81

3.2.81

चौपाई
એહિ બિધિ રામ સબહિ સમુઝાવા। ગુર પદ પદુમ હરષિ સિરુ નાવા।
ગનપતી ગૌરિ ગિરીસુ મનાઈ। ચલે અસીસ પાઇ રઘુરાઈ।।
રામ ચલત અતિ ભયઉ બિષાદૂ। સુનિ ન જાઇ પુર આરત નાદૂ।।
કુસગુન લંક અવધ અતિ સોકૂ। હહરષ બિષાદ બિબસ સુરલોકૂ।।
ગઇ મુરુછા તબ ભૂપતિ જાગે। બોલિ સુમંત્રુ કહન અસ લાગે।।
રામુ ચલે બન પ્રાન ન જાહીં। કેહિ સુખ લાગિ રહત તન માહીં।
એહિ તેં કવન બ્યથા બલવાના। જો દુખુ પાઇ તજહિં તનુ પ્રાના।।
પુનિ ધરિ ધીર કહઇ નરનાહૂ। લૈ રથુ સંગ સખા તુમ્હ જાહૂ।।

3.1.81

चौपाई
જૌં તુમ્હ મિલતેહુ પ્રથમ મુનીસા। સુનતિઉસિખ તુમ્હારિ ધરિ સીસા।।
અબ મૈં જન્મુ સંભુ હિત હારા। કો ગુન દૂષન કરૈ બિચારા।।
જૌં તુમ્હરે હઠ હૃદયબિસેષી। રહિ ન જાઇ બિનુ કિએબરેષી।।
તૌ કૌતુકિઅન્હ આલસુ નાહીં। બર કન્યા અનેક જગ માહીં।।
જન્મ કોટિ લગિ રગર હમારી। બરઉસંભુ ન ત રહઉકુઆરી।।
તજઉન નારદ કર ઉપદેસૂ। આપુ કહહિ સત બાર મહેસૂ।।
મૈં પા પરઉકહઇ જગદંબા। તુમ્હ ગૃહ ગવનહુ ભયઉ બિલંબા।।
દેખિ પ્રેમુ બોલે મુનિ ગ્યાની। જય જય જગદંબિકે ભવાની।।

2.7.81

चौपाई
লোক লোক প্রতি ভিন্ন বিধাতা৷ ভিন্ন বিষ্নু সিব মনু দিসিত্রাতা৷৷
নর গংধর্ব ভূত বেতালা৷ কিংনর নিসিচর পসু খগ ব্যালা৷৷
দেব দনুজ গন নানা জাতী৷ সকল জীব তহআনহি ভাী৷৷
মহি সরি সাগর সর গিরি নানা৷ সব প্রপংচ তহআনই আনা৷৷
অংডকোস প্রতি প্রতি নিজ রুপা৷ দেখেউজিনস অনেক অনূপা৷৷
অবধপুরী প্রতি ভুবন নিনারী৷ সরজূ ভিন্ন ভিন্ন নর নারী৷৷
দসরথ কৌসল্যা সুনু তাতা৷ বিবিধ রূপ ভরতাদিক ভ্রাতা৷৷
প্রতি ব্রহ্মাংড রাম অবতারা৷ দেখউবালবিনোদ অপারা৷৷

2.6.81

चौपाई
সুর ব্রহ্মাদি সিদ্ধ মুনি নানা৷ দেখত রন নভ চঢ়ে বিমানা৷৷
হমহূ উমা রহে তেহি সংগা৷ দেখত রাম চরিত রন রংগা৷৷
সুভট সমর রস দুহু দিসি মাতে৷ কপি জযসীল রাম বল তাতে৷৷
এক এক সন ভিরহিং পচারহিং৷ একন্হ এক মর্দি মহি পারহিং৷৷
মারহিং কাটহিং ধরহিং পছারহিং৷ সীস তোরি সীসন্হ সন মারহিং৷৷
উদর বিদারহিং ভুজা উপারহিং৷ গহি পদ অবনি পটকি ভট ডারহিং৷৷
নিসিচর ভট মহি গাড়হি ভালূ৷ ঊপর ঢারি দেহিং বহু বালূ৷৷
বীর বলিমুখ জুদ্ধ বিরুদ্ধে৷ দেখিঅত বিপুল কাল জনু ক্রুদ্ধে৷৷

2.2.81

चौपाई
এহি বিধি রাম সবহি সমুঝাবা৷ গুর পদ পদুম হরষি সিরু নাবা৷
গনপতী গৌরি গিরীসু মনাঈ৷ চলে অসীস পাই রঘুরাঈ৷৷
রাম চলত অতি ভযউ বিষাদূ৷ সুনি ন জাই পুর আরত নাদূ৷৷
কুসগুন লংক অবধ অতি সোকূ৷ হহরষ বিষাদ বিবস সুরলোকূ৷৷
গই মুরুছা তব ভূপতি জাগে৷ বোলি সুমংত্রু কহন অস লাগে৷৷
রামু চলে বন প্রান ন জাহীং৷ কেহি সুখ লাগি রহত তন মাহীং৷
এহি তেং কবন ব্যথা বলবানা৷ জো দুখু পাই তজহিং তনু প্রানা৷৷
পুনি ধরি ধীর কহই নরনাহূ৷ লৈ রথু সংগ সখা তুম্হ জাহূ৷৷

