74

3.2.74

चौपाई
ધીરજુ ધરેઉ કુઅવસર જાની। સહજ સુહ્દ બોલી મૃદુ બાની।।
તાત તુમ્હારિ માતુ બૈદેહી। પિતા રામુ સબ ભાિ સનેહી।।
અવધ તહાજહરામ નિવાસૂ। તહદિવસુ જહભાનુ પ્રકાસૂ।।
જૌ પૈ સીય રામુ બન જાહીં। અવધ તુમ્હાર કાજુ કછુ નાહિં।।
ગુર પિતુ માતુ બંધુ સુર સાઈ। સેઇઅહિં સકલ પ્રાન કી નાઈં।।
રામુ પ્રાનપ્રિય જીવન જી કે। સ્વારથ રહિત સખા સબહી કૈ।।
પૂજનીય પ્રિય પરમ જહાતેં। સબ માનિઅહિં રામ કે નાતેં।।
અસ જિયજાનિ સંગ બન જાહૂ। લેહુ તાત જગ જીવન લાહૂ।।

3.1.74

चौपाई
ઉર ધરિ ઉમા પ્રાનપતિ ચરના। જાઇ બિપિન લાગીં તપુ કરના।।
અતિ સુકુમાર ન તનુ તપ જોગૂ। પતિ પદ સુમિરિ તજેઉ સબુ ભોગૂ।।
નિત નવ ચરન ઉપજ અનુરાગા। બિસરી દેહ તપહિં મનુ લાગા।।
સંબત સહસ મૂલ ફલ ખાએ। સાગુ ખાઇ સત બરષ ગવા।।
કછુ દિન ભોજનુ બારિ બતાસા। કિએ કઠિન કછુ દિન ઉપબાસા।।
બેલ પાતી મહિ પરઇ સુખાઈ। તીનિ સહસ સંબત સોઈ ખાઈ।।
પુનિ પરિહરે સુખાનેઉ પરના। ઉમહિ નામ તબ ભયઉ અપરના।।
દેખિ ઉમહિ તપ ખીન સરીરા। બ્રહ્મગિરા ભૈ ગગન ગભીરા।।

2.7.74

चौपाई
সুনু খগেস রঘুপতি প্রভুতাঈ৷ কহউজথামতি কথা সুহাঈ৷৷
জেহি বিধি মোহ ভযউ প্রভু মোহী৷ সোউ সব কথা সুনাবউতোহী৷৷
রাম কৃপা ভাজন তুম্হ তাতা৷ হরি গুন প্রীতি মোহি সুখদাতা৷৷
তাতে নহিং কছু তুম্হহিং দুরাবউ পরম রহস্য মনোহর গাবউ৷
সুনহু রাম কর সহজ সুভাঊ৷ জন অভিমান ন রাখহিং কাঊ৷৷
সংসৃত মূল সূলপ্রদ নানা৷ সকল সোক দাযক অভিমানা৷৷
তাতে করহিং কৃপানিধি দূরী৷ সেবক পর মমতা অতি ভূরী৷৷
জিমি সিসু তন ব্রন হোই গোসাঈ৷ মাতু চিরাব কঠিন কী নাঈং৷৷

2.6.74

चौपाई
চরিত রাম কে সগুন ভবানী৷ তর্কি ন জাহিং বুদ্ধি বল বানী৷৷
অস বিচারি জে তগ্য বিরাগী৷ রামহি ভজহিং তর্ক সব ত্যাগী৷৷
ব্যাকুল কটকু কীন্হ ঘননাদা৷ পুনি ভা প্রগট কহই দুর্বাদা৷৷
জামবংত কহ খল রহু ঠাঢ়া৷ সুনি করি তাহি ক্রোধ অতি বাঢ়া৷৷
বূঢ় জানি সঠ ছা়েউতোহী৷ লাগেসি অধম পচারৈ মোহী৷৷
অস কহি তরল ত্রিসূল চলাযো৷ জামবংত কর গহি সোই ধাযো৷৷
মারিসি মেঘনাদ কৈ ছাতী৷ পরা ভূমি ঘুর্মিত সুরঘাতী৷৷
পুনি রিসান গহি চরন ফিরাযৌ৷ মহি পছারি নিজ বল দেখরাযো৷৷
বর প্রসাদ সো মরই ন মারা৷ তব গহি পদ লংকা পর ডারা৷৷

2.2.74

चौपाई
ধীরজু ধরেউ কুঅবসর জানী৷ সহজ সুহ্দ বোলী মৃদু বানী৷৷
তাত তুম্হারি মাতু বৈদেহী৷ পিতা রামু সব ভাি সনেহী৷৷
অবধ তহাজহরাম নিবাসূ৷ তহদিবসু জহভানু প্রকাসূ৷৷
জৌ পৈ সীয রামু বন জাহীং৷ অবধ তুম্হার কাজু কছু নাহিং৷৷
গুর পিতু মাতু বংধু সুর সাঈ৷ সেইঅহিং সকল প্রান কী নাঈং৷৷
রামু প্রানপ্রিয জীবন জী কে৷ স্বারথ রহিত সখা সবহী কৈ৷৷
পূজনীয প্রিয পরম জহাতেং৷ সব মানিঅহিং রাম কে নাতেং৷৷
অস জিযজানি সংগ বন জাহূ৷ লেহু তাত জগ জীবন লাহূ৷৷

