70

3.2.70

चौपाई
સમાચાર જબ લછિમન પાએ। બ્યાકુલ બિલખ બદન ઉઠિ ધાએ।।
કંપ પુલક તન નયન સનીરા। ગહે ચરન અતિ પ્રેમ અધીરા।।
કહિ ન સકત કછુ ચિતવત ઠાઢ઼ે। મીનુ દીન જનુ જલ તેં કાઢ઼ે।।
સોચુ હૃદયબિધિ કા હોનિહારા। સબુ સુખુ સુકૃત સિરાન હમારા।।
મો કહુકાહ કહબ રઘુનાથા। રખિહહિં ભવન કિ લેહહિં સાથા।।
રામ બિલોકિ બંધુ કર જોરેં। દેહ ગેહ સબ સન તૃનુ તોરેં।।
બોલે બચનુ રામ નય નાગર। સીલ સનેહ સરલ સુખ સાગર।।
તાત પ્રેમ બસ જનિ કદરાહૂ। સમુઝિ હૃદયપરિનામ ઉછાહૂ।।

3.1.70

चौपाई
સુરસરિ જલ કૃત બારુનિ જાના। કબહુન સંત કરહિં તેહિ પાના।।
સુરસરિ મિલેં સો પાવન જૈસેં। ઈસ અનીસહિ અંતરુ તૈસેં।।
સંભુ સહજ સમરથ ભગવાના। એહિ બિબાહસબ બિધિ કલ્યાના।।
દુરારાધ્ય પૈ અહહિં મહેસૂ। આસુતોષ પુનિ કિએકલેસૂ।।
જૌં તપુ કરૈ કુમારિ તુમ્હારી। ભાવિઉ મેટિ સકહિં ત્રિપુરારી।।
જદ્યપિ બર અનેક જગ માહીં। એહિ કહસિવ તજિ દૂસર નાહીં।।
બર દાયક પ્રનતારતિ ભંજન। કૃપાસિંધુ સેવક મન રંજન।।
ઇચ્છિત ફલ બિનુ સિવ અવરાધે। લહિઅ ન કોટિ જોગ જપ સાધેં।।

2.7.70

चौपाई
বোলেউ কাকভসুংড বহোরী৷ নভগ নাথ পর প্রীতি ন থোরী৷৷
সব বিধি নাথ পূজ্য তুম্হ মেরে৷ কৃপাপাত্র রঘুনাযক কেরে৷৷
তুম্হহি ন সংসয মোহ ন মাযা৷ মো পর নাথ কীন্হ তুম্হ দাযা৷৷
পঠই মোহ মিস খগপতি তোহী৷ রঘুপতি দীন্হি বড়াঈ মোহী৷৷
তুম্হ নিজ মোহ কহী খগ সাঈং৷ সো নহিং কছু আচরজ গোসাঈং৷৷
নারদ ভব বিরংচি সনকাদী৷ জে মুনিনাযক আতমবাদী৷৷
মোহ ন অংধ কীন্হ কেহি কেহী৷ কো জগ কাম নচাব ন জেহী৷৷
তৃস্নাকেহি ন কীন্হ বৌরাহা৷ কেহি কর হৃদয ক্রোধ নহিং দাহা৷৷

2.6.70

चौपाई
ভাগে ভালু বলীমুখ জূথা৷ বৃকু বিলোকি জিমি মেষ বরূথা৷৷
চলে ভাগি কপি ভালু ভবানী৷ বিকল পুকারত আরত বানী৷৷
যহ নিসিচর দুকাল সম অহঈ৷ কপিকুল দেস পরন অব চহঈ৷৷
কৃপা বারিধর রাম খরারী৷ পাহি পাহি প্রনতারতি হারী৷৷
সকরুন বচন সুনত ভগবানা৷ চলে সুধারি সরাসন বানা৷৷
রাম সেন নিজ পাছৈং ঘালী৷ চলে সকোপ মহা বলসালী৷৷
খৈংচি ধনুষ সর সত সংধানে৷ ছূটে তীর সরীর সমানে৷৷
লাগত সর ধাবা রিস ভরা৷ কুধর ডগমগত ডোলতি ধরা৷৷
লীন্হ এক তেহিং সৈল উপাটী৷ রঘুকুল তিলক ভুজা সোই কাটী৷৷
ধাবা বাম বাহু গিরি ধারী৷ প্রভু সোউ ভুজা কাটি মহি পারী৷৷

2.2.70

चौपाई
সমাচার জব লছিমন পাএ৷ ব্যাকুল বিলখ বদন উঠি ধাএ৷৷
কংপ পুলক তন নযন সনীরা৷ গহে চরন অতি প্রেম অধীরা৷৷
কহি ন সকত কছু চিতবত ঠাঢ়ে৷ মীনু দীন জনু জল তেং কাঢ়ে৷৷
সোচু হৃদযবিধি কা হোনিহারা৷ সবু সুখু সুকৃত সিরান হমারা৷৷
মো কহুকাহ কহব রঘুনাথা৷ রখিহহিং ভবন কি লেহহিং সাথা৷৷
রাম বিলোকি বংধু কর জোরেং৷ দেহ গেহ সব সন তৃনু তোরেং৷৷
বোলে বচনু রাম নয নাগর৷ সীল সনেহ সরল সুখ সাগর৷৷
তাত প্রেম বস জনি কদরাহূ৷ সমুঝি হৃদযপরিনাম উছাহূ৷৷

