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2.5.46

चौपाई
অস কহি করত দংডবত দেখা৷ তুরত উঠে প্রভু হরষ বিসেষা৷৷
দীন বচন সুনি প্রভু মন ভাবা৷ ভুজ বিসাল গহি হৃদযলগাবা৷৷
অনুজ সহিত মিলি ঢিগ বৈঠারী৷ বোলে বচন ভগত ভযহারী৷৷
কহু লংকেস সহিত পরিবারা৷ কুসল কুঠাহর বাস তুম্হারা৷৷
খল মংডলীং বসহু দিনু রাতী৷ সখা ধরম নিবহই কেহি ভাী৷৷
মৈং জানউতুম্হারি সব রীতী৷ অতি নয নিপুন ন ভাব অনীতী৷৷
বরু ভল বাস নরক কর তাতা৷ দুষ্ট সংগ জনি দেই বিধাতা৷৷
অব পদ দেখি কুসল রঘুরাযা৷ জৌং তুম্হ কীন্হ জানি জন দাযা৷৷

2.3.46

चौपाई
নিজ গুন শ্রবন সুনত সকুচাহীং৷ পর গুন সুনত অধিক হরষাহীং৷৷
সম সীতল নহিং ত্যাগহিং নীতী৷ সরল সুভাউ সবহিং সন প্রীতী৷৷
জপ তপ ব্রত দম সংজম নেমা৷ গুরু গোবিংদ বিপ্র পদ প্রেমা৷৷
শ্রদ্ধা ছমা মযত্রী দাযা৷ মুদিতা মম পদ প্রীতি অমাযা৷৷
বিরতি বিবেক বিনয বিগ্যানা৷ বোধ জথারথ বেদ পুরানা৷৷
দংভ মান মদ করহিং ন কাঊ৷ ভূলি ন দেহিং কুমারগ পাঊ৷৷
গাবহিং সুনহিং সদা মম লীলা৷ হেতু রহিত পরহিত রত সীলা৷৷
মুনি সুনু সাধুন্হ কে গুন জেতে৷ কহি ন সকহিং সারদ শ্রুতি তেতে৷৷

2.2.46

चौपाई
ধন্য জনমু জগতীতল তাসূ৷ পিতহি প্রমোদু চরিত সুনি জাসূ৷৷
চারি পদারথ করতল তাকেং৷ প্রিয পিতু মাতু প্রান সম জাকেং৷৷
আযসু পালি জনম ফলু পাঈ৷ ঐহউবেগিহিং হোউ রজাঈ৷৷
বিদা মাতু সন আবউমাগী৷ চলিহউবনহি বহুরি পগ লাগী৷৷
অস কহি রাম গবনু তব কীন্হা৷ ভূপ সোক বসু উতরু ন দীন্হা৷৷
নগর ব্যাপি গই বাত সুতীছী৷ ছুঅত চঢ়ী জনু সব তন বীছী৷৷
সুনি ভএ বিকল সকল নর নারী৷ বেলি বিটপ জিমি দেখি দবারী৷৷
জো জহসুনই ধুনই সিরু সোঈ৷ বড় বিষাদু নহিং ধীরজু হোঈ৷৷

2.1.46

चौपाई
অস বিচারি প্রগটউনিজ মোহূ৷ হরহু নাথ করি জন পর ছোহূ৷৷
রাস নাম কর অমিত প্রভাবা৷ সংত পুরান উপনিষদ গাবা৷৷
সংতত জপত সংভু অবিনাসী৷ সিব ভগবান গ্যান গুন রাসী৷৷
আকর চারি জীব জগ অহহীং৷ কাসীং মরত পরম পদ লহহীং৷৷
সোপি রাম মহিমা মুনিরাযা৷ সিব উপদেসু করত করি দাযা৷৷
রামু কবন প্রভু পূছউতোহী৷ কহিঅ বুঝাই কৃপানিধি মোহী৷৷
এক রাম অবধেস কুমারা৷ তিন্হ কর চরিত বিদিত সংসারা৷৷
নারি বিরহদুখু লহেউ অপারা৷ ভযহু রোষু রন রাবনু মারা৷৷

