77

3.2.77

चौपाई
સકઇ ન બોલિ બિકલ નરનાહૂ। સોક જનિત ઉર દારુન દાહૂ।।
નાઇ સીસુ પદ અતિ અનુરાગા। ઉઠિ રઘુબીર બિદા તબ માગા।।
પિતુ અસીસ આયસુ મોહિ દીજૈ। હરષ સમય બિસમઉ કત કીજૈ।।
તાત કિએપ્રિય પ્રેમ પ્રમાદૂ। જસુ જગ જાઇ હોઇ અપબાદૂ।।
સુનિ સનેહ બસ ઉઠિ નરનાહા બૈઠારે રઘુપતિ ગહિ બાહા।
સુનહુ તાત તુમ્હ કહુમુનિ કહહીં। રામુ ચરાચર નાયક અહહીં।।
સુભ અરુ અસુભ કરમ અનુહારી। ઈસ દેઇ ફલુ હ્દયબિચારી।।
કરઇ જો કરમ પાવ ફલ સોઈ। નિગમ નીતિ અસિ કહ સબુ કોઈ।।

3.1.77

चौपाई
કહ સિવ જદપિ ઉચિત અસ નાહીં। નાથ બચન પુનિ મેટિ ન જાહીં।।
સિર ધરિ આયસુ કરિઅ તુમ્હારા। પરમ ધરમુ યહ નાથ હમારા।।
માતુ પિતા ગુર પ્રભુ કૈ બાની। બિનહિં બિચાર કરિઅ સુભ જાની।।
તુમ્હ સબ ભાિ પરમ હિતકારી। અગ્યા સિર પર નાથ તુમ્હારી।।
પ્રભુ તોષેઉ સુનિ સંકર બચના। ભક્તિ બિબેક ધર્મ જુત રચના।।
કહ પ્રભુ હર તુમ્હાર પન રહેઊ। અબ ઉર રાખેહુ જો હમ કહેઊ।।
અંતરધાન ભએ અસ ભાષી। સંકર સોઇ મૂરતિ ઉર રાખી।।
તબહિં સપ્તરિષિ સિવ પહિં આએ। બોલે પ્રભુ અતિ બચન સુહાએ।।

2.7.77

चौपाई
অরুন পানি নখ করজ মনোহর৷ বাহু বিসাল বিভূষন সুংদর৷৷
কংধ বাল কেহরি দর গ্রীবা৷ চারু চিবুক আনন ছবি সীংবা৷৷
কলবল বচন অধর অরুনারে৷ দুই দুই দসন বিসদ বর বারে৷৷
ললিত কপোল মনোহর নাসা৷ সকল সুখদ সসি কর সম হাসা৷৷
নীল কংজ লোচন ভব মোচন৷ ভ্রাজত ভাল তিলক গোরোচন৷৷
বিকট ভৃকুটি সম শ্রবন সুহাএ৷ কুংচিত কচ মেচক ছবি ছাএ৷৷
পীত ঝীনি ঝগুলী তন সোহী৷ কিলকনি চিতবনি ভাবতি মোহী৷৷
রূপ রাসি নৃপ অজির বিহারী৷ নাচহিং নিজ প্রতিবিংব নিহারী৷৷
মোহি সন করহীং বিবিধ বিধি ক্রীড়া৷ বরনত মোহি হোতি অতি ব্রীড়া৷৷

2.6.77

चौपाई
বিনু প্রযাস হনুমান উঠাযো৷ লংকা দ্বার রাখি পুনি আযো৷৷
তাসু মরন সুনি সুর গংধর্বা৷ চঢ়ি বিমান আএ নভ সর্বা৷৷
বরষি সুমন দুংদুভীং বজাবহিং৷ শ্রীরঘুনাথ বিমল জসু গাবহিং৷৷
জয অনংত জয জগদাধারা৷ তুম্হ প্রভু সব দেবন্হি নিস্তারা৷৷
অস্তুতি করি সুর সিদ্ধ সিধাএ৷ লছিমন কৃপাসিন্ধু পহিং আএ৷৷
সুত বধ সুনা দসানন জবহীং৷ মুরুছিত ভযউ পরেউ মহি তবহীং৷৷
মংদোদরী রুদন কর ভারী৷ উর তাড়ন বহু ভাি পুকারী৷৷
নগর লোগ সব ব্যাকুল সোচা৷ সকল কহহিং দসকংধর পোচা৷৷

2.2.77

चौपाई
সকই ন বোলি বিকল নরনাহূ৷ সোক জনিত উর দারুন দাহূ৷৷
নাই সীসু পদ অতি অনুরাগা৷ উঠি রঘুবীর বিদা তব মাগা৷৷
পিতু অসীস আযসু মোহি দীজৈ৷ হরষ সময বিসমউ কত কীজৈ৷৷
তাত কিএপ্রিয প্রেম প্রমাদূ৷ জসু জগ জাই হোই অপবাদূ৷৷
সুনি সনেহ বস উঠি নরনাহা বৈঠারে রঘুপতি গহি বাহা৷
সুনহু তাত তুম্হ কহুমুনি কহহীং৷ রামু চরাচর নাযক অহহীং৷৷
সুভ অরু অসুভ করম অনুহারী৷ ঈস দেই ফলু হ্দযবিচারী৷৷
করই জো করম পাব ফল সোঈ৷ নিগম নীতি অসি কহ সবু কোঈ৷৷

