67

3.2.67

चौपाई
મોહિ મગ ચલત ન હોઇહિ હારી। છિનુ છિનુ ચરન સરોજ નિહારી।।
સબહિ ભાિ પિય સેવા કરિહૌં। મારગ જનિત સકલ શ્રમ હરિહૌં।।
પાય પખારી બૈઠિ તરુ છાહીં। કરિહઉબાઉ મુદિત મન માહીં।।
શ્રમ કન સહિત સ્યામ તનુ દેખેં। કહદુખ સમઉ પ્રાનપતિ પેખેં।।
સમ મહિ તૃન તરુપલ્લવ ડાસી। પાગ પલોટિહિ સબ નિસિ દાસી।।
બારબાર મૃદુ મૂરતિ જોહી। લાગહિ તાત બયારિ ન મોહી।
કો પ્રભુ સ મોહિ ચિતવનિહારા। સિંઘબધુહિ જિમિ સસક સિઆરા।।
મૈં સુકુમારિ નાથ બન જોગૂ। તુમ્હહિ ઉચિત તપ મો કહુભોગૂ।।

3.1.67

चौपाई
કહ મુનિ બિહસિ ગૂઢ઼ મૃદુ બાની। સુતા તુમ્હારિ સકલ ગુન ખાની।।
સુંદર સહજ સુસીલ સયાની। નામ ઉમા અંબિકા ભવાની।।
સબ લચ્છન સંપન્ન કુમારી। હોઇહિ સંતત પિયહિ પિઆરી।।
સદા અચલ એહિ કર અહિવાતા। એહિ તેં જસુ પૈહહિં પિતુ માતા।।
હોઇહિ પૂજ્ય સકલ જગ માહીં। એહિ સેવત કછુ દુર્લભ નાહીં।।
એહિ કર નામુ સુમિરિ સંસારા। ત્રિય ચઢ઼હહિં પતિબ્રત અસિધારા।।
સૈલ સુલચ્છન સુતા તુમ્હારી। સુનહુ જે અબ અવગુન દુઇ ચારી।।
અગુન અમાન માતુ પિતુ હીના। ઉદાસીન સબ સંસય છીના।।

2.7.67

चौपाई
জেহি বিধি কপিপতি কীস পঠাএ৷ সীতা খোজ সকল দিসি ধাএ৷৷
বিবর প্রবেস কীন্হ জেহি ভাী৷ কপিন্হ বহোরি মিলা সংপাতী৷৷
সুনি সব কথা সমীরকুমারা৷ নাঘত ভযউ পযোধি অপারা৷৷
লংকাকপি প্রবেস জিমি কীন্হা৷ পুনি সীতহি ধীরজু জিমি দীন্হা৷৷
বন উজারি রাবনহি প্রবোধী৷ পুর দহি নাঘেউ বহুরি পযোধী৷৷
আএ কপি সব জহরঘুরাঈ৷ বৈদেহী কি কুসল সুনাঈ৷৷
সেন সমেতি জথা রঘুবীরা৷ উতরে জাই বারিনিধি তীরা৷৷
মিলা বিভীষন জেহি বিধি আঈ৷ সাগর নিগ্রহ কথা সুনাঈ৷৷

2.6.67

चौपाई
কুংভকরন রন রংগ বিরুদ্ধা৷ সন্মুখ চলা কাল জনু ক্রুদ্ধা৷৷
কোটি কোটি কপি ধরি ধরি খাঈ৷ জনু টীড়ী গিরি গুহাসমাঈ৷৷
কোটিন্হ গহি সরীর সন মর্দা৷ কোটিন্হ মীজি মিলব মহি গর্দা৷৷
মুখ নাসা শ্রবনন্হি কীং বাটা৷ নিসরি পরাহিং ভালু কপি ঠাটা৷৷
রন মদ মত্ত নিসাচর দর্পা৷ বিস্ব গ্রসিহি জনু এহি বিধি অর্পা৷৷
মুরে সুভট সব ফিরহিং ন ফেরে৷ সূঝ ন নযন সুনহিং নহিং টেরে৷৷
কুংভকরন কপি ফৌজ বিডারী৷ সুনি ধাঈ রজনীচর ধারী৷৷
দেখি রাম বিকল কটকাঈ৷ রিপু অনীক নানা বিধি আঈ৷৷

2.2.67

चौपाई
মোহি মগ চলত ন হোইহি হারী৷ ছিনু ছিনু চরন সরোজ নিহারী৷৷
সবহি ভাি পিয সেবা করিহৌং৷ মারগ জনিত সকল শ্রম হরিহৌং৷৷
পায পখারী বৈঠি তরু ছাহীং৷ করিহউবাউ মুদিত মন মাহীং৷৷
শ্রম কন সহিত স্যাম তনু দেখেং৷ কহদুখ সমউ প্রানপতি পেখেং৷৷
সম মহি তৃন তরুপল্লব ডাসী৷ পাগ পলোটিহি সব নিসি দাসী৷৷
বারবার মৃদু মূরতি জোহী৷ লাগহি তাত বযারি ন মোহী৷
কো প্রভু স মোহি চিতবনিহারা৷ সিংঘবধুহি জিমি সসক সিআরা৷৷
মৈং সুকুমারি নাথ বন জোগূ৷ তুম্হহি উচিত তপ মো কহুভোগূ৷৷

