96

3.2.96

चौपाई
તુમ્હ પુનિ પિતુ સમ અતિ હિત મોરેં। બિનતી કરઉતાત કર જોરેં।।
સબ બિધિ સોઇ કરતબ્ય તુમ્હારેં। દુખ ન પાવ પિતુ સોચ હમારેં।।
સુનિ રઘુનાથ સચિવ સંબાદૂ। ભયઉ સપરિજન બિકલ નિષાદૂ।।
પુનિ કછુ લખન કહી કટુ બાની। પ્રભુ બરજે બડ઼ અનુચિત જાની।।
સકુચિ રામ નિજ સપથ દેવાઈ। લખન સેસુ કહિઅ જનિ જાઈ।।
કહ સુમંત્રુ પુનિ ભૂપ સેસૂ। સહિ ન સકિહિ સિય બિપિન કલેસૂ।।
જેહિ બિધિ અવધ આવ ફિરિ સીયા। સોઇ રઘુબરહિ તુમ્હહિ કરનીયા।।
નતરુ નિપટ અવલંબ બિહીના। મૈં ન જિઅબ જિમિ જલ બિનુ મીના।।

3.1.96

चौपाई
ભાગિ ભવન પૈઠીં અતિ ત્રાસા। ગએ મહેસુ જહાજનવાસા।।
મૈના હૃદયભયઉ દુખુ ભારી। લીન્હી બોલિ ગિરીસકુમારી।।
અધિક સનેહગોદ બૈઠારી। સ્યામ સરોજ નયન ભરે બારી।।
જેહિં બિધિ તુમ્હહિ રૂપુ અસ દીન્હા। તેહિં જડ઼ બરુ બાઉર કસ કીન્હા।।
લૈ અગવાન બરાતહિ આએ। દિએ સબહિ જનવાસ સુહાએ।।
મૈનાસુભ આરતી સારી। સંગ સુમંગલ ગાવહિં નારી।।
કંચન થાર સોહ બર પાની। પરિછન ચલી હરહિ હરષાની।।
બિકટ બેષ રુદ્રહિ જબ દેખા। અબલન્હ ઉર ભય ભયઉ બિસેષા।।

2.7.96

चौपाई
স্বারথ সা জীব কহুএহা৷ মন ক্রম বচন রাম পদ নেহা৷৷
সোই পাবন সোই সুভগ সরীরা৷ জো তনু পাই ভজিঅ রঘুবীরা৷৷
রাম বিমুখ লহি বিধি সম দেহী৷ কবি কোবিদ ন প্রসংসহিং তেহী৷৷
রাম ভগতি এহিং তন উর জামী৷ তাতে মোহি পরম প্রিয স্বামী৷৷
তজউন তন নিজ ইচ্ছা মরনা৷ তন বিনু বেদ ভজন নহিং বরনা৷৷
প্রথম মোহমোহি বহুত বিগোবা৷ রাম বিমুখ সুখ কবহুন সোবা৷৷
নানা জনম কর্ম পুনি নানা৷ কিএ জোগ জপ তপ মখ দানা৷৷
কবন জোনি জনমেউজহনাহীং৷ মৈং খগেস ভ্রমি ভ্রমি জগ মাহীং৷৷
দেখেউকরি সব করম গোসাঈ৷ সুখী ন ভযউঅবহিং কী নাঈ৷৷

2.6.96

चौपाई
অংতরধান ভযউ ছন একা৷ পুনি প্রগটে খল রূপ অনেকা৷৷
রঘুপতি কটক ভালু কপি জেতে৷ জহতহপ্রগট দসানন তেতে৷৷
দেখে কপিন্হ অমিত দসসীসা৷ জহতহভজে ভালু অরু কীসা৷৷
ভাগে বানর ধরহিং ন ধীরা৷ ত্রাহি ত্রাহি লছিমন রঘুবীরা৷৷
দহদিসি ধাবহিং কোটিন্হ রাবন৷ গর্জহিং ঘোর কঠোর ভযাবন৷৷
ডরে সকল সুর চলে পরাঈ৷ জয কৈ আস তজহু অব ভাঈ৷৷
সব সুর জিতে এক দসকংধর৷ অব বহু ভএ তকহু গিরি কংদর৷৷
রহে বিরংচি সংভু মুনি গ্যানী৷ জিন্হ জিন্হ প্রভু মহিমা কছু জানী৷৷

