5

2.3.5

चौपाई
অনুসুইযা কে পদ গহি সীতা৷ মিলী বহোরি সুসীল বিনীতা৷৷
রিষিপতিনী মন সুখ অধিকাঈ৷ আসিষ দেই নিকট বৈঠাঈ৷৷
দিব্য বসন ভূষন পহিরাএ৷ জে নিত নূতন অমল সুহাএ৷৷
কহ রিষিবধূ সরস মৃদু বানী৷ নারিধর্ম কছু ব্যাজ বখানী৷৷
মাতু পিতা ভ্রাতা হিতকারী৷ মিতপ্রদ সব সুনু রাজকুমারী৷৷
অমিত দানি ভর্তা বযদেহী৷ অধম সো নারি জো সেব ন তেহী৷৷
ধীরজ ধর্ম মিত্র অরু নারী৷ আপদ কাল পরিখিঅহিং চারী৷৷
বৃদ্ধ রোগবস জড় ধনহীনা৷ অধং বধির ক্রোধী অতি দীনা৷৷
ঐসেহু পতি কর কিএঅপমানা৷ নারি পাব জমপুর দুখ নানা৷৷

2.2.5

चौपाई
মুদিত মহিপতি মংদির আএ৷ সেবক সচিব সুমংত্রু বোলাএ৷৷
কহি জযজীব সীস তিন্হ নাএ৷ ভূপ সুমংগল বচন সুনাএ৷৷
জৌং পাহি মত লাগৈ নীকা৷ করহু হরষি হিযরামহি টীকা৷৷
মংত্রী মুদিত সুনত প্রিয বানী৷ অভিমত বিরবপরেউ জনু পানী৷৷
বিনতী সচিব করহি কর জোরী৷ জিঅহু জগতপতি বরিস করোরী৷৷
জগ মংগল ভল কাজু বিচারা৷ বেগিঅ নাথ ন লাইঅ বারা৷৷
নৃপহি মোদু সুনি সচিব সুভাষা৷ বঢ়ত বৌংড় জনু লহী সুসাখা৷৷

दोहा/सोरठा
কহেউ ভূপ মুনিরাজ কর জোই জোই আযসু হোই৷
রাম রাজ অভিষেক হিত বেগি করহু সোই সোই৷৷5৷৷

2.1.5

चौपाई
মৈং অপনী দিসি কীন্হ নিহোরা৷ তিন্হ নিজ ওর ন লাউব ভোরা৷৷
বাযস পলিঅহিং অতি অনুরাগা৷ হোহিং নিরামিষ কবহুকি কাগা৷৷
বংদউসংত অসজ্জন চরনা৷ দুখপ্রদ উভয বীচ কছু বরনা৷৷
বিছুরত এক প্রান হরি লেহীং৷ মিলত এক দুখ দারুন দেহীং৷৷
উপজহিং এক সংগ জগ মাহীং৷ জলজ জোংক জিমি গুন বিলগাহীং৷৷
সুধা সুরা সম সাধূ অসাধূ৷ জনক এক জগ জলধি অগাধূ৷৷
ভল অনভল নিজ নিজ করতূতী৷ লহত সুজস অপলোক বিভূতী৷৷
সুধা সুধাকর সুরসরি সাধূ৷ গরল অনল কলিমল সরি ব্যাধূ৷৷
গুন অবগুন জানত সব কোঈ৷ জো জেহি ভাব নীক তেহি সোঈ৷৷

1.7.5

चौपाई
आए भरत संग सब लोगा। कृस तन श्रीरघुबीर बियोगा।।
बामदेव बसिष्ठ मुनिनायक। देखे प्रभु महि धरि धनु सायक।।
धाइ धरे गुर चरन सरोरुह। अनुज सहित अति पुलक तनोरुह।।
भेंटि कुसल बूझी मुनिराया। हमरें कुसल तुम्हारिहिं दाया।।
सकल द्विजन्ह मिलि नायउ माथा। धर्म धुरंधर रघुकुलनाथा।।
गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज। नमत जिन्हहि सुर मुनि संकर अज।।
परे भूमि नहिं उठत उठाए। बर करि कृपासिंधु उर लाए।।
स्यामल गात रोम भए ठाढ़े। नव राजीव नयन जल बाढ़े।।