2.1.67

चौपाई
কহ মুনি বিহসি গূঢ় মৃদু বানী৷ সুতা তুম্হারি সকল গুন খানী৷৷
সুংদর সহজ সুসীল সযানী৷ নাম উমা অংবিকা ভবানী৷৷
সব লচ্ছন সংপন্ন কুমারী৷ হোইহি সংতত পিযহি পিআরী৷৷
সদা অচল এহি কর অহিবাতা৷ এহি তেং জসু পৈহহিং পিতু মাতা৷৷
হোইহি পূজ্য সকল জগ মাহীং৷ এহি সেবত কছু দুর্লভ নাহীং৷৷
এহি কর নামু সুমিরি সংসারা৷ ত্রিয চঢ়হহিং পতিব্রত অসিধারা৷৷
সৈল সুলচ্ছন সুতা তুম্হারী৷ সুনহু জে অব অবগুন দুই চারী৷৷
অগুন অমান মাতু পিতু হীনা৷ উদাসীন সব সংসয ছীনা৷৷

1.7.67

चौपाई
जेहि बिधि कपिपति कीस पठाए। सीता खोज सकल दिसि धाए।।
बिबर प्रबेस कीन्ह जेहि भाँती। कपिन्ह बहोरि मिला संपाती।।
सुनि सब कथा समीरकुमारा। नाघत भयउ पयोधि अपारा।।
लंकाँ कपि प्रबेस जिमि कीन्हा। पुनि सीतहि धीरजु जिमि दीन्हा।।
बन उजारि रावनहि प्रबोधी। पुर दहि नाघेउ बहुरि पयोधी।।
आए कपि सब जहँ रघुराई। बैदेही कि कुसल सुनाई।।
सेन समेति जथा रघुबीरा। उतरे जाइ बारिनिधि तीरा।।
मिला बिभीषन जेहि बिधि आई। सागर निग्रह कथा सुनाई।।

1.6.67

चौपाई
कुंभकरन रन रंग बिरुद्धा। सन्मुख चला काल जनु क्रुद्धा।।
कोटि कोटि कपि धरि धरि खाई। जनु टीड़ी गिरि गुहाँ समाई।।
कोटिन्ह गहि सरीर सन मर्दा। कोटिन्ह मीजि मिलव महि गर्दा।।
मुख नासा श्रवनन्हि कीं बाटा। निसरि पराहिं भालु कपि ठाटा।।
रन मद मत्त निसाचर दर्पा। बिस्व ग्रसिहि जनु एहि बिधि अर्पा।।
मुरे सुभट सब फिरहिं न फेरे। सूझ न नयन सुनहिं नहिं टेरे।।
कुंभकरन कपि फौज बिडारी। सुनि धाई रजनीचर धारी।।
देखि राम बिकल कटकाई। रिपु अनीक नाना बिधि आई।।

1.2.67

चौपाई
मोहि मग चलत न होइहि हारी। छिनु छिनु चरन सरोज निहारी।।
सबहि भाँति पिय सेवा करिहौं। मारग जनित सकल श्रम हरिहौं।।
पाय पखारी बैठि तरु छाहीं। करिहउँ बाउ मुदित मन माहीं।।
श्रम कन सहित स्याम तनु देखें। कहँ दुख समउ प्रानपति पेखें।।
सम महि तृन तरुपल्लव डासी। पाग पलोटिहि सब निसि दासी।।
बारबार मृदु मूरति जोही। लागहि तात बयारि न मोही।
को प्रभु सँग मोहि चितवनिहारा। सिंघबधुहि जिमि ससक सिआरा।।
मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू। तुम्हहि उचित तप मो कहुँ भोगू।।

1.1.67

चौपाई
कह मुनि बिहसि गूढ़ मृदु बानी। सुता तुम्हारि सकल गुन खानी।।
सुंदर सहज सुसील सयानी। नाम उमा अंबिका भवानी।।
सब लच्छन संपन्न कुमारी। होइहि संतत पियहि पिआरी।।
सदा अचल एहि कर अहिवाता। एहि तें जसु पैहहिं पितु माता।।
होइहि पूज्य सकल जग माहीं। एहि सेवत कछु दुर्लभ नाहीं।।
एहि कर नामु सुमिरि संसारा। त्रिय चढ़हहिं पतिब्रत असिधारा।।
सैल सुलच्छन सुता तुम्हारी। सुनहु जे अब अवगुन दुइ चारी।।
अगुन अमान मातु पितु हीना। उदासीन सब संसय छीना।।

दोहा/सोरठा

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