45

2.5.45

चौपाई
সাদর তেহি আগেং করি বানর৷ চলে জহারঘুপতি করুনাকর৷৷
দূরিহি তে দেখে দ্বৌ ভ্রাতা৷ নযনানংদ দান কে দাতা৷৷
বহুরি রাম ছবিধাম বিলোকী৷ রহেউ ঠটুকি একটক পল রোকী৷৷
ভুজ প্রলংব কংজারুন লোচন৷ স্যামল গাত প্রনত ভয মোচন৷৷
সিংঘ কংধ আযত উর সোহা৷ আনন অমিত মদন মন মোহা৷৷
নযন নীর পুলকিত অতি গাতা৷ মন ধরি ধীর কহী মৃদু বাতা৷৷
নাথ দসানন কর মৈং ভ্রাতা৷ নিসিচর বংস জনম সুরত্রাতা৷৷
সহজ পাপপ্রিয তামস দেহা৷ জথা উলূকহি তম পর নেহা৷৷

2.3.45

चौपाई
সুনি রঘুপতি কে বচন সুহাএ৷ মুনি তন পুলক নযন ভরি আএ৷৷
কহহু কবন প্রভু কৈ অসি রীতী৷ সেবক পর মমতা অরু প্রীতী৷৷
জে ন ভজহিং অস প্রভু ভ্রম ত্যাগী৷ গ্যান রংক নর মংদ অভাগী৷৷
পুনি সাদর বোলে মুনি নারদ৷ সুনহু রাম বিগ্যান বিসারদ৷৷
সংতন্হ কে লচ্ছন রঘুবীরা৷ কহহু নাথ ভব ভংজন ভীরা৷৷
সুনু মুনি সংতন্হ কে গুন কহঊ জিন্হ তে মৈং উন্হ কেং বস রহঊ৷
ষট বিকার জিত অনঘ অকামা৷ অচল অকিংচন সুচি সুখধামা৷৷
অমিতবোধ অনীহ মিতভোগী৷ সত্যসার কবি কোবিদ জোগী৷৷
সাবধান মানদ মদহীনা৷ ধীর ধর্ম গতি পরম প্রবীনা৷৷

2.2.45

चौपाई
অজসু হোউ জগ সুজসু নসাঊ৷ নরক পরৌ বরু সুরপুরু জাঊ৷৷
সব দুখ দুসহ সহাবহু মোহী৷ লোচন ওট রামু জনি হোংহী৷৷
অস মন গুনই রাউ নহিং বোলা৷ পীপর পাত সরিস মনু ডোলা৷৷
রঘুপতি পিতহি প্রেমবস জানী৷ পুনি কছু কহিহি মাতু অনুমানী৷৷
দেস কাল অবসর অনুসারী৷ বোলে বচন বিনীত বিচারী৷৷
তাত কহউকছু করউঢিঠাঈ৷ অনুচিতু ছমব জানি লরিকাঈ৷৷
অতি লঘু বাত লাগি দুখু পাবা৷ কাহুন মোহি কহি প্রথম জনাবা৷৷
দেখি গোসাইি পূিউমাতা৷ সুনি প্রসংগু ভএ সীতল গাতা৷৷

2.1.45

चौपाई
নাথ এক সংসউ বড় মোরেং৷ করগত বেদতত্ব সবু তোরেং৷৷
কহত সো মোহি লাগত ভয লাজা৷ জৌ ন কহউবড় হোই অকাজা৷৷
এহি প্রকার ভরি মাঘ নহাহীং৷ পুনি সব নিজ নিজ আশ্রম জাহীং৷৷
প্রতি সংবত অতি হোই অনংদা৷ মকর মজ্জি গবনহিং মুনিবৃংদা৷৷
এক বার ভরি মকর নহাএ৷ সব মুনীস আশ্রমন্হ সিধাএ৷৷
জগবালিক মুনি পরম বিবেকী৷ ভরব্দাজ রাখে পদ টেকী৷৷
সাদর চরন সরোজ পখারে৷ অতি পুনীত আসন বৈঠারে৷৷
করি পূজা মুনি সুজস বখানী৷ বোলে অতি পুনীত মৃদু বানী৷৷

