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2.5.42

चौपाई
অস কহি চলা বিভীষনু জবহীং৷ আযূহীন ভএ সব তবহীং৷৷
সাধু অবগ্যা তুরত ভবানী৷ কর কল্যান অখিল কৈ হানী৷৷
রাবন জবহিং বিভীষন ত্যাগা৷ ভযউ বিভব বিনু তবহিং অভাগা৷৷
চলেউ হরষি রঘুনাযক পাহীং৷ করত মনোরথ বহু মন মাহীং৷৷
দেখিহউজাই চরন জলজাতা৷ অরুন মৃদুল সেবক সুখদাতা৷৷
জে পদ পরসি তরী রিষিনারী৷ দংডক কানন পাবনকারী৷৷
জে পদ জনকসুতাউর লাএ৷ কপট কুরংগ সংগ ধর ধাএ৷৷
হর উর সর সরোজ পদ জেঈ৷ অহোভাগ্য মৈ দেখিহউতেঈ৷৷

2.3.42

चौपाई
সুনহু উদার সহজ রঘুনাযক৷ সুংদর অগম সুগম বর দাযক৷৷
দেহু এক বর মাগউস্বামী৷ জদ্যপি জানত অংতরজামী৷৷
জানহু মুনি তুম্হ মোর সুভাঊ৷ জন সন কবহুকি করউদুরাঊ৷৷
কবন বস্তু অসি প্রিয মোহি লাগী৷ জো মুনিবর ন সকহু তুম্হ মাগী৷৷
জন কহুকছু অদেয নহিং মোরেং৷ অস বিস্বাস তজহু জনি ভোরেং৷৷
তব নারদ বোলে হরষাঈ ৷ অস বর মাগউকরউঢিঠাঈ৷৷
জদ্যপি প্রভু কে নাম অনেকা৷ শ্রুতি কহ অধিক এক তেং একা৷৷
রাম সকল নামন্হ তে অধিকা৷ হোউ নাথ অঘ খগ গন বধিকা৷৷

2.2.42

चौपाई
ভরত প্রানপ্রিয পাবহিং রাজূ৷ বিধি সব বিধি মোহি সনমুখ আজু৷
জোং ন জাউবন ঐসেহু কাজা৷ প্রথম গনিঅ মোহি মূঢ় সমাজা৷৷
সেবহিং অরু কলপতরু ত্যাগী৷ পরিহরি অমৃত লেহিং বিষু মাগী৷৷
তেউ ন পাই অস সমউ চুকাহীং৷ দেখু বিচারি মাতু মন মাহীং৷৷
অংব এক দুখু মোহি বিসেষী৷ নিপট বিকল নরনাযকু দেখী৷৷
থোরিহিং বাত পিতহি দুখ ভারী৷ হোতি প্রতীতি ন মোহি মহতারী৷৷
রাউ ধীর গুন উদধি অগাধূ৷ ভা মোহি তে কছু বড় অপরাধূ৷৷
জাতেং মোহি ন কহত কছু রাঊ৷ মোরি সপথ তোহি কহু সতিভাঊ৷৷

2.1.42

चौपाई
কীরতি সরিত ছহূরিতু রূরী৷ সময সুহাবনি পাবনি ভূরী৷৷
হিম হিমসৈলসুতা সিব ব্যাহূ৷ সিসির সুখদ প্রভু জনম উছাহূ৷৷
বরনব রাম বিবাহ সমাজূ৷ সো মুদ মংগলময রিতুরাজূ৷৷
গ্রীষম দুসহ রাম বনগবনূ৷ পংথকথা খর আতপ পবনূ৷৷
বরষা ঘোর নিসাচর রারী৷ সুরকুল সালি সুমংগলকারী৷৷
রাম রাজ সুখ বিনয বড়াঈ৷ বিসদ সুখদ সোই সরদ সুহাঈ৷৷
সতী সিরোমনি সিয গুনগাথা৷ সোই গুন অমল অনূপম পাথা৷৷
ভরত সুভাউ সুসীতলতাঈ৷ সদা একরস বরনি ন জাঈ৷৷

1.7.42

चौपाई
श्रीमुख बचन सुनत सब भाई। हरषे प्रेम न हृदयँ समाई।।
करहिं बिनय अति बारहिं बारा। हनूमान हियँ हरष अपारा।।
पुनि रघुपति निज मंदिर गए। एहि बिधि चरित करत नित नए।।
बार बार नारद मुनि आवहिं। चरित पुनीत राम के गावहिं।।
नित नव चरन देखि मुनि जाहीं। ब्रह्मलोक सब कथा कहाहीं।।
सुनि बिरंचि अतिसय सुख मानहिं। पुनि पुनि तात करहु गुन गानहिं।।
सनकादिक नारदहि सराहहिं। जद्यपि ब्रह्म निरत मुनि आहहिं।।
सुनि गुन गान समाधि बिसारी।। सादर सुनहिं परम अधिकारी।।