1.6.5

चौपाई
अस कौतुक बिलोकि द्वौ भाई। बिहँसि चले कृपाल रघुराई।।
सेन सहित उतरे रघुबीरा। कहि न जाइ कपि जूथप भीरा।।
सिंधु पार प्रभु डेरा कीन्हा। सकल कपिन्ह कहुँ आयसु दीन्हा।।
खाहु जाइ फल मूल सुहाए। सुनत भालु कपि जहँ तहँ धाए।।
सब तरु फरे राम हित लागी। रितु अरु कुरितु काल गति त्यागी।।
खाहिं मधुर फल बटप हलावहिं। लंका सन्मुख सिखर चलावहिं।।
जहँ कहुँ फिरत निसाचर पावहिं। घेरि सकल बहु नाच नचावहिं।।
दसनन्हि काटि नासिका काना। कहि प्रभु सुजसु देहिं तब जाना।।

1.5.5

चौपाई
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कौसलपुर राजा।।
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।
गरुड़ सुमेरु रेनू सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही।।
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना।।
मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा।।
गयउ दसानन मंदिर माहीं। अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं।।
सयन किए देखा कपि तेही। मंदिर महुँ न दीखि बैदेही।।
भवन एक पुनि दीख सुहावा। हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा।।

दोहा/सोरठा

1.4.5

चौपाई
कीन्ही प्रीति कछु बीच न राखा। लछमिन राम चरित सब भाषा।।
कह सुग्रीव नयन भरि बारी। मिलिहि नाथ मिथिलेसकुमारी।।
मंत्रिन्ह सहित इहाँ एक बारा। बैठ रहेउँ मैं करत बिचारा।।
गगन पंथ देखी मैं जाता। परबस परी बहुत बिलपाता।।
राम राम हा राम पुकारी। हमहि देखि दीन्हेउ पट डारी।।
मागा राम तुरत तेहिं दीन्हा। पट उर लाइ सोच अति कीन्हा।।
कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। तजहु सोच मन आनहु धीरा।।
सब प्रकार करिहउँ सेवकाई। जेहि बिधि मिलिहि जानकी आई।।

दोहा/सोरठा

1.3.5

चौपाई
अनुसुइया के पद गहि सीता। मिली बहोरि सुसील बिनीता।।
रिषिपतिनी मन सुख अधिकाई। आसिष देइ निकट बैठाई।।
दिब्य बसन भूषन पहिराए। जे नित नूतन अमल सुहाए।।
कह रिषिबधू सरस मृदु बानी। नारिधर्म कछु ब्याज बखानी।।
मातु पिता भ्राता हितकारी। मितप्रद सब सुनु राजकुमारी।।
अमित दानि भर्ता बयदेही। अधम सो नारि जो सेव न तेही।।
धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी।।
बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना। अधं बधिर क्रोधी अति दीना।।
ऐसेहु पति कर किएँ अपमाना। नारि पाव जमपुर दुख नाना।।

1.2.5

चौपाई
मुदित महिपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत्रु बोलाए।।
कहि जयजीव सीस तिन्ह नाए। भूप सुमंगल बचन सुनाए।।
जौं पाँचहि मत लागै नीका। करहु हरषि हियँ रामहि टीका।।
मंत्री मुदित सुनत प्रिय बानी। अभिमत बिरवँ परेउ जनु पानी।।
बिनती सचिव करहि कर जोरी। जिअहु जगतपति बरिस करोरी।।
जग मंगल भल काजु बिचारा। बेगिअ नाथ न लाइअ बारा।।
नृपहि मोदु सुनि सचिव सुभाषा। बढ़त बौंड़ जनु लही सुसाखा।।

दोहा/सोरठा
कहेउ भूप मुनिराज कर जोइ जोइ आयसु होइ।

1.1.5

चौपाई
मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा। तिन्ह निज ओर न लाउब भोरा।।
बायस पलिअहिं अति अनुरागा। होहिं निरामिष कबहुँ कि कागा।।
बंदउँ संत असज्जन चरना। दुखप्रद उभय बीच कछु बरना।।
बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं। मिलत एक दुख दारुन देहीं।।
उपजहिं एक संग जग माहीं। जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं।।
सुधा सुरा सम साधू असाधू। जनक एक जग जलधि अगाधू।।
भल अनभल निज निज करतूती। लहत सुजस अपलोक बिभूती।।
सुधा सुधाकर सुरसरि साधू। गरल अनल कलिमल सरि ब्याधू।।
गुन अवगुन जानत सब कोई। जो जेहि भाव नीक तेहि सोई।।

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