43

2.5.43

चौपाई
এহি বিধি করত সপ্রেম বিচারা৷ আযউ সপদি সিংধু এহিং পারা৷৷
কপিন্হ বিভীষনু আবত দেখা৷ জানা কোউ রিপু দূত বিসেষা৷৷
তাহি রাখি কপীস পহিং আএ৷ সমাচার সব তাহি সুনাএ৷৷
কহ সুগ্রীব সুনহু রঘুরাঈ৷ আবা মিলন দসানন ভাঈ৷৷
কহ প্রভু সখা বূঝিঐ কাহা৷ কহই কপীস সুনহু নরনাহা৷৷
জানি ন জাই নিসাচর মাযা৷ কামরূপ কেহি কারন আযা৷৷
ভেদ হমার লেন সঠ আবা৷ রাখিঅ বাি মোহি অস ভাবা৷৷
সখা নীতি তুম্হ নীকি বিচারী৷ মম পন সরনাগত ভযহারী৷৷
সুনি প্রভু বচন হরষ হনুমানা৷ সরনাগত বচ্ছল ভগবানা৷৷

2.3.43

चौपाई
অতি প্রসন্ন রঘুনাথহি জানী৷ পুনি নারদ বোলে মৃদু বানী৷৷
রাম জবহিং প্রেরেউ নিজ মাযা৷ মোহেহু মোহি সুনহু রঘুরাযা৷৷
তব বিবাহ মৈং চাহউকীন্হা৷ প্রভু কেহি কারন করৈ ন দীন্হা৷৷
সুনু মুনি তোহি কহউসহরোসা৷ ভজহিং জে মোহি তজি সকল ভরোসা৷৷
করউসদা তিন্হ কৈ রখবারী৷ জিমি বালক রাখই মহতারী৷৷
গহ সিসু বচ্ছ অনল অহি ধাঈ৷ তহরাখই জননী অরগাঈ৷৷
প্রৌঢ় ভএতেহি সুত পর মাতা৷ প্রীতি করই নহিং পাছিলি বাতা৷৷
মোরে প্রৌঢ় তনয সম গ্যানী৷ বালক সুত সম দাস অমানী৷৷
জনহি মোর বল নিজ বল তাহী৷ দুহু কহকাম ক্রোধ রিপু আহী৷৷

2.2.43

चौपाई
রহসী রানি রাম রুখ পাঈ৷ বোলী কপট সনেহু জনাঈ৷৷
সপথ তুম্হার ভরত কৈ আনা৷ হেতু ন দূসর মৈ কছু জানা৷৷
তুম্হ অপরাধ জোগু নহিং তাতা৷ জননী জনক বংধু সুখদাতা৷৷
রাম সত্য সবু জো কছু কহহূ৷ তুম্হ পিতু মাতু বচন রত অহহূ৷৷
পিতহি বুঝাই কহহু বলি সোঈ৷ চৌথেংপন জেহিং অজসু ন হোঈ৷৷
তুম্হ সম সুঅন সুকৃত জেহিং দীন্হে৷ উচিত ন তাসু নিরাদরু কীন্হে৷৷
লাগহিং কুমুখ বচন সুভ কৈসে৷ মগহগযাদিক তীরথ জৈসে৷৷
রামহি মাতু বচন সব ভাএ৷ জিমি সুরসরি গত সলিল সুহাএ৷৷

2.1.43

चौपाई
আরতি বিনয দীনতা মোরী৷ লঘুতা ললিত সুবারি ন থোরী৷৷
অদভুত সলিল সুনত গুনকারী৷ আস পিআস মনোমল হারী৷৷
রাম সুপ্রেমহি পোষত পানী৷ হরত সকল কলি কলুষ গলানৌ৷৷
ভব শ্রম সোষক তোষক তোষা৷ সমন দুরিত দুখ দারিদ দোষা৷৷
কাম কোহ মদ মোহ নসাবন৷ বিমল বিবেক বিরাগ বঢ়াবন৷৷
সাদর মজ্জন পান কিএ তেং৷ মিটহিং পাপ পরিতাপ হিএ তেং৷৷
জিন্হ এহি বারি ন মানস ধোএ৷ তে কাযর কলিকাল বিগোএ৷৷
তৃষিত নিরখি রবি কর ভব বারী৷ ফিরিহহি মৃগ জিমি জীব দুখারী৷৷

