44

2.5.44

चौपाई
কোটি বিপ্র বধ লাগহিং জাহূ৷ আএসরন তজউনহিং তাহূ৷৷
সনমুখ হোই জীব মোহি জবহীং৷ জন্ম কোটি অঘ নাসহিং তবহীং৷৷
পাপবংত কর সহজ সুভাঊ৷ ভজনু মোর তেহি ভাব ন কাঊ৷৷
জৌং পৈ দুষ্টহদয সোই হোঈ৷ মোরেং সনমুখ আব কি সোঈ৷৷
নির্মল মন জন সো মোহি পাবা৷ মোহি কপট ছল ছিদ্র ন ভাবা৷৷
ভেদ লেন পঠবা দসসীসা৷ তবহুন কছু ভয হানি কপীসা৷৷
জগ মহুসখা নিসাচর জেতে৷ লছিমনু হনই নিমিষ মহুতেতে৷৷
জৌং সভীত আবা সরনাঈ৷ রখিহউতাহি প্রান কী নাঈ৷৷

2.3.44

चौपाई
সুনি মুনি কহ পুরান শ্রুতি সংতা৷ মোহ বিপিন কহুনারি বসংতা৷৷
জপ তপ নেম জলাশ্রয ঝারী৷ হোই গ্রীষম সোষই সব নারী৷৷
কাম ক্রোধ মদ মত্সর ভেকা৷ ইন্হহি হরষপ্রদ বরষা একা৷৷
দুর্বাসনা কুমুদ সমুদাঈ৷ তিন্হ কহসরদ সদা সুখদাঈ৷৷
ধর্ম সকল সরসীরুহ বৃংদা৷ হোই হিম তিন্হহি দহই সুখ মংদা৷৷
পুনি মমতা জবাস বহুতাঈ৷ পলুহই নারি সিসির রিতু পাঈ৷৷
পাপ উলূক নিকর সুখকারী৷ নারি নিবিড় রজনী অিআরী৷৷
বুধি বল সীল সত্য সব মীনা৷ বনসী সম ত্রিয কহহিং প্রবীনা৷৷

2.2.44

चौपाई
অবনিপ অকনি রামু পগু ধারে৷ ধরি ধীরজু তব নযন উঘারে৷৷
সচিবসারি রাউ বৈঠারে৷ চরন পরত নৃপ রামু নিহারে৷৷
লিএ সনেহ বিকল উর লাঈ৷ গৈ মনি মনহুফনিক ফিরি পাঈ৷৷
রামহি চিতই রহেউ নরনাহূ৷ চলা বিলোচন বারি প্রবাহূ৷৷
সোক বিবস কছু কহৈ ন পারা৷ হৃদযলগাবত বারহিং বারা৷৷
বিধিহি মনাব রাউ মন মাহীং৷ জেহিং রঘুনাথ ন কানন জাহীং৷৷
সুমিরি মহেসহি কহই নিহোরী৷ বিনতী সুনহু সদাসিব মোরী৷৷
আসুতোষ তুম্হ অবঢর দানী৷ আরতি হরহু দীন জনু জানী৷৷

2.1.44

चौपाई
ভরদ্বাজ মুনি বসহিং প্রযাগা৷ তিন্হহি রাম পদ অতি অনুরাগা৷৷
তাপস সম দম দযা নিধানা৷ পরমারথ পথ পরম সুজানা৷৷
মাঘ মকরগত রবি জব হোঈ৷ তীরথপতিহিং আব সব কোঈ৷৷
দেব দনুজ কিংনর নর শ্রেনী৷ সাদর মজ্জহিং সকল ত্রিবেনীং৷৷
পূজহি মাধব পদ জলজাতা৷ পরসি অখয বটু হরষহিং গাতা৷৷
ভরদ্বাজ আশ্রম অতি পাবন৷ পরম রম্য মুনিবর মন ভাবন৷৷
তহাহোই মুনি রিষয সমাজা৷ জাহিং জে মজ্জন তীরথরাজা৷৷
মজ্জহিং প্রাত সমেত উছাহা৷ কহহিং পরসপর হরি গুন গাহা৷৷

