58

2.7.58

चौपाई
গিরিজা কহেউসো সব ইতিহাসা৷ মৈং জেহি সময গযউখগ পাসা৷৷
অব সো কথা সুনহু জেহী হেতূ৷ গযউ কাগ পহিং খগ কুল কেতূ৷৷
জব রঘুনাথ কীন্হি রন ক্রীড়া৷ সমুঝত চরিত হোতি মোহি ব্রীড়া৷৷
ইংদ্রজীত কর আপু বাযো৷ তব নারদ মুনি গরুড় পঠাযো৷৷
বংধন কাটি গযো উরগাদা৷ উপজা হৃদযপ্রচংড বিষাদা৷৷
প্রভু বংধন সমুঝত বহু ভাী৷ করত বিচার উরগ আরাতী৷৷
ব্যাপক ব্রহ্ম বিরজ বাগীসা৷ মাযা মোহ পার পরমীসা৷৷
সো অবতার সুনেউজগ মাহীং৷ দেখেউসো প্রভাব কছু নাহীং৷৷

2.6.58

चौपाई
কপি তব দরস ভইউনিষ্পাপা৷ মিটা তাত মুনিবর কর সাপা৷৷
মুনি ন হোই যহ নিসিচর ঘোরা৷ মানহু সত্য বচন কপি মোরা৷৷
অস কহি গঈ অপছরা জবহীং৷ নিসিচর নিকট গযউ কপি তবহীং৷৷
কহ কপি মুনি গুরদছিনা লেহূ৷ পাছেং হমহি মংত্র তুম্হ দেহূ৷৷
সির লংগূর লপেটি পছারা৷ নিজ তনু প্রগটেসি মরতী বারা৷৷
রাম রাম কহি ছাড়েসি প্রানা৷ সুনি মন হরষি চলেউ হনুমানা৷৷
দেখা সৈল ন ঔষধ চীন্হা৷ সহসা কপি উপারি গিরি লীন্হা৷৷
গহি গিরি নিসি নভ ধাবত ভযঊ৷ অবধপুরী উপর কপি গযঊ৷৷

2.5.58

चौपाई
লছিমন বান সরাসন আনূ৷ সোষৌং বারিধি বিসিখ কৃসানূ৷৷
সঠ সন বিনয কুটিল সন প্রীতী৷ সহজ কৃপন সন সুংদর নীতী৷৷
মমতা রত সন গ্যান কহানী৷ অতি লোভী সন বিরতি বখানী৷৷
ক্রোধিহি সম কামিহি হরি কথা৷ ঊসর বীজ বএফল জথা৷৷
অস কহি রঘুপতি চাপ চঢ়াবা৷ যহ মত লছিমন কে মন ভাবা৷৷
সংঘানেউ প্রভু বিসিখ করালা৷ উঠী উদধি উর অংতর জ্বালা৷৷
মকর উরগ ঝষ গন অকুলানে৷ জরত জংতু জলনিধি জব জানে৷৷
কনক থার ভরি মনি গন নানা৷ বিপ্র রূপ আযউ তজি মানা৷৷

2.2.58

चौपाई
দীন্হি অসীস সাসু মৃদু বানী৷ অতি সুকুমারি দেখি অকুলানী৷৷
বৈঠি নমিতমুখ সোচতি সীতা৷ রূপ রাসি পতি প্রেম পুনীতা৷৷
চলন চহত বন জীবননাথূ৷ কেহি সুকৃতী সন হোইহি সাথূ৷৷
কী তনু প্রান কি কেবল প্রানা৷ বিধি করতবু কছু জাই ন জানা৷৷
চারু চরন নখ লেখতি ধরনী৷ নূপুর মুখর মধুর কবি বরনী৷৷
মনহুপ্রেম বস বিনতী করহীং৷ হমহি সীয পদ জনি পরিহরহীং৷৷
মংজু বিলোচন মোচতি বারী৷ বোলী দেখি রাম মহতারী৷৷
তাত সুনহু সিয অতি সুকুমারী৷ সাসু সসুর পরিজনহি পিআরী৷৷

2.1.58

चौपाई
হৃদযসোচু সমুঝত নিজ করনী৷ চিংতা অমিত জাই নহি বরনী৷৷
কৃপাসিংধু সিব পরম অগাধা৷ প্রগট ন কহেউ মোর অপরাধা৷৷
সংকর রুখ অবলোকি ভবানী৷ প্রভু মোহি তজেউ হৃদযঅকুলানী৷৷
নিজ অঘ সমুঝি ন কছু কহি জাঈ৷ তপই অবাইব উর অধিকাঈ৷৷
সতিহি সসোচ জানি বৃষকেতূ৷ কহীং কথা সুংদর সুখ হেতূ৷৷
বরনত পংথ বিবিধ ইতিহাসা৷ বিস্বনাথ পহুে কৈলাসা৷৷
তহপুনি সংভু সমুঝি পন আপন৷ বৈঠে বট তর করি কমলাসন৷৷
সংকর সহজ সরুপ সম্হারা৷ লাগি সমাধি অখংড অপারা৷৷

