6

2.3.6

चौपाई
সনু সীতা তব নাম সুমির নারি পতিব্রত করহি৷
তোহি প্রানপ্রিয রাম কহিউকথা সংসার হিত৷৷5খ৷৷
সুনি জানকীং পরম সুখু পাবা৷ সাদর তাসু চরন সিরু নাবা৷৷
তব মুনি সন কহ কৃপানিধানা৷ আযসু হোই জাউবন আনা৷৷
সংতত মো পর কৃপা করেহূ৷ সেবক জানি তজেহু জনি নেহূ৷৷
ধর্ম ধুরংধর প্রভু কৈ বানী৷ সুনি সপ্রেম বোলে মুনি গ্যানী৷৷
জাসু কৃপা অজ সিব সনকাদী৷ চহত সকল পরমারথ বাদী৷৷
তে তুম্হ রাম অকাম পিআরে৷ দীন বংধু মৃদু বচন উচারে৷৷
অব জানী মৈং শ্রী চতুরাঈ৷ ভজী তুম্হহি সব দেব বিহাঈ৷৷

2.2.6

चौपाई
হরষি মুনীস কহেউ মৃদু বানী৷ আনহু সকল সুতীরথ পানী৷৷
ঔষধ মূল ফূল ফল পানা৷ কহে নাম গনি মংগল নানা৷৷
চামর চরম বসন বহু ভাী৷ রোম পাট পট অগনিত জাতী৷৷
মনিগন মংগল বস্তু অনেকা৷ জো জগ জোগু ভূপ অভিষেকা৷৷
বেদ বিদিত কহি সকল বিধানা৷ কহেউ রচহু পুর বিবিধ বিতানা৷৷
সফল রসাল পূগফল কেরা৷ রোপহু বীথিন্হ পুর চহুফেরা৷৷
রচহু মংজু মনি চৌকেং চারূ৷ কহহু বনাবন বেগি বজারূ৷৷
পূজহু গনপতি গুর কুলদেবা৷ সব বিধি করহু ভূমিসুর সেবা৷৷

2.1.6

चौपाई
খল অঘ অগুন সাধূ গুন গাহা৷ উভয অপার উদধি অবগাহা৷৷
তেহি তেং কছু গুন দোষ বখানে৷ সংগ্রহ ত্যাগ ন বিনু পহিচানে৷৷
ভলেউ পোচ সব বিধি উপজাএ৷ গনি গুন দোষ বেদ বিলগাএ৷৷
কহহিং বেদ ইতিহাস পুরানা৷ বিধি প্রপংচু গুন অবগুন সানা৷৷
দুখ সুখ পাপ পুন্য দিন রাতী৷ সাধু অসাধু সুজাতি কুজাতী৷৷
দানব দেব ঊ অরু নীচূ৷ অমিঅ সুজীবনু মাহুরু মীচূ৷৷
মাযা ব্রহ্ম জীব জগদীসা৷ লচ্ছি অলচ্ছি রংক অবনীসা৷৷
কাসী মগ সুরসরি ক্রমনাসা৷ মরু মারব মহিদেব গবাসা৷৷
সরগ নরক অনুরাগ বিরাগা৷ নিগমাগম গুন দোষ বিভাগা৷৷

1.7.6

चौपाई
भरतानुज लछिमन पुनि भेंटे। दुसह बिरह संभव दुख मेटे।।
सीता चरन भरत सिरु नावा। अनुज समेत परम सुख पावा।।
प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी। जनित बियोग बिपति सब नासी।।
प्रेमातुर सब लोग निहारी। कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी।।
अमित रूप प्रगटे तेहि काला। जथाजोग मिले सबहि कृपाला।।
कृपादृष्टि रघुबीर बिलोकी। किए सकल नर नारि बिसोकी।।
छन महिं सबहि मिले भगवाना। उमा मरम यह काहुँ न जाना।।
एहि बिधि सबहि सुखी करि रामा। आगें चले सील गुन धामा।।
कौसल्यादि मातु सब धाई। निरखि बच्छ जनु धेनु लवाई।।

1.6.6

चौपाई
निज बिकलता बिचारि बहोरी। बिहँसि गयउ ग्रह करि भय भोरी।।
मंदोदरीं सुन्यो प्रभु आयो। कौतुकहीं पाथोधि बँधायो।।
कर गहि पतिहि भवन निज आनी। बोली परम मनोहर बानी।।
चरन नाइ सिरु अंचलु रोपा। सुनहु बचन पिय परिहरि कोपा।।
नाथ बयरु कीजे ताही सों। बुधि बल सकिअ जीति जाही सों।।
तुम्हहि रघुपतिहि अंतर कैसा। खलु खद्योत दिनकरहि जैसा।।
अतिबल मधु कैटभ जेहिं मारे। महाबीर दितिसुत संघारे।।
जेहिं बलि बाँधि सहजभुज मारा। सोइ अवतरेउ हरन महि भारा।।
तासु बिरोध न कीजिअ नाथा। काल करम जिव जाकें हाथा।।