1.6.42

चौपाई
राम प्रताप प्रबल कपिजूथा। मर्दहिं निसिचर सुभट बरूथा।।
चढ़े दुर्ग पुनि जहँ तहँ बानर। जय रघुबीर प्रताप दिवाकर।।
चले निसाचर निकर पराई। प्रबल पवन जिमि घन समुदाई।।
हाहाकार भयउ पुर भारी। रोवहिं बालक आतुर नारी।।
सब मिलि देहिं रावनहि गारी। राज करत एहिं मृत्यु हँकारी।।
निज दल बिचल सुनी तेहिं काना। फेरि सुभट लंकेस रिसाना।।
जो रन बिमुख सुना मैं काना। सो मैं हतब कराल कृपाना।।
सर्बसु खाइ भोग करि नाना। समर भूमि भए बल्लभ प्राना।।
उग्र बचन सुनि सकल डेराने। चले क्रोध करि सुभट लजाने।।

1.5.42

चौपाई
अस कहि चला बिभीषनु जबहीं। आयूहीन भए सब तबहीं।।
साधु अवग्या तुरत भवानी। कर कल्यान अखिल कै हानी।।
रावन जबहिं बिभीषन त्यागा। भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा।।
चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं। करत मनोरथ बहु मन माहीं।।
देखिहउँ जाइ चरन जलजाता। अरुन मृदुल सेवक सुखदाता।।
जे पद परसि तरी रिषिनारी। दंडक कानन पावनकारी।।
जे पद जनकसुताँ उर लाए। कपट कुरंग संग धर धाए।।
हर उर सर सरोज पद जेई। अहोभाग्य मै देखिहउँ तेई।।

दोहा/सोरठा

1.3.42

चौपाई
सुनहु उदार सहज रघुनायक। सुंदर अगम सुगम बर दायक।।
देहु एक बर मागउँ स्वामी। जद्यपि जानत अंतरजामी।।
जानहु मुनि तुम्ह मोर सुभाऊ। जन सन कबहुँ कि करउँ दुराऊ।।
कवन बस्तु असि प्रिय मोहि लागी। जो मुनिबर न सकहु तुम्ह मागी।।
जन कहुँ कछु अदेय नहिं मोरें। अस बिस्वास तजहु जनि भोरें।।
तब नारद बोले हरषाई । अस बर मागउँ करउँ ढिठाई।।
जद्यपि प्रभु के नाम अनेका। श्रुति कह अधिक एक तें एका।।
राम सकल नामन्ह ते अधिका। होउ नाथ अघ खग गन बधिका।।

दोहा/सोरठा

1.2.42

चौपाई
भरत प्रानप्रिय पावहिं राजू। बिधि सब बिधि मोहि सनमुख आजु।
जों न जाउँ बन ऐसेहु काजा। प्रथम गनिअ मोहि मूढ़ समाजा।।
सेवहिं अरँडु कलपतरु त्यागी। परिहरि अमृत लेहिं बिषु मागी।।
तेउ न पाइ अस समउ चुकाहीं। देखु बिचारि मातु मन माहीं।।
अंब एक दुखु मोहि बिसेषी। निपट बिकल नरनायकु देखी।।
थोरिहिं बात पितहि दुख भारी। होति प्रतीति न मोहि महतारी।।
राउ धीर गुन उदधि अगाधू। भा मोहि ते कछु बड़ अपराधू।।
जातें मोहि न कहत कछु राऊ। मोरि सपथ तोहि कहु सतिभाऊ।।

1.1.42

चौपाई
कीरति सरित छहूँ रितु रूरी। समय सुहावनि पावनि भूरी।।
हिम हिमसैलसुता सिव ब्याहू। सिसिर सुखद प्रभु जनम उछाहू।।
बरनब राम बिबाह समाजू। सो मुद मंगलमय रितुराजू।।
ग्रीषम दुसह राम बनगवनू। पंथकथा खर आतप पवनू।।
बरषा घोर निसाचर रारी। सुरकुल सालि सुमंगलकारी।।
राम राज सुख बिनय बड़ाई। बिसद सुखद सोइ सरद सुहाई।।
सती सिरोमनि सिय गुनगाथा। सोइ गुन अमल अनूपम पाथा।।
भरत सुभाउ सुसीतलताई। सदा एकरस बरनि न जाई।।

दोहा/सोरठा

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