72

3.2.72

चौपाई
દીન્હિ મોહિ સિખ નીકિ ગોસાઈં। લાગિ અગમ અપની કદરાઈં।।
નરબર ધીર ધરમ ધુર ધારી। નિગમ નીતિ કહુતે અધિકારી।।
મૈં સિસુ પ્રભુ સનેહપ્રતિપાલા। મંદરુ મેરુ કિ લેહિં મરાલા।।
ગુર પિતુ માતુ ન જાનઉકાહૂ। કહઉસુભાઉ નાથ પતિઆહૂ।।
જહલગિ જગત સનેહ સગાઈ। પ્રીતિ પ્રતીતિ નિગમ નિજુ ગાઈ।।
મોરેં સબઇ એક તુમ્હ સ્વામી। દીનબંધુ ઉર અંતરજામી।।
ધરમ નીતિ ઉપદેસિઅ તાહી। કીરતિ ભૂતિ સુગતિ પ્રિય જાહી।।
મન ક્રમ બચન ચરન રત હોઈ। કૃપાસિંધુ પરિહરિઅ કિ સોઈ।।

3.1.72

चौपाई
અબ જૌ તુમ્હહિ સુતા પર નેહૂ। તૌ અસ જાઇ સિખાવન દેહૂ।।
કરૈ સો તપુ જેહિં મિલહિં મહેસૂ। આન ઉપાયન મિટહિ કલેસૂ।।
નારદ બચન સગર્ભ સહેતૂ। સુંદર સબ ગુન નિધિ બૃષકેતૂ।।
અસ બિચારિ તુમ્હ તજહુ અસંકા। સબહિ ભાિ સંકરુ અકલંકા।।
સુનિ પતિ બચન હરષિ મન માહીં। ગઈ તુરત ઉઠિ ગિરિજા પાહીં।।
ઉમહિ બિલોકિ નયન ભરે બારી। સહિત સનેહ ગોદ બૈઠારી।।
બારહિં બાર લેતિ ઉર લાઈ। ગદગદ કંઠ ન કછુ કહિ જાઈ।।
જગત માતુ સર્બગ્ય ભવાની। માતુ સુખદ બોલીં મૃદુ બાની।।

2.7.72

चौपाई
জো মাযা সব জগহি নচাবা৷ জাসু চরিত লখি কাহুন পাবা৷৷
সোই প্রভু ভ্রূ বিলাস খগরাজা৷ নাচ নটী ইব সহিত সমাজা৷৷
সোই সচ্চিদানংদ ঘন রামা৷ অজ বিগ্যান রূপো বল ধামা৷৷
ব্যাপক ব্যাপ্য অখংড অনংতা৷ অখিল অমোঘসক্তি ভগবংতা৷৷
অগুন অদভ্র গিরা গোতীতা৷ সবদরসী অনবদ্য অজীতা৷৷
নির্মম নিরাকার নিরমোহা৷ নিত্য নিরংজন সুখ সংদোহা৷৷
প্রকৃতি পার প্রভু সব উর বাসী৷ ব্রহ্ম নিরীহ বিরজ অবিনাসী৷৷
ইহামোহ কর কারন নাহীং৷ রবি সন্মুখ তম কবহুকি জাহীং৷৷

2.6.72

चौपाई
দিন কেং অংত ফিরীং দোউ অনী৷ সমর ভঈ সুভটন্হ শ্রম ঘনী৷৷
রাম কৃপাকপি দল বল বাঢ়া৷ জিমি তৃন পাই লাগ অতি ডাঢ়া৷৷
ছীজহিং নিসিচর দিনু অরু রাতী৷ নিজ মুখ কহেং সুকৃত জেহি ভাী৷৷
বহু বিলাপ দসকংধর করঈ৷ বংধু সীস পুনি পুনি উর ধরঈ৷৷
রোবহিং নারি হৃদয হতি পানী৷ তাসু তেজ বল বিপুল বখানী৷৷
মেঘনাদ তেহি অবসর আযউ৷ কহি বহু কথা পিতা সমুঝাযউ৷৷
দেখেহু কালি মোরি মনুসাঈ৷ অবহিং বহুত কা করৌং বড়াঈ৷৷
ইষ্টদেব সৈং বল রথ পাযউ সো বল তাত ন তোহি দেখাযউ৷
এহি বিধি জল্পত ভযউ বিহানা৷ চহুদুআর লাগে কপি নানা৷৷

2.2.72

चौपाई
দীন্হি মোহি সিখ নীকি গোসাঈং৷ লাগি অগম অপনী কদরাঈং৷৷
নরবর ধীর ধরম ধুর ধারী৷ নিগম নীতি কহুতে অধিকারী৷৷
মৈং সিসু প্রভু সনেহপ্রতিপালা৷ মংদরু মেরু কি লেহিং মরালা৷৷
গুর পিতু মাতু ন জানউকাহূ৷ কহউসুভাউ নাথ পতিআহূ৷৷
জহলগি জগত সনেহ সগাঈ৷ প্রীতি প্রতীতি নিগম নিজু গাঈ৷৷
মোরেং সবই এক তুম্হ স্বামী৷ দীনবংধু উর অংতরজামী৷৷
ধরম নীতি উপদেসিঅ তাহী৷ কীরতি ভূতি সুগতি প্রিয জাহী৷৷
মন ক্রম বচন চরন রত হোঈ৷ কৃপাসিংধু পরিহরিঅ কি সোঈ৷৷