2.1.81

चौपाई
জৌং তুম্হ মিলতেহু প্রথম মুনীসা৷ সুনতিউসিখ তুম্হারি ধরি সীসা৷৷
অব মৈং জন্মু সংভু হিত হারা৷ কো গুন দূষন করৈ বিচারা৷৷
জৌং তুম্হরে হঠ হৃদযবিসেষী৷ রহি ন জাই বিনু কিএবরেষী৷৷
তৌ কৌতুকিঅন্হ আলসু নাহীং৷ বর কন্যা অনেক জগ মাহীং৷৷
জন্ম কোটি লগি রগর হমারী৷ বরউসংভু ন ত রহউকুআরী৷৷
তজউন নারদ কর উপদেসূ৷ আপু কহহি সত বার মহেসূ৷৷
মৈং পা পরউকহই জগদংবা৷ তুম্হ গৃহ গবনহু ভযউ বিলংবা৷৷
দেখি প্রেমু বোলে মুনি গ্যানী৷ জয জয জগদংবিকে ভবানী৷৷

1.7.81

चौपाई
लोक लोक प्रति भिन्न बिधाता। भिन्न बिष्नु सिव मनु दिसित्राता।।
नर गंधर्ब भूत बेताला। किंनर निसिचर पसु खग ब्याला।।
देव दनुज गन नाना जाती। सकल जीव तहँ आनहि भाँती।।
महि सरि सागर सर गिरि नाना। सब प्रपंच तहँ आनइ आना।।
अंडकोस प्रति प्रति निज रुपा। देखेउँ जिनस अनेक अनूपा।।
अवधपुरी प्रति भुवन निनारी। सरजू भिन्न भिन्न नर नारी।।
दसरथ कौसल्या सुनु ताता। बिबिध रूप भरतादिक भ्राता।।
प्रति ब्रह्मांड राम अवतारा। देखउँ बालबिनोद अपारा।।

1.6.81

चौपाई
सुर ब्रह्मादि सिद्ध मुनि नाना। देखत रन नभ चढ़े बिमाना।।
हमहू उमा रहे तेहि संगा। देखत राम चरित रन रंगा।।
सुभट समर रस दुहु दिसि माते। कपि जयसील राम बल ताते।।
एक एक सन भिरहिं पचारहिं। एकन्ह एक मर्दि महि पारहिं।।
मारहिं काटहिं धरहिं पछारहिं। सीस तोरि सीसन्ह सन मारहिं।।
उदर बिदारहिं भुजा उपारहिं। गहि पद अवनि पटकि भट डारहिं।।
निसिचर भट महि गाड़हि भालू। ऊपर ढारि देहिं बहु बालू।।
बीर बलिमुख जुद्ध बिरुद्धे। देखिअत बिपुल काल जनु क्रुद्धे।।

1.2.81

चौपाई
एहि बिधि राम सबहि समुझावा। गुर पद पदुम हरषि सिरु नावा।
गनपती गौरि गिरीसु मनाई। चले असीस पाइ रघुराई।।
राम चलत अति भयउ बिषादू। सुनि न जाइ पुर आरत नादू।।
कुसगुन लंक अवध अति सोकू। हहरष बिषाद बिबस सुरलोकू।।
गइ मुरुछा तब भूपति जागे। बोलि सुमंत्रु कहन अस लागे।।
रामु चले बन प्रान न जाहीं। केहि सुख लागि रहत तन माहीं।
एहि तें कवन ब्यथा बलवाना। जो दुखु पाइ तजहिं तनु प्राना।।
पुनि धरि धीर कहइ नरनाहू। लै रथु संग सखा तुम्ह जाहू।।

दोहा/सोरठा

1.1.81

चौपाई
जौं तुम्ह मिलतेहु प्रथम मुनीसा। सुनतिउँ सिख तुम्हारि धरि सीसा।।
अब मैं जन्मु संभु हित हारा। को गुन दूषन करै बिचारा।।
जौं तुम्हरे हठ हृदयँ बिसेषी। रहि न जाइ बिनु किएँ बरेषी।।
तौ कौतुकिअन्ह आलसु नाहीं। बर कन्या अनेक जग माहीं।।
जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी।।
तजउँ न नारद कर उपदेसू। आपु कहहि सत बार महेसू।।
मैं पा परउँ कहइ जगदंबा। तुम्ह गृह गवनहु भयउ बिलंबा।।
देखि प्रेमु बोले मुनि ग्यानी। जय जय जगदंबिके भवानी।।

दोहा/सोरठा

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