66

3.2.66

चौपाई
બનદેવીં બનદેવ ઉદારા। કરિહહિં સાસુ સસુર સમ સારા।।
કુસ કિસલય સાથરી સુહાઈ। પ્રભુ સ મંજુ મનોજ તુરાઈ।।
કંદ મૂલ ફલ અમિઅ અહારૂ। અવધ સૌધ સત સરિસ પહારૂ।।
છિનુ છિનુ પ્રભુ પદ કમલ બિલોકિ। રહિહઉમુદિત દિવસ જિમિ કોકી।।
બન દુખ નાથ કહે બહુતેરે। ભય બિષાદ પરિતાપ ઘનેરે।।
પ્રભુ બિયોગ લવલેસ સમાના। સબ મિલિ હોહિં ન કૃપાનિધાના।।
અસ જિયજાનિ સુજાન સિરોમનિ। લેઇઅ સંગ મોહિ છાડ઼િઅ જનિ।।
બિનતી બહુત કરૌં કા સ્વામી। કરુનામય ઉર અંતરજામી।।

3.1.66

चौपाई
સરિતા સબ પુનિત જલુ બહહીં। ખગ મૃગ મધુપ સુખી સબ રહહીં।।
સહજ બયરુ સબ જીવન્હ ત્યાગા। ગિરિ પર સકલ કરહિં અનુરાગા।।
સોહ સૈલ ગિરિજા ગૃહ આએ જિમિ જનુ રામભગતિ કે પાએ।
નિત નૂતન મંગલ ગૃહ તાસૂ। બ્રહ્માદિક ગાવહિં જસુ જાસૂ।।
નારદ સમાચાર સબ પાએ। કૌતુકહીં ગિરિ ગેહ સિધાએ।।
સૈલરાજ બડ઼ આદર કીન્હા। પદ પખારિ બર આસનુ દીન્હા।।
નારિ સહિત મુનિ પદ સિરુ નાવા। ચરન સલિલ સબુ ભવનુ સિંચાવા।।
નિજ સૌભાગ્ય બહુત ગિરિ બરના। સુતા બોલિ મેલી મુનિ ચરના।।

2.7.66

चौपाई
কহি দংডক বন পাবনতাঈ৷ গীধ মইত্রী পুনি তেহিং গাঈ৷৷
পুনি প্রভু পংচবটীং কৃত বাসা৷ ভংজী সকল মুনিন্হ কী ত্রাসা৷৷
পুনি লছিমন উপদেস অনূপা৷ সূপনখা জিমি কীন্হি কুরূপা৷৷
খর দূষন বধ বহুরি বখানা৷ জিমি সব মরমু দসানন জানা৷৷
দসকংধর মারীচ বতকহীং৷ জেহি বিধি ভঈ সো সব তেহিং কহী৷৷
পুনি মাযা সীতা কর হরনা৷ শ্রীরঘুবীর বিরহ কছু বরনা৷৷
পুনি প্রভু গীধ ক্রিযা জিমি কীন্হী৷ বধি কবংধ সবরিহি গতি দীন্হী৷৷
বহুরি বিরহ বরনত রঘুবীরা৷ জেহি বিধি গএ সরোবর তীরা৷৷

2.6.66

चौपाई
উমা করত রঘুপতি নরলীলা৷ খেলত গরুড় জিমি অহিগন মীলা৷৷
ভৃকুটি ভংগ জো কালহি খাঈ৷ তাহি কি সোহই ঐসি লরাঈ৷৷
জগ পাবনি কীরতি বিস্তরিহহিং৷ গাই গাই ভবনিধি নর তরিহহিং৷৷
মুরুছা গই মারুতসুত জাগা৷ সুগ্রীবহি তব খোজন লাগা৷৷
সুগ্রীবহু কৈ মুরুছা বীতী৷ নিবুক গযউ তেহি মৃতক প্রতীতী৷৷
কাটেসি দসন নাসিকা কানা৷ গরজি অকাস চলউ তেহিং জানা৷৷
গহেউ চরন গহি ভূমি পছারা৷ অতি লাঘবউঠি পুনি তেহি মারা৷৷
পুনি আযসু প্রভু পহিং বলবানা৷ জযতি জযতি জয কৃপানিধানা৷৷
নাক কান কাটে জিযজানী৷ ফিরা ক্রোধ করি ভই মন গ্লানী৷৷

2.2.66

चौपाई
বনদেবীং বনদেব উদারা৷ করিহহিং সাসু সসুর সম সারা৷৷
কুস কিসলয সাথরী সুহাঈ৷ প্রভু স মংজু মনোজ তুরাঈ৷৷
কংদ মূল ফল অমিঅ অহারূ৷ অবধ সৌধ সত সরিস পহারূ৷৷
ছিনু ছিনু প্রভু পদ কমল বিলোকি৷ রহিহউমুদিত দিবস জিমি কোকী৷৷
বন দুখ নাথ কহে বহুতেরে৷ ভয বিষাদ পরিতাপ ঘনেরে৷৷
প্রভু বিযোগ লবলেস সমানা৷ সব মিলি হোহিং ন কৃপানিধানা৷৷
অস জিযজানি সুজান সিরোমনি৷ লেইঅ সংগ মোহি ছাড়িঅ জনি৷৷
বিনতী বহুত করৌং কা স্বামী৷ করুনাময উর অংতরজামী৷৷

