4

2.3.4

छंद
নমামি ভক্ত বত্সলং৷ কৃপালু শীল কোমলং৷৷
ভজামি তে পদাংবুজং৷ অকামিনাং স্বধামদং৷৷
নিকাম শ্যাম সুংদরং৷ ভবাম্বুনাথ মংদরং৷৷
প্রফুল্ল কংজ লোচনং৷ মদাদি দোষ মোচনং৷৷
প্রলংব বাহু বিক্রমং৷ প্রভোপ্রমেয বৈভবং৷৷
নিষংগ চাপ সাযকং৷ ধরং ত্রিলোক নাযকং৷৷
দিনেশ বংশ মংডনং৷ মহেশ চাপ খংডনং৷৷
মুনীংদ্র সংত রংজনং৷ সুরারি বৃংদ ভংজনং৷৷
মনোজ বৈরি বংদিতং৷ অজাদি দেব সেবিতং৷৷
বিশুদ্ধ বোধ বিগ্রহং৷ সমস্ত দূষণাপহং৷৷
নমামি ইংদিরা পতিং৷ সুখাকরং সতাং গতিং৷৷
ভজে সশক্তি সানুজং৷ শচী পতিং প্রিযানুজং৷৷

2.2.4

चौपाई
সব বিধি গুরু প্রসন্ন জিযজানী৷ বোলেউ রাউ রহি মৃদু বানী৷৷
নাথ রামু করিঅহিং জুবরাজূ৷ কহিঅ কৃপা করি করিঅ সমাজূ৷৷
মোহি অছত যহু হোই উছাহূ৷ লহহিং লোগ সব লোচন লাহূ৷৷
প্রভু প্রসাদ সিব সবই নিবাহীং৷ যহ লালসা এক মন মাহীং৷৷
পুনি ন সোচ তনু রহউ কি জাঊ৷ জেহিং ন হোই পাছেং পছিতাঊ৷৷
সুনি মুনি দসরথ বচন সুহাএ৷ মংগল মোদ মূল মন ভাএ৷৷
সুনু নৃপ জাসু বিমুখ পছিতাহীং৷ জাসু ভজন বিনু জরনি ন জাহীং৷৷
ভযউ তুম্হার তনয সোই স্বামী৷ রামু পুনীত প্রেম অনুগামী৷৷

2.1.4

चौपाई
পর অকাজু লগি তনু পরিহরহীং৷ জিমি হিম উপল কৃষী দলি গরহীং৷৷
বংদউখল জস সেষ সরোষা৷ সহস বদন বরনই পর দোষা৷৷
পুনি প্রনবউপৃথুরাজ সমানা৷ পর অঘ সুনই সহস দস কানা৷৷
বহুরি সক্র সম বিনবউতেহী৷ সংতত সুরানীক হিত জেহী৷৷
বচন বজ্র জেহি সদা পিআরা৷ সহস নযন পর দোষ নিহারা৷৷
বহুরি বংদি খল গন সতিভাএ জে বিনু কাজ দাহিনেহু বাএ৷
পর হিত হানি লাভ জিন্হ কেরেং৷ উজরেং হরষ বিষাদ বসেরেং৷৷
হরি হর জস রাকেস রাহু সে৷ পর অকাজ ভট সহসবাহু সে৷৷
জে পর দোষ লখহিং সহসাখী৷ পর হিত ঘৃত জিন্হ কে মন মাখী৷৷

1.7.4

चौपाई
इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर। कपिन्ह देखावत नगर मनोहर।।
सुनु कपीस अंगद लंकेसा। पावन पुरी रुचिर यह देसा।।
जद्यपि सब बैकुंठ बखाना। बेद पुरान बिदित जगु जाना।।
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।।
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।
जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा। मम समीप नर पावहिं बासा।।
अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी। मम धामदा पुरी सुख रासी।।
हरषे सब कपि सुनि प्रभु बानी। धन्य अवध जो राम बखानी।।

