82

3.2.82

चौपाई
જૌ નહિં ફિરહિં ધીર દોઉ ભાઈ। સત્યસંધ દૃઢ઼બ્રત રઘુરાઈ।।
તૌ તુમ્હ બિનય કરેહુ કર જોરી। ફેરિઅ પ્રભુ મિથિલેસકિસોરી।।
જબ સિય કાનન દેખિ ડેરાઈ। કહેહુ મોરિ સિખ અવસરુ પાઈ।।
સાસુ સસુર અસ કહેઉ સેસૂ। પુત્રિ ફિરિઅ બન બહુત કલેસૂ।।
પિતૃગૃહ કબહુકબહુસસુરારી। રહેહુ જહારુચિ હોઇ તુમ્હારી।।
એહિ બિધિ કરેહુ ઉપાય કદંબા। ફિરઇ ત હોઇ પ્રાન અવલંબા।।
નાહિં ત મોર મરનુ પરિનામા। કછુ ન બસાઇ ભએબિધિ બામા।।
અસ કહિ મુરુછિ પરા મહિ રાઊ। રામુ લખનુ સિય આનિ દેખાઊ।।

3.1.82

चौपाई
જાઇ મુનિન્હ હિમવંતુ પઠાએ। કરિ બિનતી ગિરજહિં ગૃહ લ્યાએ।।
બહુરિ સપ્તરિષિ સિવ પહિં જાઈ। કથા ઉમા કૈ સકલ સુનાઈ।।
ભએ મગન સિવ સુનત સનેહા। હરષિ સપ્તરિષિ ગવને ગેહા।।
મનુ થિર કરિ તબ સંભુ સુજાના। લગે કરન રઘુનાયક ધ્યાના।।
તારકુ અસુર ભયઉ તેહિ કાલા। ભુજ પ્રતાપ બલ તેજ બિસાલા।।
તેંહિ સબ લોક લોકપતિ જીતે। ભએ દેવ સુખ સંપતિ રીતે।।
અજર અમર સો જીતિ ન જાઈ। હારે સુર કરિ બિબિધ લરાઈ।।
તબ બિરંચિ સન જાઇ પુકારે। દેખે બિધિ સબ દેવ દુખારે।।

2.7.82

चौपाई
ভ্রমত মোহি ব্রহ্মাংড অনেকা৷ বীতে মনহুকল্প সত একা৷৷
ফিরত ফিরত নিজ আশ্রম আযউ তহপুনি রহি কছু কাল গবাউ৷
নিজ প্রভু জন্ম অবধ সুনি পাযউ নির্ভর প্রেম হরষি উঠি ধাযউ৷
দেখউজন্ম মহোত্সব জাঈ৷ জেহি বিধি প্রথম কহা মৈং গাঈ৷৷
রাম উদর দেখেউজগ নানা৷ দেখত বনই ন জাই বখানা৷৷
তহপুনি দেখেউরাম সুজানা৷ মাযা পতি কৃপাল ভগবানা৷৷
করউবিচার বহোরি বহোরী৷ মোহ কলিল ব্যাপিত মতি মোরী৷৷
উভয ঘরী মহমৈং সব দেখা৷ ভযউভ্রমিত মন মোহ বিসেষা৷৷

2.6.82

चौपाई
ধাযউ পরম ক্রুদ্ধ দসকংধর৷ সন্মুখ চলে হূহ দৈ বংদর৷৷
গহি কর পাদপ উপল পহারা৷ ডারেন্হি তা পর একহিং বারা৷৷
লাগহিং সৈল বজ্র তন তাসূ৷ খংড খংড হোই ফূটহিং আসূ৷৷
চলা ন অচল রহা রথ রোপী৷ রন দুর্মদ রাবন অতি কোপী৷৷
ইত উত ঝপটি দপটি কপি জোধা৷ মর্দৈ লাগ ভযউ অতি ক্রোধা৷৷
চলে পরাই ভালু কপি নানা৷ ত্রাহি ত্রাহি অংগদ হনুমানা৷৷
পাহি পাহি রঘুবীর গোসাঈ৷ যহ খল খাই কাল কী নাঈ৷৷
তেহি দেখে কপি সকল পরানে৷ দসহুচাপ সাযক সংধানে৷৷

2.2.82

चौपाई
জৌ নহিং ফিরহিং ধীর দোউ ভাঈ৷ সত্যসংধ দৃঢ়ব্রত রঘুরাঈ৷৷
তৌ তুম্হ বিনয করেহু কর জোরী৷ ফেরিঅ প্রভু মিথিলেসকিসোরী৷৷
জব সিয কানন দেখি ডেরাঈ৷ কহেহু মোরি সিখ অবসরু পাঈ৷৷
সাসু সসুর অস কহেউ সেসূ৷ পুত্রি ফিরিঅ বন বহুত কলেসূ৷৷
পিতৃগৃহ কবহুকবহুসসুরারী৷ রহেহু জহারুচি হোই তুম্হারী৷৷
এহি বিধি করেহু উপায কদংবা৷ ফিরই ত হোই প্রান অবলংবা৷৷
নাহিং ত মোর মরনু পরিনামা৷ কছু ন বসাই ভএবিধি বামা৷৷
অস কহি মুরুছি পরা মহি রাঊ৷ রামু লখনু সিয আনি দেখাঊ৷৷

