83

3.2.83

चौपाई
તબ સુમંત્ર નૃપ બચન સુનાએ। કરિ બિનતી રથ રામુ ચઢ઼ાએ।।
ચઢ઼િ રથ સીય સહિત દોઉ ભાઈ। ચલે હૃદયઅવધહિ સિરુ નાઈ।।
ચલત રામુ લખિ અવધ અનાથા। બિકલ લોગ સબ લાગે સાથા।।
કૃપાસિંધુ બહુબિધિ સમુઝાવહિં। ફિરહિં પ્રેમ બસ પુનિ ફિરિ આવહિં।।
લાગતિ અવધ ભયાવનિ ભારી। માનહુકાલરાતિ અિઆરી।।
ઘોર જંતુ સમ પુર નર નારી। ડરપહિં એકહિ એક નિહારી।।
ઘર મસાન પરિજન જનુ ભૂતા। સુત હિત મીત મનહુજમદૂતા।।
બાગન્હ બિટપ બેલિ કુમ્હિલાહીં। સરિત સરોવર દેખિ ન જાહીં।।

3.1.83

चौपाई
મોર કહા સુનિ કરહુ ઉપાઈ। હોઇહિ ઈસ્વર કરિહિ સહાઈ।।
સતીં જો તજી દચ્છ મખ દેહા। જનમી જાઇ હિમાચલ ગેહા।।
તેહિં તપુ કીન્હ સંભુ પતિ લાગી। સિવ સમાધિ બૈઠે સબુ ત્યાગી।।
જદપિ અહઇ અસમંજસ ભારી। તદપિ બાત એક સુનહુ હમારી।।
પઠવહુ કામુ જાઇ સિવ પાહીં। કરૈ છોભુ સંકર મન માહીં।।
તબ હમ જાઇ સિવહિ સિર નાઈ। કરવાઉબ બિબાહુ બરિઆઈ।।
એહિ બિધિ ભલેહિ દેવહિત હોઈ। મર અતિ નીક કહઇ સબુ કોઈ।।
અસ્તુતિ સુરન્હ કીન્હિ અતિ હેતૂ। પ્રગટેઉ બિષમબાન ઝષકેતૂ।।

2.7.83

चौपाई
দেখি চরিত যহ সো প্রভুতাঈ৷ সমুঝত দেহ দসা বিসরাঈ৷৷
ধরনি পরেউমুখ আব ন বাতা৷ ত্রাহি ত্রাহি আরত জন ত্রাতা৷৷
প্রেমাকুল প্রভু মোহি বিলোকী৷ নিজ মাযা প্রভুতা তব রোকী৷৷
কর সরোজ প্রভু মম সির ধরেঊ৷ দীনদযাল সকল দুখ হরেঊ৷৷
কীন্হ রাম মোহি বিগত বিমোহা৷ সেবক সুখদ কৃপা সংদোহা৷৷
প্রভুতা প্রথম বিচারি বিচারী৷ মন মহহোই হরষ অতি ভারী৷৷
ভগত বছলতা প্রভু কৈ দেখী৷ উপজী মম উর প্রীতি বিসেষী৷৷
সজল নযন পুলকিত কর জোরী৷ কীন্হিউবহু বিধি বিনয বহোরী৷৷

2.6.83

चौपाई
রে খল কা মারসি কপি ভালূ৷ মোহি বিলোকু তোর মৈং কালূ৷৷
খোজত রহেউতোহি সুতঘাতী৷ আজু নিপাতি জুড়াবউছাতী৷৷
অস কহি ছাড়েসি বান প্রচংডা৷ লছিমন কিএ সকল সত খংডা৷৷
কোটিন্হ আযুধ রাবন ডারে৷ তিল প্রবান করি কাটি নিবারে৷৷
পুনি নিজ বানন্হ কীন্হ প্রহারা৷ স্যংদনু ভংজি সারথী মারা৷৷
সত সত সর মারে দস ভালা৷ গিরি সৃংগন্হ জনু প্রবিসহিং ব্যালা৷৷
পুনি সত সর মারা উর মাহীং৷ পরেউ ধরনি তল সুধি কছু নাহীং৷৷
উঠা প্রবল পুনি মুরুছা জাগী৷ ছাড়িসি ব্রহ্ম দীন্হি জো সাী৷৷

2.2.83

चौपाई
তব সুমংত্র নৃপ বচন সুনাএ৷ করি বিনতী রথ রামু চঢ়াএ৷৷
চঢ়ি রথ সীয সহিত দোউ ভাঈ৷ চলে হৃদযঅবধহি সিরু নাঈ৷৷
চলত রামু লখি অবধ অনাথা৷ বিকল লোগ সব লাগে সাথা৷৷
কৃপাসিংধু বহুবিধি সমুঝাবহিং৷ ফিরহিং প্রেম বস পুনি ফিরি আবহিং৷৷
লাগতি অবধ ভযাবনি ভারী৷ মানহুকালরাতি অিআরী৷৷
ঘোর জংতু সম পুর নর নারী৷ ডরপহিং একহি এক নিহারী৷৷
ঘর মসান পরিজন জনু ভূতা৷ সুত হিত মীত মনহুজমদূতা৷৷
বাগন্হ বিটপ বেলি কুম্হিলাহীং৷ সরিত সরোবর দেখি ন জাহীং৷৷