1.7.44

चौपाई
एहि तन कर फल बिषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई।।
नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं।।
ताहि कबहुँ भल कहइ न कोई। गुंजा ग्रहइ परस मनि खोई।।
आकर चारि लच्छ चौरासी। जोनि भ्रमत यह जिव अबिनासी।।
फिरत सदा माया कर प्रेरा। काल कर्म सुभाव गुन घेरा।।
कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस बिनु हेतु सनेही।।
नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो।।
करनधार सदगुर दृढ़ नावा। दुर्लभ साज सुलभ करि पावा।।

1.6.44

चौपाई
जुद्ध बिरुद्ध क्रुद्ध द्वौ बंदर। राम प्रताप सुमिरि उर अंतर।।
रावन भवन चढ़े द्वौ धाई। करहि कोसलाधीस दोहाई।।
कलस सहित गहि भवनु ढहावा। देखि निसाचरपति भय पावा।।
नारि बृंद कर पीटहिं छाती। अब दुइ कपि आए उतपाती।।
कपिलीला करि तिन्हहि डेरावहिं। रामचंद्र कर सुजसु सुनावहिं।।
पुनि कर गहि कंचन के खंभा। कहेन्हि करिअ उतपात अरंभा।।
गर्जि परे रिपु कटक मझारी। लागे मर्दै भुज बल भारी।।
काहुहि लात चपेटन्हि केहू। भजहु न रामहि सो फल लेहू।।

दोहा/सोरठा

1.5.44

चौपाई
कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू। आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू।।
सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं।।
पापवंत कर सहज सुभाऊ। भजनु मोर तेहि भाव न काऊ।।
जौं पै दुष्टहदय सोइ होई। मोरें सनमुख आव कि सोई।।
निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।
भेद लेन पठवा दससीसा। तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा।।
जग महुँ सखा निसाचर जेते। लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते।।
जौं सभीत आवा सरनाई। रखिहउँ ताहि प्रान की नाई।।

दोहा/सोरठा

1.3.44

चौपाई
सुनि मुनि कह पुरान श्रुति संता। मोह बिपिन कहुँ नारि बसंता।।
जप तप नेम जलाश्रय झारी। होइ ग्रीषम सोषइ सब नारी।।
काम क्रोध मद मत्सर भेका। इन्हहि हरषप्रद बरषा एका।।
दुर्बासना कुमुद समुदाई। तिन्ह कहँ सरद सदा सुखदाई।।
धर्म सकल सरसीरुह बृंदा। होइ हिम तिन्हहि दहइ सुख मंदा।।
पुनि ममता जवास बहुताई। पलुहइ नारि सिसिर रितु पाई।।
पाप उलूक निकर सुखकारी। नारि निबिड़ रजनी अँधिआरी।।
बुधि बल सील सत्य सब मीना। बनसी सम त्रिय कहहिं प्रबीना।।

दोहा/सोरठा

1.2.44

चौपाई
अवनिप अकनि रामु पगु धारे। धरि धीरजु तब नयन उघारे।।
सचिवँ सँभारि राउ बैठारे। चरन परत नृप रामु निहारे।।
लिए सनेह बिकल उर लाई। गै मनि मनहुँ फनिक फिरि पाई।।
रामहि चितइ रहेउ नरनाहू। चला बिलोचन बारि प्रबाहू।।
सोक बिबस कछु कहै न पारा। हृदयँ लगावत बारहिं बारा।।
बिधिहि मनाव राउ मन माहीं। जेहिं रघुनाथ न कानन जाहीं।।
सुमिरि महेसहि कहइ निहोरी। बिनती सुनहु सदासिव मोरी।।
आसुतोष तुम्ह अवढर दानी। आरति हरहु दीन जनु जानी।।

दोहा/सोरठा

1.1.44

चौपाई
भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुरागा।।
तापस सम दम दया निधाना। परमारथ पथ परम सुजाना।।
माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई।।
देव दनुज किंनर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं।।
पूजहि माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता।।
भरद्वाज आश्रम अति पावन। परम रम्य मुनिबर मन भावन।।
तहाँ होइ मुनि रिषय समाजा। जाहिं जे मज्जन तीरथराजा।।
मज्जहिं प्रात समेत उछाहा। कहहिं परसपर हरि गुन गाहा।।

दोहा/सोरठा

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