2.1.82

चौपाई
জাই মুনিন্হ হিমবংতু পঠাএ৷ করি বিনতী গিরজহিং গৃহ ল্যাএ৷৷
বহুরি সপ্তরিষি সিব পহিং জাঈ৷ কথা উমা কৈ সকল সুনাঈ৷৷
ভএ মগন সিব সুনত সনেহা৷ হরষি সপ্তরিষি গবনে গেহা৷৷
মনু থির করি তব সংভু সুজানা৷ লগে করন রঘুনাযক ধ্যানা৷৷
তারকু অসুর ভযউ তেহি কালা৷ ভুজ প্রতাপ বল তেজ বিসালা৷৷
তেংহি সব লোক লোকপতি জীতে৷ ভএ দেব সুখ সংপতি রীতে৷৷
অজর অমর সো জীতি ন জাঈ৷ হারে সুর করি বিবিধ লরাঈ৷৷
তব বিরংচি সন জাই পুকারে৷ দেখে বিধি সব দেব দুখারে৷৷

1.7.82

चौपाई
भ्रमत मोहि ब्रह्मांड अनेका। बीते मनहुँ कल्प सत एका।।
फिरत फिरत निज आश्रम आयउँ। तहँ पुनि रहि कछु काल गवाँयउँ।।
निज प्रभु जन्म अवध सुनि पायउँ। निर्भर प्रेम हरषि उठि धायउँ।।
देखउँ जन्म महोत्सव जाई। जेहि बिधि प्रथम कहा मैं गाई।।
राम उदर देखेउँ जग नाना। देखत बनइ न जाइ बखाना।।
तहँ पुनि देखेउँ राम सुजाना। माया पति कृपाल भगवाना।।
करउँ बिचार बहोरि बहोरी। मोह कलिल ब्यापित मति मोरी।।
उभय घरी महँ मैं सब देखा। भयउँ भ्रमित मन मोह बिसेषा।।

1.6.82

चौपाई
धायउ परम क्रुद्ध दसकंधर। सन्मुख चले हूह दै बंदर।।
गहि कर पादप उपल पहारा। डारेन्हि ता पर एकहिं बारा।।
लागहिं सैल बज्र तन तासू। खंड खंड होइ फूटहिं आसू।।
चला न अचल रहा रथ रोपी। रन दुर्मद रावन अति कोपी।।
इत उत झपटि दपटि कपि जोधा। मर्दै लाग भयउ अति क्रोधा।।
चले पराइ भालु कपि नाना। त्राहि त्राहि अंगद हनुमाना।।
पाहि पाहि रघुबीर गोसाई। यह खल खाइ काल की नाई।।
तेहि देखे कपि सकल पराने। दसहुँ चाप सायक संधाने।।

1.2.82

चौपाई
जौ नहिं फिरहिं धीर दोउ भाई। सत्यसंध दृढ़ब्रत रघुराई।।
तौ तुम्ह बिनय करेहु कर जोरी। फेरिअ प्रभु मिथिलेसकिसोरी।।
जब सिय कानन देखि डेराई। कहेहु मोरि सिख अवसरु पाई।।
सासु ससुर अस कहेउ सँदेसू। पुत्रि फिरिअ बन बहुत कलेसू।।
पितृगृह कबहुँ कबहुँ ससुरारी। रहेहु जहाँ रुचि होइ तुम्हारी।।
एहि बिधि करेहु उपाय कदंबा। फिरइ त होइ प्रान अवलंबा।।
नाहिं त मोर मरनु परिनामा। कछु न बसाइ भएँ बिधि बामा।।
अस कहि मुरुछि परा महि राऊ। रामु लखनु सिय आनि देखाऊ।।

1.1.82

चौपाई
जाइ मुनिन्ह हिमवंतु पठाए। करि बिनती गिरजहिं गृह ल्याए।।
बहुरि सप्तरिषि सिव पहिं जाई। कथा उमा कै सकल सुनाई।।
भए मगन सिव सुनत सनेहा। हरषि सप्तरिषि गवने गेहा।।
मनु थिर करि तब संभु सुजाना। लगे करन रघुनायक ध्याना।।
तारकु असुर भयउ तेहि काला। भुज प्रताप बल तेज बिसाला।।
तेंहि सब लोक लोकपति जीते। भए देव सुख संपति रीते।।
अजर अमर सो जीति न जाई। हारे सुर करि बिबिध लराई।।
तब बिरंचि सन जाइ पुकारे। देखे बिधि सब देव दुखारे।।

दोहा/सोरठा

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