1.7.58

चौपाई
गिरिजा कहेउँ सो सब इतिहासा। मैं जेहि समय गयउँ खग पासा।।
अब सो कथा सुनहु जेही हेतू। गयउ काग पहिं खग कुल केतू।।
जब रघुनाथ कीन्हि रन क्रीड़ा। समुझत चरित होति मोहि ब्रीड़ा।।
इंद्रजीत कर आपु बँधायो। तब नारद मुनि गरुड़ पठायो।।
बंधन काटि गयो उरगादा। उपजा हृदयँ प्रचंड बिषादा।।
प्रभु बंधन समुझत बहु भाँती। करत बिचार उरग आराती।।
ब्यापक ब्रह्म बिरज बागीसा। माया मोह पार परमीसा।।
सो अवतार सुनेउँ जग माहीं। देखेउँ सो प्रभाव कछु नाहीं।।

1.6.58

चौपाई
कपि तव दरस भइउँ निष्पापा। मिटा तात मुनिबर कर सापा।।
मुनि न होइ यह निसिचर घोरा। मानहु सत्य बचन कपि मोरा।।
अस कहि गई अपछरा जबहीं। निसिचर निकट गयउ कपि तबहीं।।
कह कपि मुनि गुरदछिना लेहू। पाछें हमहि मंत्र तुम्ह देहू।।
सिर लंगूर लपेटि पछारा। निज तनु प्रगटेसि मरती बारा।।
राम राम कहि छाड़ेसि प्राना। सुनि मन हरषि चलेउ हनुमाना।।
देखा सैल न औषध चीन्हा। सहसा कपि उपारि गिरि लीन्हा।।
गहि गिरि निसि नभ धावत भयऊ। अवधपुरी उपर कपि गयऊ।।

दोहा/सोरठा

1.5.58

चौपाई
लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू।।
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती। सहज कृपन सन सुंदर नीती।।
ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी।।
क्रोधिहि सम कामिहि हरि कथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा।।
अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा। यह मत लछिमन के मन भावा।।
संघानेउ प्रभु बिसिख कराला। उठी उदधि उर अंतर ज्वाला।।
मकर उरग झष गन अकुलाने। जरत जंतु जलनिधि जब जाने।।
कनक थार भरि मनि गन नाना। बिप्र रूप आयउ तजि माना।।

दोहा/सोरठा

1.2.58

चौपाई
दीन्हि असीस सासु मृदु बानी। अति सुकुमारि देखि अकुलानी।।
बैठि नमितमुख सोचति सीता। रूप रासि पति प्रेम पुनीता।।
चलन चहत बन जीवननाथू। केहि सुकृती सन होइहि साथू।।
की तनु प्रान कि केवल प्राना। बिधि करतबु कछु जाइ न जाना।।
चारु चरन नख लेखति धरनी। नूपुर मुखर मधुर कबि बरनी।।
मनहुँ प्रेम बस बिनती करहीं। हमहि सीय पद जनि परिहरहीं।।
मंजु बिलोचन मोचति बारी। बोली देखि राम महतारी।।
तात सुनहु सिय अति सुकुमारी। सासु ससुर परिजनहि पिआरी।।

दोहा/सोरठा

1.1.58

चौपाई
हृदयँ सोचु समुझत निज करनी। चिंता अमित जाइ नहि बरनी।।
कृपासिंधु सिव परम अगाधा। प्रगट न कहेउ मोर अपराधा।।
संकर रुख अवलोकि भवानी। प्रभु मोहि तजेउ हृदयँ अकुलानी।।
निज अघ समुझि न कछु कहि जाई। तपइ अवाँ इव उर अधिकाई।।
सतिहि ससोच जानि बृषकेतू। कहीं कथा सुंदर सुख हेतू।।
बरनत पंथ बिबिध इतिहासा। बिस्वनाथ पहुँचे कैलासा।।
तहँ पुनि संभु समुझि पन आपन। बैठे बट तर करि कमलासन।।
संकर सहज सरुप सम्हारा। लागि समाधि अखंड अपारा।।

दोहा/सोरठा

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