65

3.2.65

चौपाई
માતુ પિતા ભગિની પ્રિય ભાઈ। પ્રિય પરિવારુ સુહ્રદ સમુદાઈ।।
સાસુ સસુર ગુર સજન સહાઈ। સુત સુંદર સુસીલ સુખદાઈ।।
જહલગિ નાથ નેહ અરુ નાતે। પિય બિનુ તિયહિ તરનિહુ તે તાતે।।
તનુ ધનુ ધામુ ધરનિ પુર રાજૂ। પતિ બિહીન સબુ સોક સમાજૂ।।
ભોગ રોગસમ ભૂષન ભારૂ। જમ જાતના સરિસ સંસારૂ।।
પ્રાનનાથ તુમ્હ બિનુ જગ માહીં। મો કહુસુખદ કતહુકછુ નાહીં।।
જિય બિનુ દેહ નદી બિનુ બારી। તૈસિઅ નાથ પુરુષ બિનુ નારી।।
નાથ સકલ સુખ સાથ તુમ્હારેં। સરદ બિમલ બિધુ બદનુ નિહારેં।।

3.1.65

चौपाई
સમાચાર સબ સંકર પાએ। બીરભદ્રુ કરિ કોપ પઠાએ।।
જગ્ય બિધંસ જાઇ તિન્હ કીન્હા। સકલ સુરન્હ બિધિવત ફલુ દીન્હા।।
ભે જગબિદિત દચ્છ ગતિ સોઈ। જસિ કછુ સંભુ બિમુખ કૈ હોઈ।।
યહ ઇતિહાસ સકલ જગ જાની। તાતે મૈં સંછેપ બખાની।।
સતીં મરત હરિ સન બરુ માગા। જનમ જનમ સિવ પદ અનુરાગા।।
તેહિ કારન હિમગિરિ ગૃહ જાઈ। જનમીં પારબતી તનુ પાઈ।।
જબ તેં ઉમા સૈલ ગૃહ જાઈં। સકલ સિદ્ધિ સંપતિ તહછાઈ।।
જહતહમુનિન્હ સુઆશ્રમ કીન્હે। ઉચિત બાસ હિમ ભૂધર દીન્હે।।

2.7.65

चौपाई
বহুরি রাম অভিষেক প্রসংগা৷ পুনি নৃপ বচন রাজ রস ভংগা৷৷
পুরবাসিন্হ কর বিরহ বিষাদা৷ কহেসি রাম লছিমন সংবাদা৷৷
বিপিন গবন কেবট অনুরাগা৷ সুরসরি উতরি নিবাস প্রযাগা৷৷
বালমীক প্রভু মিলন বখানা৷ চিত্রকূট জিমি বসে ভগবানা৷৷
সচিবাগবন নগর নৃপ মরনা৷ ভরতাগবন প্রেম বহু বরনা৷৷
করি নৃপ ক্রিযা সংগ পুরবাসী৷ ভরত গএ জহপ্রভু সুখ রাসী৷৷
পুনি রঘুপতি বহু বিধি সমুঝাএ৷ লৈ পাদুকা অবধপুর আএ৷৷
ভরত রহনি সুরপতি সুত করনী৷ প্রভু অরু অত্রি ভেংট পুনি বরনী৷৷

2.6.65

चौपाई
বংধু বচন সুনি চলা বিভীষন৷ আযউ জহত্রৈলোক বিভূষন৷৷
নাথ ভূধরাকার সরীরা৷ কুংভকরন আবত রনধীরা৷৷
এতনা কপিন্হ সুনা জব কানা৷ কিলকিলাই ধাএ বলবানা৷৷
লিএ উঠাই বিটপ অরু ভূধর৷ কটকটাই ডারহিং তা ঊপর৷৷
কোটি কোটি গিরি সিখর প্রহারা৷ করহিং ভালু কপি এক এক বারা৷৷
মুর্ যো ন মন তনু টর্ যো ন টার্ যো৷ জিমি গজ অর্ক ফলনি কো মার্যো৷৷
তব মারুতসুত মুঠিকা হন্যো৷ পর্ যো ধরনি ব্যাকুল সির ধুন্যো৷৷
পুনি উঠি তেহিং মারেউ হনুমংতা৷ ঘুর্মিত ভূতল পরেউ তুরংতা৷৷
পুনি নল নীলহি অবনি পছারেসি৷ জহতহপটকি পটকি ভট ডারেসি৷৷

2.2.65

चौपाई
মাতু পিতা ভগিনী প্রিয ভাঈ৷ প্রিয পরিবারু সুহ্রদ সমুদাঈ৷৷
সাসু সসুর গুর সজন সহাঈ৷ সুত সুংদর সুসীল সুখদাঈ৷৷
জহলগি নাথ নেহ অরু নাতে৷ পিয বিনু তিযহি তরনিহু তে তাতে৷৷
তনু ধনু ধামু ধরনি পুর রাজূ৷ পতি বিহীন সবু সোক সমাজূ৷৷
ভোগ রোগসম ভূষন ভারূ৷ জম জাতনা সরিস সংসারূ৷৷
প্রাননাথ তুম্হ বিনু জগ মাহীং৷ মো কহুসুখদ কতহুকছু নাহীং৷৷
জিয বিনু দেহ নদী বিনু বারী৷ তৈসিঅ নাথ পুরুষ বিনু নারী৷৷
নাথ সকল সুখ সাথ তুম্হারেং৷ সরদ বিমল বিধু বদনু নিহারেং৷৷