1.7.45

चौपाई
जौं परलोक इहाँ सुख चहहू। सुनि मम बचन ह्रृदयँ दृढ़ गहहू।।
सुलभ सुखद मारग यह भाई। भगति मोरि पुरान श्रुति गाई।।
ग्यान अगम प्रत्यूह अनेका। साधन कठिन न मन कहुँ टेका।।
करत कष्ट बहु पावइ कोऊ। भक्ति हीन मोहि प्रिय नहिं सोऊ।।
भक्ति सुतंत्र सकल सुख खानी। बिनु सतसंग न पावहिं प्रानी।।
पुन्य पुंज बिनु मिलहिं न संता। सतसंगति संसृति कर अंता।।
पुन्य एक जग महुँ नहिं दूजा। मन क्रम बचन बिप्र पद पूजा।।
सानुकूल तेहि पर मुनि देवा। जो तजि कपटु करइ द्विज सेवा।।

1.6.45

चौपाई
महा महा मुखिआ जे पावहिं। ते पद गहि प्रभु पास चलावहिं।।
कहइ बिभीषनु तिन्ह के नामा। देहिं राम तिन्हहू निज धामा।।
खल मनुजाद द्विजामिष भोगी। पावहिं गति जो जाचत जोगी।।
उमा राम मृदुचित करुनाकर। बयर भाव सुमिरत मोहि निसिचर।।
देहिं परम गति सो जियँ जानी। अस कृपाल को कहहु भवानी।।
अस प्रभु सुनि न भजहिं भ्रम त्यागी। नर मतिमंद ते परम अभागी।।
अंगद अरु हनुमंत प्रबेसा। कीन्ह दुर्ग अस कह अवधेसा।।
लंकाँ द्वौ कपि सोहहिं कैसें। मथहि सिंधु दुइ मंदर जैसें।।

1.5.45

चौपाई
सादर तेहि आगें करि बानर। चले जहाँ रघुपति करुनाकर।।
दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता। नयनानंद दान के दाता।।
बहुरि राम छबिधाम बिलोकी। रहेउ ठटुकि एकटक पल रोकी।।
भुज प्रलंब कंजारुन लोचन। स्यामल गात प्रनत भय मोचन।।
सिंघ कंध आयत उर सोहा। आनन अमित मदन मन मोहा।।
नयन नीर पुलकित अति गाता। मन धरि धीर कही मृदु बाता।।
नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता।।
सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा।।

दोहा/सोरठा

1.3.45

चौपाई
सुनि रघुपति के बचन सुहाए। मुनि तन पुलक नयन भरि आए।।
कहहु कवन प्रभु कै असि रीती। सेवक पर ममता अरु प्रीती।।
जे न भजहिं अस प्रभु भ्रम त्यागी। ग्यान रंक नर मंद अभागी।।
पुनि सादर बोले मुनि नारद। सुनहु राम बिग्यान बिसारद।।
संतन्ह के लच्छन रघुबीरा। कहहु नाथ भव भंजन भीरा।।
सुनु मुनि संतन्ह के गुन कहऊँ। जिन्ह ते मैं उन्ह कें बस रहऊँ।।
षट बिकार जित अनघ अकामा। अचल अकिंचन सुचि सुखधामा।।
अमितबोध अनीह मितभोगी। सत्यसार कबि कोबिद जोगी।।
सावधान मानद मदहीना। धीर धर्म गति परम प्रबीना।।

1.2.45

चौपाई
अजसु होउ जग सुजसु नसाऊ। नरक परौ बरु सुरपुरु जाऊ।।
सब दुख दुसह सहावहु मोही। लोचन ओट रामु जनि होंही।।
अस मन गुनइ राउ नहिं बोला। पीपर पात सरिस मनु डोला।।
रघुपति पितहि प्रेमबस जानी। पुनि कछु कहिहि मातु अनुमानी।।
देस काल अवसर अनुसारी। बोले बचन बिनीत बिचारी।।
तात कहउँ कछु करउँ ढिठाई। अनुचितु छमब जानि लरिकाई।।
अति लघु बात लागि दुखु पावा। काहुँ न मोहि कहि प्रथम जनावा।।
देखि गोसाइँहि पूँछिउँ माता। सुनि प्रसंगु भए सीतल गाता।।

दोहा/सोरठा

1.1.45

चौपाई
एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं। पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं।। 
प्रति संबत अति होइ अनंदा। मकर मज्जि गवनहिं मुनिबृंदा।।
एक बार भरि मकर नहाए। सब मुनीस आश्रमन्ह सिधाए।। 
जगबालिक मुनि परम बिबेकी। भरव्दाज राखे पद टेकी।।
सादर चरन सरोज पखारे। अति पुनीत आसन बैठारे।। 
करि पूजा मुनि सुजस बखानी। बोले अति पुनीत मृदु बानी।।
नाथ एक संसउ बड़ मोरें। करगत बेदतत्व सबु तोरें।।
कहत सो मोहि लागत भय लाजा। जौ न कहउँ बड़ होइ अकाजा।।

दोहा/सोरठा

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