1.5.6

चौपाई
लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा।।
मन महुँ तरक करै कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा।।
राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा।।
एहि सन हठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी।।
बिप्र रुप धरि बचन सुनाए। सुनत बिभीषण उठि तहँ आए।।
करि प्रनाम पूँछी कुसलाई। बिप्र कहहु निज कथा बुझाई।।
की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई। मोरें हृदय प्रीति अति होई।।
की तुम्ह रामु दीन अनुरागी। आयहु मोहि करन बड़भागी।।

दोहा/सोरठा

1.4.6

चौपाई
नात बालि अरु मैं द्वौ भाई। प्रीति रही कछु बरनि न जाई।।
मय सुत मायावी तेहि नाऊँ। आवा सो प्रभु हमरें गाऊँ।।
अर्ध राति पुर द्वार पुकारा। बाली रिपु बल सहै न पारा।।
धावा बालि देखि सो भागा। मैं पुनि गयउँ बंधु सँग लागा।।
गिरिबर गुहाँ पैठ सो जाई। तब बालीं मोहि कहा बुझाई।।
परिखेसु मोहि एक पखवारा। नहिं आवौं तब जानेसु मारा।।
मास दिवस तहँ रहेउँ खरारी। निसरी रुधिर धार तहँ भारी।।
बालि हतेसि मोहि मारिहि आई। सिला देइ तहँ चलेउँ पराई।।
मंत्रिन्ह पुर देखा बिनु साईं। दीन्हेउ मोहि राज बरिआई।।

1.3.6

चौपाई
सुनि जानकीं परम सुखु पावा। सादर तासु चरन सिरु नावा।।
तब मुनि सन कह कृपानिधाना। आयसु होइ जाउँ बन आना।।
संतत मो पर कृपा करेहू। सेवक जानि तजेहु जनि नेहू।।
धर्म धुरंधर प्रभु कै बानी। सुनि सप्रेम बोले मुनि ग्यानी।।
जासु कृपा अज सिव सनकादी। चहत सकल परमारथ बादी।।
ते तुम्ह राम अकाम पिआरे। दीन बंधु मृदु बचन उचारे।।
अब जानी मैं श्री चतुराई। भजी तुम्हहि सब देव बिहाई।।
जेहि समान अतिसय नहिं कोई। ता कर सील कस न अस होई।।
केहि बिधि कहौं जाहु अब स्वामी। कहहु नाथ तुम्ह अंतरजामी।।

1.2.6

चौपाई
हरषि मुनीस कहेउ मृदु बानी। आनहु सकल सुतीरथ पानी।।
औषध मूल फूल फल पाना। कहे नाम गनि मंगल नाना।।
चामर चरम बसन बहु भाँती। रोम पाट पट अगनित जाती।।
मनिगन मंगल बस्तु अनेका। जो जग जोगु भूप अभिषेका।।
बेद बिदित कहि सकल बिधाना। कहेउ रचहु पुर बिबिध बिताना।।
सफल रसाल पूगफल केरा। रोपहु बीथिन्ह पुर चहुँ फेरा।।
रचहु मंजु मनि चौकें चारू। कहहु बनावन बेगि बजारू।।
पूजहु गनपति गुर कुलदेवा। सब बिधि करहु भूमिसुर सेवा।।

दोहा/सोरठा

1.1.6

चौपाई
खल अघ अगुन साधू गुन गाहा। उभय अपार उदधि अवगाहा।।
तेहि तें कछु गुन दोष बखाने। संग्रह त्याग न बिनु पहिचाने।।
भलेउ पोच सब बिधि उपजाए। गनि गुन दोष बेद बिलगाए।।
कहहिं बेद इतिहास पुराना। बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना।।
दुख सुख पाप पुन्य दिन राती। साधु असाधु सुजाति कुजाती।।
दानव देव ऊँच अरु नीचू। अमिअ सुजीवनु माहुरु मीचू।।
माया ब्रह्म जीव जगदीसा। लच्छि अलच्छि रंक अवनीसा।।
कासी मग सुरसरि क्रमनासा। मरु मारव महिदेव गवासा।।
सरग नरक अनुराग बिरागा। निगमागम गुन दोष बिभागा।।

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