2.1.83

चौपाई
মোর কহা সুনি করহু উপাঈ৷ হোইহি ঈস্বর করিহি সহাঈ৷৷
সতীং জো তজী দচ্ছ মখ দেহা৷ জনমী জাই হিমাচল গেহা৷৷
তেহিং তপু কীন্হ সংভু পতি লাগী৷ সিব সমাধি বৈঠে সবু ত্যাগী৷৷
জদপি অহই অসমংজস ভারী৷ তদপি বাত এক সুনহু হমারী৷৷
পঠবহু কামু জাই সিব পাহীং৷ করৈ ছোভু সংকর মন মাহীং৷৷
তব হম জাই সিবহি সির নাঈ৷ করবাউব বিবাহু বরিআঈ৷৷
এহি বিধি ভলেহি দেবহিত হোঈ৷ মর অতি নীক কহই সবু কোঈ৷৷
অস্তুতি সুরন্হ কীন্হি অতি হেতূ৷ প্রগটেউ বিষমবান ঝষকেতূ৷৷

1.7.83

चौपाई
देखि चरित यह सो प्रभुताई। समुझत देह दसा बिसराई।।
धरनि परेउँ मुख आव न बाता। त्राहि त्राहि आरत जन त्राता।।
प्रेमाकुल प्रभु मोहि बिलोकी। निज माया प्रभुता तब रोकी।।
कर सरोज प्रभु मम सिर धरेऊ। दीनदयाल सकल दुख हरेऊ।।
कीन्ह राम मोहि बिगत बिमोहा। सेवक सुखद कृपा संदोहा।।
प्रभुता प्रथम बिचारि बिचारी। मन महँ होइ हरष अति भारी।।
भगत बछलता प्रभु कै देखी। उपजी मम उर प्रीति बिसेषी।।
सजल नयन पुलकित कर जोरी। कीन्हिउँ बहु बिधि बिनय बहोरी।।

1.6.83

चौपाई
रे खल का मारसि कपि भालू। मोहि बिलोकु तोर मैं कालू।।
खोजत रहेउँ तोहि सुतघाती। आजु निपाति जुड़ावउँ छाती।।
अस कहि छाड़ेसि बान प्रचंडा। लछिमन किए सकल सत खंडा।।
कोटिन्ह आयुध रावन डारे। तिल प्रवान करि काटि निवारे।।
पुनि निज बानन्ह कीन्ह प्रहारा। स्यंदनु भंजि सारथी मारा।।
सत सत सर मारे दस भाला। गिरि सृंगन्ह जनु प्रबिसहिं ब्याला।।
पुनि सत सर मारा उर माहीं। परेउ धरनि तल सुधि कछु नाहीं।।
उठा प्रबल पुनि मुरुछा जागी। छाड़िसि ब्रह्म दीन्हि जो साँगी।।

1.2.83

चौपाई
तब सुमंत्र नृप बचन सुनाए। करि बिनती रथ रामु चढ़ाए।।
चढ़ि रथ सीय सहित दोउ भाई। चले हृदयँ अवधहि सिरु नाई।।
चलत रामु लखि अवध अनाथा। बिकल लोग सब लागे साथा।।
कृपासिंधु बहुबिधि समुझावहिं। फिरहिं प्रेम बस पुनि फिरि आवहिं।।
लागति अवध भयावनि भारी। मानहुँ कालराति अँधिआरी।।
घोर जंतु सम पुर नर नारी। डरपहिं एकहि एक निहारी।।
घर मसान परिजन जनु भूता। सुत हित मीत मनहुँ जमदूता।।
बागन्ह बिटप बेलि कुम्हिलाहीं। सरित सरोवर देखि न जाहीं।।

दोहा/सोरठा

1.1.83

चौपाई
मोर कहा सुनि करहु उपाई। होइहि ईस्वर करिहि सहाई।।
सतीं जो तजी दच्छ मख देहा। जनमी जाइ हिमाचल गेहा।।
तेहिं तपु कीन्ह संभु पति लागी। सिव समाधि बैठे सबु त्यागी।।
जदपि अहइ असमंजस भारी। तदपि बात एक सुनहु हमारी।।
पठवहु कामु जाइ सिव पाहीं। करै छोभु संकर मन माहीं।।
तब हम जाइ सिवहि सिर नाई। करवाउब बिबाहु बरिआई।।
एहि बिधि भलेहि देवहित होई। मर अति नीक कहइ सबु कोई।।
अस्तुति सुरन्ह कीन्हि अति हेतू। प्रगटेउ बिषमबान झषकेतू।।

दोहा/सोरठा

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