1.6.4

चौपाई
बाँधि सेतु अति सुदृढ़ बनावा। देखि कृपानिधि के मन भावा।।
चली सेन कछु बरनि न जाई। गर्जहिं मर्कट भट समुदाई।।
सेतुबंध ढिग चढ़ि रघुराई। चितव कृपाल सिंधु बहुताई।।
देखन कहुँ प्रभु करुना कंदा। प्रगट भए सब जलचर बृंदा।।
मकर नक्र नाना झष ब्याला। सत जोजन तन परम बिसाला।।
अइसेउ एक तिन्हहि जे खाहीं। एकन्ह कें डर तेपि डेराहीं।।
प्रभुहि बिलोकहिं टरहिं न टारे। मन हरषित सब भए सुखारे।।
तिन्ह की ओट न देखिअ बारी। मगन भए हरि रूप निहारी।।
चला कटकु प्रभु आयसु पाई। को कहि सक कपि दल बिपुलाई।।

1.5.4

चौपाई
मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी।।
नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी।।
जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा।।
मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी।।
पुनि संभारि उठि सो लंका। जोरि पानि कर बिनय संसका।।
जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंचि कहा मोहि चीन्हा।।
बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे।।
तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता।।

दोहा/सोरठा

1.4.4

चौपाई
देखि पवन सुत पति अनुकूला। हृदयँ हरष बीती सब सूला।।
नाथ सैल पर कपिपति रहई। सो सुग्रीव दास तव अहई।।
तेहि सन नाथ मयत्री कीजे। दीन जानि तेहि अभय करीजे।।
सो सीता कर खोज कराइहि। जहँ तहँ मरकट कोटि पठाइहि।।
एहि बिधि सकल कथा समुझाई। लिए दुऔ जन पीठि चढ़ाई।।
जब सुग्रीवँ राम कहुँ देखा। अतिसय जन्म धन्य करि लेखा।।
सादर मिलेउ नाइ पद माथा। भैंटेउ अनुज सहित रघुनाथा।।
कपि कर मन बिचार एहि रीती। करिहहिं बिधि मो सन ए प्रीती।।

दोहा/सोरठा

1.3.4

छंद
नमामि भक्त वत्सलं। कृपालु शील कोमलं।।
भजामि ते पदांबुजं। अकामिनां स्वधामदं।।
निकाम श्याम सुंदरं। भवाम्बुनाथ मंदरं।।
प्रफुल्ल कंज लोचनं। मदादि दोष मोचनं।।
प्रलंब बाहु विक्रमं। प्रभोऽप्रमेय वैभवं।।
निषंग चाप सायकं। धरं त्रिलोक नायकं।।
दिनेश वंश मंडनं। महेश चाप खंडनं।।
मुनींद्र संत रंजनं। सुरारि वृंद भंजनं।।
मनोज वैरि वंदितं। अजादि देव सेवितं।।
विशुद्ध बोध विग्रहं। समस्त दूषणापहं।।
नमामि इंदिरा पतिं। सुखाकरं सतां गतिं।।
भजे सशक्ति सानुजं। शची पतिं प्रियानुजं।।

1.2.4

चौपाई
सब बिधि गुरु प्रसन्न जियँ जानी। बोलेउ राउ रहँसि मृदु बानी।।
नाथ रामु करिअहिं जुबराजू। कहिअ कृपा करि करिअ समाजू।।
मोहि अछत यहु होइ उछाहू। लहहिं लोग सब लोचन लाहू।।
प्रभु प्रसाद सिव सबइ निबाहीं। यह लालसा एक मन माहीं।।
पुनि न सोच तनु रहउ कि जाऊ। जेहिं न होइ पाछें पछिताऊ।।
सुनि मुनि दसरथ बचन सुहाए। मंगल मोद मूल मन भाए।।
सुनु नृप जासु बिमुख पछिताहीं। जासु भजन बिनु जरनि न जाहीं।।
भयउ तुम्हार तनय सोइ स्वामी। रामु पुनीत प्रेम अनुगामी।।

1.1.4

चौपाई
बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ।। 
पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें। उजरें हरष बिषाद बसेरें।।
हरि हर जस राकेस राहु से। पर अकाज भट सहसबाहु से।। 
जे पर दोष लखहिं सहसाखी। पर हित घृत जिन्ह के मन माखी।।
तेज कृसानु रोष महिषेसा। अघ अवगुन धन धनी धनेसा।। 
उदय केत सम हित सबही के। कुंभकरन सम सोवत नीके।।
पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं।।
बंदउँ खल जस सेष सरोषा। सहस बदन बरनइ पर दोषा।।
पुनि प्रनवउँ पृथुराज समाना। पर अघ सुनइ सहस दस काना।।

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