2.1.74

चौपाई
উর ধরি উমা প্রানপতি চরনা৷ জাই বিপিন লাগীং তপু করনা৷৷
অতি সুকুমার ন তনু তপ জোগূ৷ পতি পদ সুমিরি তজেউ সবু ভোগূ৷৷
নিত নব চরন উপজ অনুরাগা৷ বিসরী দেহ তপহিং মনু লাগা৷৷
সংবত সহস মূল ফল খাএ৷ সাগু খাই সত বরষ গবা৷৷
কছু দিন ভোজনু বারি বতাসা৷ কিএ কঠিন কছু দিন উপবাসা৷৷
বেল পাতী মহি পরই সুখাঈ৷ তীনি সহস সংবত সোঈ খাঈ৷৷
পুনি পরিহরে সুখানেউ পরনা৷ উমহি নাম তব ভযউ অপরনা৷৷
দেখি উমহি তপ খীন সরীরা৷ ব্রহ্মগিরা ভৈ গগন গভীরা৷৷

1.7.74

चौपाई
सुनु खगेस रघुपति प्रभुताई। कहउँ जथामति कथा सुहाई।।
जेहि बिधि मोह भयउ प्रभु मोही। सोउ सब कथा सुनावउँ तोही।।
राम कृपा भाजन तुम्ह ताता। हरि गुन प्रीति मोहि सुखदाता।।
ताते नहिं कछु तुम्हहिं दुरावउँ। परम रहस्य मनोहर गावउँ।।
सुनहु राम कर सहज सुभाऊ। जन अभिमान न राखहिं काऊ।।
संसृत मूल सूलप्रद नाना। सकल सोक दायक अभिमाना।।
ताते करहिं कृपानिधि दूरी। सेवक पर ममता अति भूरी।।
जिमि सिसु तन ब्रन होइ गोसाई। मातु चिराव कठिन की नाईं।।

1.6.74

चौपाई
चरित राम के सगुन भवानी। तर्कि न जाहिं बुद्धि बल बानी।।
अस बिचारि जे तग्य बिरागी। रामहि भजहिं तर्क सब त्यागी।।
ब्याकुल कटकु कीन्ह घननादा। पुनि भा प्रगट कहइ दुर्बादा।।
जामवंत कह खल रहु ठाढ़ा। सुनि करि ताहि क्रोध अति बाढ़ा।।
बूढ़ जानि सठ छाँड़ेउँ तोही। लागेसि अधम पचारै मोही।।
अस कहि तरल त्रिसूल चलायो। जामवंत कर गहि सोइ धायो।।
मारिसि मेघनाद कै छाती। परा भूमि घुर्मित सुरघाती।।
पुनि रिसान गहि चरन फिरायौ। महि पछारि निज बल देखरायो।।
बर प्रसाद सो मरइ न मारा। तब गहि पद लंका पर डारा।।

1.2.74

चौपाई
धीरजु धरेउ कुअवसर जानी। सहज सुह्द बोली मृदु बानी।।
तात तुम्हारि मातु बैदेही। पिता रामु सब भाँति सनेही।।
अवध तहाँ जहँ राम निवासू। तहँइँ दिवसु जहँ भानु प्रकासू।।
जौ पै सीय रामु बन जाहीं। अवध तुम्हार काजु कछु नाहिं।।
गुर पितु मातु बंधु सुर साई। सेइअहिं सकल प्रान की नाईं।।
रामु प्रानप्रिय जीवन जी के। स्वारथ रहित सखा सबही कै।।
पूजनीय प्रिय परम जहाँ तें। सब मानिअहिं राम के नातें।।
अस जियँ जानि संग बन जाहू। लेहु तात जग जीवन लाहू।।

दोहा/सोरठा

1.1.74

चौपाई
उर धरि उमा प्रानपति चरना। जाइ बिपिन लागीं तपु करना।।
अति सुकुमार न तनु तप जोगू। पति पद सुमिरि तजेउ सबु भोगू।।
नित नव चरन उपज अनुरागा। बिसरी देह तपहिं मनु लागा।।
संबत सहस मूल फल खाए। सागु खाइ सत बरष गवाँए।।
कछु दिन भोजनु बारि बतासा। किए कठिन कछु दिन उपबासा।।
बेल पाती महि परइ सुखाई। तीनि सहस संबत सोई खाई।।
पुनि परिहरे सुखानेउ परना। उमहि नाम तब भयउ अपरना।।
देखि उमहि तप खीन सरीरा। ब्रह्मगिरा भै गगन गभीरा।।

दोहा/सोरठा

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