2.1.70

चौपाई
সুরসরি জল কৃত বারুনি জানা৷ কবহুন সংত করহিং তেহি পানা৷৷
সুরসরি মিলেং সো পাবন জৈসেং৷ ঈস অনীসহি অংতরু তৈসেং৷৷
সংভু সহজ সমরথ ভগবানা৷ এহি বিবাহসব বিধি কল্যানা৷৷
দুরারাধ্য পৈ অহহিং মহেসূ৷ আসুতোষ পুনি কিএকলেসূ৷৷
জৌং তপু করৈ কুমারি তুম্হারী৷ ভাবিউ মেটি সকহিং ত্রিপুরারী৷৷
জদ্যপি বর অনেক জগ মাহীং৷ এহি কহসিব তজি দূসর নাহীং৷৷
বর দাযক প্রনতারতি ভংজন৷ কৃপাসিংধু সেবক মন রংজন৷৷
ইচ্ছিত ফল বিনু সিব অবরাধে৷ লহিঅ ন কোটি জোগ জপ সাধেং৷৷

1.7.70

चौपाई
बोलेउ काकभसुंड बहोरी। नभग नाथ पर प्रीति न थोरी।।
सब बिधि नाथ पूज्य तुम्ह मेरे। कृपापात्र रघुनायक केरे।।
तुम्हहि न संसय मोह न माया। मो पर नाथ कीन्ह तुम्ह दाया।।
पठइ मोह मिस खगपति तोही। रघुपति दीन्हि बड़ाई मोही।।
तुम्ह निज मोह कही खग साईं। सो नहिं कछु आचरज गोसाईं।।
नारद भव बिरंचि सनकादी। जे मुनिनायक आतमबादी।।
मोह न अंध कीन्ह केहि केही। को जग काम नचाव न जेही।।
तृस्नाँ केहि न कीन्ह बौराहा। केहि कर हृदय क्रोध नहिं दाहा।।

1.6.70

चौपाई
भागे भालु बलीमुख जूथा। बृकु बिलोकि जिमि मेष बरूथा।।
चले भागि कपि भालु भवानी। बिकल पुकारत आरत बानी।।
यह निसिचर दुकाल सम अहई। कपिकुल देस परन अब चहई।।
कृपा बारिधर राम खरारी। पाहि पाहि प्रनतारति हारी।।
सकरुन बचन सुनत भगवाना। चले सुधारि सरासन बाना।।
राम सेन निज पाछैं घाली। चले सकोप महा बलसाली।।
खैंचि धनुष सर सत संधाने। छूटे तीर सरीर समाने।।
लागत सर धावा रिस भरा। कुधर डगमगत डोलति धरा।।
लीन्ह एक तेहिं सैल उपाटी। रघुकुल तिलक भुजा सोइ काटी।।

1.2.70

चौपाई
समाचार जब लछिमन पाए। ब्याकुल बिलख बदन उठि धाए।।
कंप पुलक तन नयन सनीरा। गहे चरन अति प्रेम अधीरा।।
कहि न सकत कछु चितवत ठाढ़े। मीनु दीन जनु जल तें काढ़े।।
सोचु हृदयँ बिधि का होनिहारा। सबु सुखु सुकृत सिरान हमारा।।
मो कहुँ काह कहब रघुनाथा। रखिहहिं भवन कि लेहहिं साथा।।
राम बिलोकि बंधु कर जोरें। देह गेह सब सन तृनु तोरें।।
बोले बचनु राम नय नागर। सील सनेह सरल सुख सागर।।
तात प्रेम बस जनि कदराहू। समुझि हृदयँ परिनाम उछाहू।।

दोहा/सोरठा

1.1.70

चौपाई
सुरसरि जल कृत बारुनि जाना। कबहुँ न संत करहिं तेहि पाना।।
सुरसरि मिलें सो पावन जैसें। ईस अनीसहि अंतरु तैसें।।
संभु सहज समरथ भगवाना। एहि बिबाहँ सब बिधि कल्याना।।
दुराराध्य पै अहहिं महेसू। आसुतोष पुनि किएँ कलेसू।।
जौं तपु करै कुमारि तुम्हारी। भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी।।
जद्यपि बर अनेक जग माहीं। एहि कहँ सिव तजि दूसर नाहीं।।
बर दायक प्रनतारति भंजन। कृपासिंधु सेवक मन रंजन।।
इच्छित फल बिनु सिव अवराधे। लहिअ न कोटि जोग जप साधें।।

दोहा/सोरठा

Pages

Subscribe to RSS - 70