2.1.66

चौपाई
সরিতা সব পুনিত জলু বহহীং৷ খগ মৃগ মধুপ সুখী সব রহহীং৷৷
সহজ বযরু সব জীবন্হ ত্যাগা৷ গিরি পর সকল করহিং অনুরাগা৷৷
সোহ সৈল গিরিজা গৃহ আএ জিমি জনু রামভগতি কে পাএ৷
নিত নূতন মংগল গৃহ তাসূ৷ ব্রহ্মাদিক গাবহিং জসু জাসূ৷৷
নারদ সমাচার সব পাএ৷ কৌতুকহীং গিরি গেহ সিধাএ৷৷
সৈলরাজ বড় আদর কীন্হা৷ পদ পখারি বর আসনু দীন্হা৷৷
নারি সহিত মুনি পদ সিরু নাবা৷ চরন সলিল সবু ভবনু সিংচাবা৷৷
নিজ সৌভাগ্য বহুত গিরি বরনা৷ সুতা বোলি মেলী মুনি চরনা৷৷

1.7.66

चौपाई
कहि दंडक बन पावनताई। गीध मइत्री पुनि तेहिं गाई।।
पुनि प्रभु पंचवटीं कृत बासा। भंजी सकल मुनिन्ह की त्रासा।।
पुनि लछिमन उपदेस अनूपा। सूपनखा जिमि कीन्हि कुरूपा।।
खर दूषन बध बहुरि बखाना। जिमि सब मरमु दसानन जाना।।
दसकंधर मारीच बतकहीं। जेहि बिधि भई सो सब तेहिं कही।।
पुनि माया सीता कर हरना। श्रीरघुबीर बिरह कछु बरना।।
पुनि प्रभु गीध क्रिया जिमि कीन्ही। बधि कबंध सबरिहि गति दीन्ही।।
बहुरि बिरह बरनत रघुबीरा। जेहि बिधि गए सरोबर तीरा।।

1.6.66

चौपाई
उमा करत रघुपति नरलीला। खेलत गरुड़ जिमि अहिगन मीला।।
भृकुटि भंग जो कालहि खाई। ताहि कि सोहइ ऐसि लराई।।
जग पावनि कीरति बिस्तरिहहिं। गाइ गाइ भवनिधि नर तरिहहिं।।
मुरुछा गइ मारुतसुत जागा। सुग्रीवहि तब खोजन लागा।।
सुग्रीवहु कै मुरुछा बीती। निबुक गयउ तेहि मृतक प्रतीती।।
काटेसि दसन नासिका काना। गरजि अकास चलउ तेहिं जाना।।
गहेउ चरन गहि भूमि पछारा। अति लाघवँ उठि पुनि तेहि मारा।।
पुनि आयसु प्रभु पहिं बलवाना। जयति जयति जय कृपानिधाना।।
नाक कान काटे जियँ जानी। फिरा क्रोध करि भइ मन ग्लानी।।

1.2.66

चौपाई
बनदेवीं बनदेव उदारा। करिहहिं सासु ससुर सम सारा।।
कुस किसलय साथरी सुहाई। प्रभु सँग मंजु मनोज तुराई।।
कंद मूल फल अमिअ अहारू। अवध सौध सत सरिस पहारू।।
छिनु छिनु प्रभु पद कमल बिलोकि। रहिहउँ मुदित दिवस जिमि कोकी।।
बन दुख नाथ कहे बहुतेरे। भय बिषाद परिताप घनेरे।।
प्रभु बियोग लवलेस समाना। सब मिलि होहिं न कृपानिधाना।।
अस जियँ जानि सुजान सिरोमनि। लेइअ संग मोहि छाड़िअ जनि।।
बिनती बहुत करौं का स्वामी। करुनामय उर अंतरजामी।।

दोहा/सोरठा

1.1.66

चौपाई
सरिता सब पुनित जलु बहहीं। खग मृग मधुप सुखी सब रहहीं।।
सहज बयरु सब जीवन्ह त्यागा। गिरि पर सकल करहिं अनुरागा।।
सोह सैल गिरिजा गृह आएँ। जिमि जनु रामभगति के पाएँ।।
नित नूतन मंगल गृह तासू। ब्रह्मादिक गावहिं जसु जासू।।
नारद समाचार सब पाए। कौतुकहीं गिरि गेह सिधाए।।
सैलराज बड़ आदर कीन्हा। पद पखारि बर आसनु दीन्हा।।
नारि सहित मुनि पद सिरु नावा। चरन सलिल सबु भवनु सिंचावा।।
निज सौभाग्य बहुत गिरि बरना। सुता बोलि मेली मुनि चरना।।

दोहा/सोरठा

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