89

3.2.89

चौपाई
રામ લખન સિય રૂપ નિહારી। કહહિં સપ્રેમ ગ્રામ નર નારી।।
તે પિતુ માતુ કહહુ સખિ કૈસે। જિન્હ પઠએ બન બાલક ઐસે।।
એક કહહિં ભલ ભૂપતિ કીન્હા। લોયન લાહુ હમહિ બિધિ દીન્હા।।
તબ નિષાદપતિ ઉર અનુમાના। તરુ સિંસુપા મનોહર જાના।।
લૈ રઘુનાથહિ ઠાઉદેખાવા। કહેઉ રામ સબ ભાિ સુહાવા।।
પુરજન કરિ જોહારુ ઘર આએ। રઘુબર સંધ્યા કરન સિધાએ।।
ગુહસારિ સારી ડસાઈ। કુસ કિસલયમય મૃદુલ સુહાઈ।।
સુચિ ફલ મૂલ મધુર મૃદુ જાની। દોના ભરિ ભરિ રાખેસિ પાની।।

3.1.89

चौपाई
યહ ઉત્સવ દેખિઅ ભરિ લોચન। સોઇ કછુ કરહુ મદન મદ મોચન।
કામુ જારિ રતિ કહુબરુ દીન્હા। કૃપાસિંધુ યહ અતિ ભલ કીન્હા।।
સાસતિ કરિ પુનિ કરહિં પસાઊ। નાથ પ્રભુન્હ કર સહજ સુભાઊ।।
પારબતીં તપુ કીન્હ અપારા। કરહુ તાસુ અબ અંગીકારા।।
સુનિ બિધિ બિનય સમુઝિ પ્રભુ બાની। ઐસેઇ હોઉ કહા સુખુ માની।।
તબ દેવન્હ દુંદુભીં બજાઈં। બરષિ સુમન જય જય સુર સાઈ।।
અવસરુ જાનિ સપ્તરિષિ આએ। તુરતહિં બિધિ ગિરિભવન પઠાએ।।
પ્રથમ ગએ જહરહી ભવાની। બોલે મધુર બચન છલ સાની।।

2.7.89

चौपाई
মৈং পুনি অবধ রহেউকছু কালা৷ দেখেউবালবিনোদ রসালা৷৷
রাম প্রসাদ ভগতি বর পাযউ প্রভু পদ বংদি নিজাশ্রম আযউ৷
তব তে মোহি ন ব্যাপী মাযা৷ জব তে রঘুনাযক অপনাযা৷৷
যহ সব গুপ্ত চরিত মৈং গাবা৷ হরি মাযাজিমি মোহি নচাবা৷৷
নিজ অনুভব অব কহউখগেসা৷ বিনু হরি ভজন ন জাহি কলেসা৷৷
রাম কৃপা বিনু সুনু খগরাঈ৷ জানি ন জাই রাম প্রভুতাঈ৷৷
জানেং বিনু ন হোই পরতীতী৷ বিনু পরতীতি হোই নহিং প্রীতী৷৷
প্রীতি বিনা নহিং ভগতি দিঢ়াঈ৷ জিমি খগপতি জল কৈ চিকনাঈ৷৷

2.6.89

चौपाई
দেবন্হ প্রভুহি পযাদেং দেখা৷ উপজা উর অতি ছোভ বিসেষা৷৷
সুরপতি নিজ রথ তুরত পঠাবা৷ হরষ সহিত মাতলি লৈ আবা৷৷
তেজ পুংজ রথ দিব্য অনূপা৷ হরষি চঢ়ে কোসলপুর ভূপা৷৷
চংচল তুরগ মনোহর চারী৷ অজর অমর মন সম গতিকারী৷৷
রথারূঢ় রঘুনাথহি দেখী৷ ধাএ কপি বলু পাই বিসেষী৷৷
সহী ন জাই কপিন্হ কৈ মারী৷ তব রাবন মাযা বিস্তারী৷৷
সো মাযা রঘুবীরহি বাী৷ লছিমন কপিন্হ সো মানী সাী৷৷
দেখী কপিন্হ নিসাচর অনী৷ অনুজ সহিত বহু কোসলধনী৷৷

2.2.89

चौपाई
রাম লখন সিয রূপ নিহারী৷ কহহিং সপ্রেম গ্রাম নর নারী৷৷
তে পিতু মাতু কহহু সখি কৈসে৷ জিন্হ পঠএ বন বালক ঐসে৷৷
এক কহহিং ভল ভূপতি কীন্হা৷ লোযন লাহু হমহি বিধি দীন্হা৷৷
তব নিষাদপতি উর অনুমানা৷ তরু সিংসুপা মনোহর জানা৷৷
লৈ রঘুনাথহি ঠাউদেখাবা৷ কহেউ রাম সব ভাি সুহাবা৷৷
পুরজন করি জোহারু ঘর আএ৷ রঘুবর সংধ্যা করন সিধাএ৷৷
গুহসারি সারী ডসাঈ৷ কুস কিসলযময মৃদুল সুহাঈ৷৷
সুচি ফল মূল মধুর মৃদু জানী৷ দোনা ভরি ভরি রাখেসি পানী৷৷