2.1.77

चौपाई
কহ সিব জদপি উচিত অস নাহীং৷ নাথ বচন পুনি মেটি ন জাহীং৷৷
সির ধরি আযসু করিঅ তুম্হারা৷ পরম ধরমু যহ নাথ হমারা৷৷
মাতু পিতা গুর প্রভু কৈ বানী৷ বিনহিং বিচার করিঅ সুভ জানী৷৷
তুম্হ সব ভাি পরম হিতকারী৷ অগ্যা সির পর নাথ তুম্হারী৷৷
প্রভু তোষেউ সুনি সংকর বচনা৷ ভক্তি বিবেক ধর্ম জুত রচনা৷৷
কহ প্রভু হর তুম্হার পন রহেঊ৷ অব উর রাখেহু জো হম কহেঊ৷৷
অংতরধান ভএ অস ভাষী৷ সংকর সোই মূরতি উর রাখী৷৷
তবহিং সপ্তরিষি সিব পহিং আএ৷ বোলে প্রভু অতি বচন সুহাএ৷৷

1.7.77

चौपाई
अरुन पानि नख करज मनोहर। बाहु बिसाल बिभूषन सुंदर।।
कंध बाल केहरि दर ग्रीवा। चारु चिबुक आनन छबि सींवा।।
कलबल बचन अधर अरुनारे। दुइ दुइ दसन बिसद बर बारे।।
ललित कपोल मनोहर नासा। सकल सुखद ससि कर सम हासा।।
नील कंज लोचन भव मोचन। भ्राजत भाल तिलक गोरोचन।।
बिकट भृकुटि सम श्रवन सुहाए। कुंचित कच मेचक छबि छाए।।
पीत झीनि झगुली तन सोही। किलकनि चितवनि भावति मोही।।
रूप रासि नृप अजिर बिहारी। नाचहिं निज प्रतिबिंब निहारी।।
मोहि सन करहीं बिबिध बिधि क्रीड़ा। बरनत मोहि होति अति ब्रीड़ा।।

1.6.77

चौपाई
बिनु प्रयास हनुमान उठायो। लंका द्वार राखि पुनि आयो।।
तासु मरन सुनि सुर गंधर्बा। चढ़ि बिमान आए नभ सर्बा।।
बरषि सुमन दुंदुभीं बजावहिं। श्रीरघुनाथ बिमल जसु गावहिं।।
जय अनंत जय जगदाधारा। तुम्ह प्रभु सब देवन्हि निस्तारा।।
अस्तुति करि सुर सिद्ध सिधाए। लछिमन कृपासिन्धु पहिं आए।।
सुत बध सुना दसानन जबहीं। मुरुछित भयउ परेउ महि तबहीं।।
मंदोदरी रुदन कर भारी। उर ताड़न बहु भाँति पुकारी।।
नगर लोग सब ब्याकुल सोचा। सकल कहहिं दसकंधर पोचा।।

दोहा/सोरठा

1.2.77

चौपाई
सकइ न बोलि बिकल नरनाहू। सोक जनित उर दारुन दाहू।।
नाइ सीसु पद अति अनुरागा। उठि रघुबीर बिदा तब मागा।।
पितु असीस आयसु मोहि दीजै। हरष समय बिसमउ कत कीजै।।
तात किएँ प्रिय प्रेम प्रमादू। जसु जग जाइ होइ अपबादू।।
सुनि सनेह बस उठि नरनाहाँ। बैठारे रघुपति गहि बाहाँ।।
सुनहु तात तुम्ह कहुँ मुनि कहहीं। रामु चराचर नायक अहहीं।।
सुभ अरु असुभ करम अनुहारी। ईस देइ फलु ह्दयँ बिचारी।।
करइ जो करम पाव फल सोई। निगम नीति असि कह सबु कोई।।

दोहा/सोरठा

1.1.77

चौपाई
कह सिव जदपि उचित अस नाहीं। नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं।।
सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा। परम धरमु यह नाथ हमारा।।
मातु पिता गुर प्रभु कै बानी। बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी।।
तुम्ह सब भाँति परम हितकारी। अग्या सिर पर नाथ तुम्हारी।।
प्रभु तोषेउ सुनि संकर बचना। भक्ति बिबेक धर्म जुत रचना।।
कह प्रभु हर तुम्हार पन रहेऊ। अब उर राखेहु जो हम कहेऊ।।
अंतरधान भए अस भाषी। संकर सोइ मूरति उर राखी।।
तबहिं सप्तरिषि सिव पहिं आए। बोले प्रभु अति बचन सुहाए।।

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