1.7.46

चौपाई
कहहु भगति पथ कवन प्रयासा। जोग न मख जप तप उपवासा।।
सरल सुभाव न मन कुटिलाई। जथा लाभ संतोष सदाई।।
मोर दास कहाइ नर आसा। करइ तौ कहहु कहा बिस्वासा।।
बहुत कहउँ का कथा बढ़ाई। एहि आचरन बस्य मैं भाई।।
बैर न बिग्रह आस न त्रासा। सुखमय ताहि सदा सब आसा।।
अनारंभ अनिकेत अमानी। अनघ अरोष दच्छ बिग्यानी।।
प्रीति सदा सज्जन संसर्गा। तृन सम बिषय स्वर्ग अपबर्गा।।
भगति पच्छ हठ नहिं सठताई। दुष्ट तर्क सब दूरि बहाई।।

1.6.46

चौपाई
प्रभु पद कमल सीस तिन्ह नाए। देखि सुभट रघुपति मन भाए।।
राम कृपा करि जुगल निहारे। भए बिगतश्रम परम सुखारे।।
गए जानि अंगद हनुमाना। फिरे भालु मर्कट भट नाना।।
जातुधान प्रदोष बल पाई। धाए करि दससीस दोहाई।।
निसिचर अनी देखि कपि फिरे। जहँ तहँ कटकटाइ भट भिरे।।
द्वौ दल प्रबल पचारि पचारी। लरत सुभट नहिं मानहिं हारी।।
महाबीर निसिचर सब कारे। नाना बरन बलीमुख भारे।।
सबल जुगल दल समबल जोधा। कौतुक करत लरत करि क्रोधा।।
प्राबिट सरद पयोद घनेरे। लरत मनहुँ मारुत के प्रेरे।।

1.5.46

चौपाई
अस कहि करत दंडवत देखा। तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा।।
दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा।।
अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी। बोले बचन भगत भयहारी।।
कहु लंकेस सहित परिवारा। कुसल कुठाहर बास तुम्हारा।।
खल मंडलीं बसहु दिनु राती। सखा धरम निबहइ केहि भाँती।।
मैं जानउँ तुम्हारि सब रीती। अति नय निपुन न भाव अनीती।।
बरु भल बास नरक कर ताता। दुष्ट संग जनि देइ बिधाता।।
अब पद देखि कुसल रघुराया। जौं तुम्ह कीन्ह जानि जन दाया।।

दोहा/सोरठा

1.3.46

चौपाई
निज गुन श्रवन सुनत सकुचाहीं। पर गुन सुनत अधिक हरषाहीं।।
सम सीतल नहिं त्यागहिं नीती। सरल सुभाउ सबहिं सन प्रीती।।
जप तप ब्रत दम संजम नेमा। गुरु गोबिंद बिप्र पद प्रेमा।।
श्रद्धा छमा मयत्री दाया। मुदिता मम पद प्रीति अमाया।।
बिरति बिबेक बिनय बिग्याना। बोध जथारथ बेद पुराना।।
दंभ मान मद करहिं न काऊ। भूलि न देहिं कुमारग पाऊ।।
गावहिं सुनहिं सदा मम लीला। हेतु रहित परहित रत सीला।।
मुनि सुनु साधुन्ह के गुन जेते। कहि न सकहिं सारद श्रुति तेते।।

1.2.46

चौपाई
धन्य जनमु जगतीतल तासू। पितहि प्रमोदु चरित सुनि जासू।।
चारि पदारथ करतल ताकें। प्रिय पितु मातु प्रान सम जाकें।।
आयसु पालि जनम फलु पाई। ऐहउँ बेगिहिं होउ रजाई।।
बिदा मातु सन आवउँ मागी। चलिहउँ बनहि बहुरि पग लागी।।
अस कहि राम गवनु तब कीन्हा। भूप सोक बसु उतरु न दीन्हा।।
नगर ब्यापि गइ बात सुतीछी। छुअत चढ़ी जनु सब तन बीछी।।
सुनि भए बिकल सकल नर नारी। बेलि बिटप जिमि देखि दवारी।।
जो जहँ सुनइ धुनइ सिरु सोई। बड़ बिषादु नहिं धीरजु होई।।

दोहा/सोरठा

1.1.46

चौपाई
अस बिचारि प्रगटउँ निज मोहू। हरहु नाथ करि जन पर छोहू।।
राम नाम कर अमित प्रभावा। संत पुरान उपनिषद गावा।।
संतत जपत संभु अबिनासी। सिव भगवान ग्यान गुन रासी।।
आकर चारि जीव जग अहहीं। कासीं मरत परम पद लहहीं।।
सोपि राम महिमा मुनिराया। सिव उपदेसु करत करि दाया।।
रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही। कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही।।
एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा।।
नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा। भयहु रोषु रन रावनु मारा।।

दोहा/सोरठा

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