2.1.89

चौपाई
যহ উত্সব দেখিঅ ভরি লোচন৷ সোই কছু করহু মদন মদ মোচন৷
কামু জারি রতি কহুবরু দীন্হা৷ কৃপাসিংধু যহ অতি ভল কীন্হা৷৷
সাসতি করি পুনি করহিং পসাঊ৷ নাথ প্রভুন্হ কর সহজ সুভাঊ৷৷
পারবতীং তপু কীন্হ অপারা৷ করহু তাসু অব অংগীকারা৷৷
সুনি বিধি বিনয সমুঝি প্রভু বানী৷ ঐসেই হোউ কহা সুখু মানী৷৷
তব দেবন্হ দুংদুভীং বজাঈং৷ বরষি সুমন জয জয সুর সাঈ৷৷
অবসরু জানি সপ্তরিষি আএ৷ তুরতহিং বিধি গিরিভবন পঠাএ৷৷
প্রথম গএ জহরহী ভবানী৷ বোলে মধুর বচন ছল সানী৷৷

1.7.89

चौपाई
मैं पुनि अवध रहेउँ कछु काला। देखेउँ बालबिनोद रसाला।।
राम प्रसाद भगति बर पायउँ। प्रभु पद बंदि निजाश्रम आयउँ।।
तब ते मोहि न ब्यापी माया। जब ते रघुनायक अपनाया।।
यह सब गुप्त चरित मैं गावा। हरि मायाँ जिमि मोहि नचावा।।
निज अनुभव अब कहउँ खगेसा। बिनु हरि भजन न जाहि कलेसा।।
राम कृपा बिनु सुनु खगराई। जानि न जाइ राम प्रभुताई।।
जानें बिनु न होइ परतीती। बिनु परतीति होइ नहिं प्रीती।।
प्रीति बिना नहिं भगति दिढ़ाई। जिमि खगपति जल कै चिकनाई।।

1.6.89

चौपाई
देवन्ह प्रभुहि पयादें देखा। उपजा उर अति छोभ बिसेषा।।
सुरपति निज रथ तुरत पठावा। हरष सहित मातलि लै आवा।।
तेज पुंज रथ दिब्य अनूपा। हरषि चढ़े कोसलपुर भूपा।।
चंचल तुरग मनोहर चारी। अजर अमर मन सम गतिकारी।।
रथारूढ़ रघुनाथहि देखी। धाए कपि बलु पाइ बिसेषी।।
सही न जाइ कपिन्ह कै मारी। तब रावन माया बिस्तारी।।
सो माया रघुबीरहि बाँची। लछिमन कपिन्ह सो मानी साँची।।
देखी कपिन्ह निसाचर अनी। अनुज सहित बहु कोसलधनी।।

1.2.89

चौपाई
राम लखन सिय रूप निहारी। कहहिं सप्रेम ग्राम नर नारी।।
ते पितु मातु कहहु सखि कैसे। जिन्ह पठए बन बालक ऐसे।।
एक कहहिं भल भूपति कीन्हा। लोयन लाहु हमहि बिधि दीन्हा।।
तब निषादपति उर अनुमाना। तरु सिंसुपा मनोहर जाना।।
लै रघुनाथहि ठाउँ देखावा। कहेउ राम सब भाँति सुहावा।।
पुरजन करि जोहारु घर आए। रघुबर संध्या करन सिधाए।।
गुहँ सँवारि साँथरी डसाई। कुस किसलयमय मृदुल सुहाई।।
सुचि फल मूल मधुर मृदु जानी। दोना भरि भरि राखेसि पानी।।

दोहा/सोरठा

1.1.89

चौपाई
यह उत्सव देखिअ भरि लोचन। सोइ कछु करहु मदन मद मोचन।
कामु जारि रति कहुँ बरु दीन्हा। कृपासिंधु यह अति भल कीन्हा।।
सासति करि पुनि करहिं पसाऊ। नाथ प्रभुन्ह कर सहज सुभाऊ।।
पारबतीं तपु कीन्ह अपारा। करहु तासु अब अंगीकारा।।
सुनि बिधि बिनय समुझि प्रभु बानी। ऐसेइ होउ कहा सुखु मानी।।
तब देवन्ह दुंदुभीं बजाईं। बरषि सुमन जय जय सुर साई।।
अवसरु जानि सप्तरिषि आए। तुरतहिं बिधि गिरिभवन पठाए।।
प्रथम गए जहँ रही भवानी। बोले मधुर बचन छल सानी।।

दोहा/सोरठा

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