2.1.72

चौपाई
অব জৌ তুম্হহি সুতা পর নেহূ৷ তৌ অস জাই সিখাবন দেহূ৷৷
করৈ সো তপু জেহিং মিলহিং মহেসূ৷ আন উপাযন মিটহি কলেসূ৷৷
নারদ বচন সগর্ভ সহেতূ৷ সুংদর সব গুন নিধি বৃষকেতূ৷৷
অস বিচারি তুম্হ তজহু অসংকা৷ সবহি ভাি সংকরু অকলংকা৷৷
সুনি পতি বচন হরষি মন মাহীং৷ গঈ তুরত উঠি গিরিজা পাহীং৷৷
উমহি বিলোকি নযন ভরে বারী৷ সহিত সনেহ গোদ বৈঠারী৷৷
বারহিং বার লেতি উর লাঈ৷ গদগদ কংঠ ন কছু কহি জাঈ৷৷
জগত মাতু সর্বগ্য ভবানী৷ মাতু সুখদ বোলীং মৃদু বানী৷৷

1.7.72

चौपाई
जो माया सब जगहि नचावा। जासु चरित लखि काहुँ न पावा।।
सोइ प्रभु भ्रू बिलास खगराजा। नाच नटी इव सहित समाजा।।
सोइ सच्चिदानंद घन रामा। अज बिग्यान रूपो बल धामा।।
ब्यापक ब्याप्य अखंड अनंता। अखिल अमोघसक्ति भगवंता।।
अगुन अदभ्र गिरा गोतीता। सबदरसी अनवद्य अजीता।।
निर्मम निराकार निरमोहा। नित्य निरंजन सुख संदोहा।।
प्रकृति पार प्रभु सब उर बासी। ब्रह्म निरीह बिरज अबिनासी।।
इहाँ मोह कर कारन नाहीं। रबि सन्मुख तम कबहुँ कि जाहीं।।

1.6.72

चौपाई
दिन कें अंत फिरीं दोउ अनी। समर भई सुभटन्ह श्रम घनी।।
राम कृपाँ कपि दल बल बाढ़ा। जिमि तृन पाइ लाग अति डाढ़ा।।
छीजहिं निसिचर दिनु अरु राती। निज मुख कहें सुकृत जेहि भाँती।।
बहु बिलाप दसकंधर करई। बंधु सीस पुनि पुनि उर धरई।।
रोवहिं नारि हृदय हति पानी। तासु तेज बल बिपुल बखानी।।
मेघनाद तेहि अवसर आयउ। कहि बहु कथा पिता समुझायउ।।
देखेहु कालि मोरि मनुसाई। अबहिं बहुत का करौं बड़ाई।।
इष्टदेव सैं बल रथ पायउँ। सो बल तात न तोहि देखायउँ।।
एहि बिधि जल्पत भयउ बिहाना। चहुँ दुआर लागे कपि नाना।।

1.2.72

चौपाई
दीन्हि मोहि सिख नीकि गोसाईं। लागि अगम अपनी कदराईं।।
नरबर धीर धरम धुर धारी। निगम नीति कहुँ ते अधिकारी।।
मैं सिसु प्रभु सनेहँ प्रतिपाला। मंदरु मेरु कि लेहिं मराला।।
गुर पितु मातु न जानउँ काहू। कहउँ सुभाउ नाथ पतिआहू।।
जहँ लगि जगत सनेह सगाई। प्रीति प्रतीति निगम निजु गाई।।
मोरें सबइ एक तुम्ह स्वामी। दीनबंधु उर अंतरजामी।।
धरम नीति उपदेसिअ ताही। कीरति भूति सुगति प्रिय जाही।।
मन क्रम बचन चरन रत होई। कृपासिंधु परिहरिअ कि सोई।।

दोहा/सोरठा

1.1.72

चौपाई
अब जौ तुम्हहि सुता पर नेहू। तौ अस जाइ सिखावन देहू।।
करै सो तपु जेहिं मिलहिं महेसू। आन उपायँ न मिटहि कलेसू।।
नारद बचन सगर्भ सहेतू। सुंदर सब गुन निधि बृषकेतू।।
अस बिचारि तुम्ह तजहु असंका। सबहि भाँति संकरु अकलंका।।
सुनि पति बचन हरषि मन माहीं। गई तुरत उठि गिरिजा पाहीं।।
उमहि बिलोकि नयन भरे बारी। सहित सनेह गोद बैठारी।।
बारहिं बार लेति उर लाई। गदगद कंठ न कछु कहि जाई।।
जगत मातु सर्बग्य भवानी। मातु सुखद बोलीं मृदु बानी।।

दोहा/सोरठा

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