बिलोकि जनु करत प्रसंसा।।
चक्रवाक बक खग समुदाई। देखत बनइ बरनि नहिं जाई।।
सुन्दर खग गन गिरा सुहाई। जात पथिक जनु लेत बोलाई।।
ताल समीप मुनिन्ह गृह छाए। चहु दिसि कानन बिटप सुहाए।।
चंपक बकुल कदंब तमाला। पाटल पनस परास रसाला।।
नव पल्लव कुसुमित तरु नाना। चंचरीक पटली कर गाना।।
सीतल मंद सुगंध सुभाऊ। संतत बहइ मनोहर बाऊ।।
कुहू कुहू कोकिल धुनि करहीं। सुनि रव सरस ध्यान मुनि टरहीं।।

1.2.40

चौपाई
सूखहिं अधर जरइ सबु अंगू। मनहुँ दीन मनिहीन भुअंगू।।
सरुष समीप दीखि कैकेई। मानहुँ मीचु घरी गनि लेई।।
करुनामय मृदु राम सुभाऊ। प्रथम दीख दुखु सुना न काऊ।।
तदपि धीर धरि समउ बिचारी। पूँछी मधुर बचन महतारी।।
मोहि कहु मातु तात दुख कारन। करिअ जतन जेहिं होइ निवारन।।
सुनहु राम सबु कारन एहू। राजहि तुम पर बहुत सनेहू।।
देन कहेन्हि मोहि दुइ बरदाना। मागेउँ जो कछु मोहि सोहाना।
सो सुनि भयउ भूप उर सोचू। छाड़ि न सकहिं तुम्हार सँकोचू।।

दोहा/सोरठा

1.1.40

चौपाई
रामभगति सुरसरितहि जाई। मिली सुकीरति सरजु सुहाई।।
सानुज राम समर जसु पावन। मिलेउ महानदु सोन सुहावन।।
जुग बिच भगति देवधुनि धारा। सोहति सहित सुबिरति बिचारा।।
त्रिबिध ताप त्रासक तिमुहानी। राम सरुप सिंधु समुहानी।।
मानस मूल मिली सुरसरिही। सुनत सुजन मन पावन करिही।।
बिच बिच कथा बिचित्र बिभागा। जनु सरि तीर तीर बन बागा।।
उमा महेस बिबाह बराती। ते जलचर अगनित बहुभाँती।।
रघुबर जनम अनंद बधाई। भवँर तरंग मनोहरताई।।

दोहा/सोरठा

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