2.1.65

चौपाई
সমাচার সব সংকর পাএ৷ বীরভদ্রু করি কোপ পঠাএ৷৷
জগ্য বিধংস জাই তিন্হ কীন্হা৷ সকল সুরন্হ বিধিবত ফলু দীন্হা৷৷
ভে জগবিদিত দচ্ছ গতি সোঈ৷ জসি কছু সংভু বিমুখ কৈ হোঈ৷৷
যহ ইতিহাস সকল জগ জানী৷ তাতে মৈং সংছেপ বখানী৷৷
সতীং মরত হরি সন বরু মাগা৷ জনম জনম সিব পদ অনুরাগা৷৷
তেহি কারন হিমগিরি গৃহ জাঈ৷ জনমীং পারবতী তনু পাঈ৷৷
জব তেং উমা সৈল গৃহ জাঈং৷ সকল সিদ্ধি সংপতি তহছাঈ৷৷
জহতহমুনিন্হ সুআশ্রম কীন্হে৷ উচিত বাস হিম ভূধর দীন্হে৷৷

1.7.65

चौपाई
बहुरि राम अभिषेक प्रसंगा। पुनि नृप बचन राज रस भंगा।।
पुरबासिन्ह कर बिरह बिषादा। कहेसि राम लछिमन संबादा।।
बिपिन गवन केवट अनुरागा। सुरसरि उतरि निवास प्रयागा।।
बालमीक प्रभु मिलन बखाना। चित्रकूट जिमि बसे भगवाना।।
सचिवागवन नगर नृप मरना। भरतागवन प्रेम बहु बरना।।
करि नृप क्रिया संग पुरबासी। भरत गए जहँ प्रभु सुख रासी।।
पुनि रघुपति बहु बिधि समुझाए। लै पादुका अवधपुर आए।।
भरत रहनि सुरपति सुत करनी। प्रभु अरु अत्रि भेंट पुनि बरनी।।

1.6.65

चौपाई
बंधु बचन सुनि चला बिभीषन। आयउ जहँ त्रैलोक बिभूषन।।
नाथ भूधराकार सरीरा। कुंभकरन आवत रनधीरा।।
एतना कपिन्ह सुना जब काना। किलकिलाइ धाए बलवाना।।
लिए उठाइ बिटप अरु भूधर। कटकटाइ डारहिं ता ऊपर।।
कोटि कोटि गिरि सिखर प्रहारा। करहिं भालु कपि एक एक बारा।।
मुर् यो न मन तनु टर् यो न टार् यो। जिमि गज अर्क फलनि को मार्यो।।
तब मारुतसुत मुठिका हन्यो। पर् यो धरनि ब्याकुल सिर धुन्यो।।
पुनि उठि तेहिं मारेउ हनुमंता। घुर्मित भूतल परेउ तुरंता।।
पुनि नल नीलहि अवनि पछारेसि। जहँ तहँ पटकि पटकि भट डारेसि।।

1.2.65

चौपाई
मातु पिता भगिनी प्रिय भाई। प्रिय परिवारु सुह्रद समुदाई।।
सासु ससुर गुर सजन सहाई। सुत सुंदर सुसील सुखदाई।।
जहँ लगि नाथ नेह अरु नाते। पिय बिनु तियहि तरनिहु ते ताते।।
तनु धनु धामु धरनि पुर राजू। पति बिहीन सबु सोक समाजू।।
भोग रोगसम भूषन भारू। जम जातना सरिस संसारू।।
प्राननाथ तुम्ह बिनु जग माहीं। मो कहुँ सुखद कतहुँ कछु नाहीं।।
जिय बिनु देह नदी बिनु बारी। तैसिअ नाथ पुरुष बिनु नारी।।
नाथ सकल सुख साथ तुम्हारें। सरद बिमल बिधु बदनु निहारें।।

1.1.65

चौपाई
समाचार सब संकर पाए। बीरभद्रु करि कोप पठाए।।
जग्य बिधंस जाइ तिन्ह कीन्हा। सकल सुरन्ह बिधिवत फलु दीन्हा।।
भे जगबिदित दच्छ गति सोई। जसि कछु संभु बिमुख कै होई।।
यह इतिहास सकल जग जानी। ताते मैं संछेप बखानी।।
सतीं मरत हरि सन बरु मागा। जनम जनम सिव पद अनुरागा।।
तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई। जनमीं पारबती तनु पाई।।
जब तें उमा सैल गृह जाईं। सकल सिद्धि संपति तहँ छाई।।
जहँ तहँ मुनिन्ह सुआश्रम कीन्हे। उचित बास हिम भूधर दीन्हे।।

दोहा/सोरठा

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