1.7.43

चौपाई
एक बार रघुनाथ बोलाए। गुर द्विज पुरबासी सब आए।।
बैठे गुर मुनि अरु द्विज सज्जन। बोले बचन भगत भव भंजन।।
सनहु सकल पुरजन मम बानी। कहउँ न कछु ममता उर आनी।।
नहिं अनीति नहिं कछु प्रभुताई। सुनहु करहु जो तुम्हहि सोहाई।।
सोइ सेवक प्रियतम मम सोई। मम अनुसासन मानै जोई।।
जौं अनीति कछु भाषौं भाई। तौं मोहि बरजहु भय बिसराई।।
बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथिन्ह गावा।।
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा।।

1.6.43

चौपाई
भय आतुर कपि भागन लागे। जद्यपि उमा जीतिहहिं आगे।।
कोउ कह कहँ अंगद हनुमंता। कहँ नल नील दुबिद बलवंता।।
निज दल बिकल सुना हनुमाना। पच्छिम द्वार रहा बलवाना।।
मेघनाद तहँ करइ लराई। टूट न द्वार परम कठिनाई।।
पवनतनय मन भा अति क्रोधा। गर्जेउ प्रबल काल सम जोधा।।
कूदि लंक गढ़ ऊपर आवा। गहि गिरि मेघनाद कहुँ धावा।।
भंजेउ रथ सारथी निपाता। ताहि हृदय महुँ मारेसि लाता।।
दुसरें सूत बिकल तेहि जाना। स्यंदन घालि तुरत गृह आना।।

दोहा/सोरठा

1.5.43

चौपाई
एहि बिधि करत सप्रेम बिचारा। आयउ सपदि सिंधु एहिं पारा।।
कपिन्ह बिभीषनु आवत देखा। जाना कोउ रिपु दूत बिसेषा।।
ताहि राखि कपीस पहिं आए। समाचार सब ताहि सुनाए।।
कह सुग्रीव सुनहु रघुराई। आवा मिलन दसानन भाई।।
कह प्रभु सखा बूझिऐ काहा। कहइ कपीस सुनहु नरनाहा।।
जानि न जाइ निसाचर माया। कामरूप केहि कारन आया।।
भेद हमार लेन सठ आवा। राखिअ बाँधि मोहि अस भावा।।
सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी। मम पन सरनागत भयहारी।।
सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना। सरनागत बच्छल भगवाना।।

1.3.43

चौपाई
अति प्रसन्न रघुनाथहि जानी। पुनि नारद बोले मृदु बानी।।
राम जबहिं प्रेरेउ निज माया। मोहेहु मोहि सुनहु रघुराया।।
तब बिबाह मैं चाहउँ कीन्हा। प्रभु केहि कारन करै न दीन्हा।।
सुनु मुनि तोहि कहउँ सहरोसा। भजहिं जे मोहि तजि सकल भरोसा।।
करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी। जिमि बालक राखइ महतारी।।
गह सिसु बच्छ अनल अहि धाई। तहँ राखइ जननी अरगाई।।
प्रौढ़ भएँ तेहि सुत पर माता। प्रीति करइ नहिं पाछिलि बाता।।
मोरे प्रौढ़ तनय सम ग्यानी। बालक सुत सम दास अमानी।।

1.2.43

चौपाई
रहसी रानि राम रुख पाई। बोली कपट सनेहु जनाई।।
सपथ तुम्हार भरत कै आना। हेतु न दूसर मै कछु जाना।।
तुम्ह अपराध जोगु नहिं ताता। जननी जनक बंधु सुखदाता।।
राम सत्य सबु जो कछु कहहू। तुम्ह पितु मातु बचन रत अहहू।।
पितहि बुझाइ कहहु बलि सोई। चौथेंपन जेहिं अजसु न होई।।
तुम्ह सम सुअन सुकृत जेहिं दीन्हे। उचित न तासु निरादरु कीन्हे।।
लागहिं कुमुख बचन सुभ कैसे। मगहँ गयादिक तीरथ जैसे।।
रामहि मातु बचन सब भाए। जिमि सुरसरि गत सलिल सुहाए।।

दोहा/सोरठा

1.1.43

चौपाई
आरति बिनय दीनता मोरी। लघुता ललित सुबारि न थोरी।।
अदभुत सलिल सुनत गुनकारी। आस पिआस मनोमल हारी।।
राम सुप्रेमहि पोषत पानी। हरत सकल कलि कलुष गलानी।।
भव श्रम सोषक तोषक तोषा। समन दुरित दुख दारिद दोषा।।
काम कोह मद मोह नसावन। बिमल बिबेक बिराग बढ़ावन।।
सादर मज्जन पान किए तें। मिटहिं पाप परिताप हिए तें।।
जिन्ह एहि बारि न मानस धोए। ते कायर कलिकाल बिगोए।।
तृषित निरखि रबि कर भव बारी। फिरिहहि मृग जिमि जीव दुखारी।।

दोहा/सोरठा

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