2.2.96

चौपाई
তুম্হ পুনি পিতু সম অতি হিত মোরেং৷ বিনতী করউতাত কর জোরেং৷৷
সব বিধি সোই করতব্য তুম্হারেং৷ দুখ ন পাব পিতু সোচ হমারেং৷৷
সুনি রঘুনাথ সচিব সংবাদূ৷ ভযউ সপরিজন বিকল নিষাদূ৷৷
পুনি কছু লখন কহী কটু বানী৷ প্রভু বরজে বড় অনুচিত জানী৷৷
সকুচি রাম নিজ সপথ দেবাঈ৷ লখন সেসু কহিঅ জনি জাঈ৷৷
কহ সুমংত্রু পুনি ভূপ সেসূ৷ সহি ন সকিহি সিয বিপিন কলেসূ৷৷
জেহি বিধি অবধ আব ফিরি সীযা৷ সোই রঘুবরহি তুম্হহি করনীযা৷৷
নতরু নিপট অবলংব বিহীনা৷ মৈং ন জিঅব জিমি জল বিনু মীনা৷৷

2.1.96

चौपाई
ভাগি ভবন পৈঠীং অতি ত্রাসা৷ গএ মহেসু জহাজনবাসা৷৷
মৈনা হৃদযভযউ দুখু ভারী৷ লীন্হী বোলি গিরীসকুমারী৷৷
অধিক সনেহগোদ বৈঠারী৷ স্যাম সরোজ নযন ভরে বারী৷৷
জেহিং বিধি তুম্হহি রূপু অস দীন্হা৷ তেহিং জড় বরু বাউর কস কীন্হা৷৷
লৈ অগবান বরাতহি আএ৷ দিএ সবহি জনবাস সুহাএ৷৷
মৈনাসুভ আরতী সারী৷ সংগ সুমংগল গাবহিং নারী৷৷
কংচন থার সোহ বর পানী৷ পরিছন চলী হরহি হরষানী৷৷
বিকট বেষ রুদ্রহি জব দেখা৷ অবলন্হ উর ভয ভযউ বিসেষা৷৷

1.7.96

चौपाई
स्वारथ साँच जीव कहुँ एहा। मन क्रम बचन राम पद नेहा।।
सोइ पावन सोइ सुभग सरीरा। जो तनु पाइ भजिअ रघुबीरा।।
राम बिमुख लहि बिधि सम देही। कबि कोबिद न प्रसंसहिं तेही।।
राम भगति एहिं तन उर जामी। ताते मोहि परम प्रिय स्वामी।।
तजउँ न तन निज इच्छा मरना। तन बिनु बेद भजन नहिं बरना।।
प्रथम मोहँ मोहि बहुत बिगोवा। राम बिमुख सुख कबहुँ न सोवा।।
नाना जनम कर्म पुनि नाना। किए जोग जप तप मख दाना।।
कवन जोनि जनमेउँ जहँ नाहीं। मैं खगेस भ्रमि भ्रमि जग माहीं।।
देखेउँ करि सब करम गोसाई। सुखी न भयउँ अबहिं की नाई।।

1.6.96

चौपाई
अंतरधान भयउ छन एका। पुनि प्रगटे खल रूप अनेका।।
रघुपति कटक भालु कपि जेते। जहँ तहँ प्रगट दसानन तेते।।
देखे कपिन्ह अमित दससीसा। जहँ तहँ भजे भालु अरु कीसा।।
भागे बानर धरहिं न धीरा। त्राहि त्राहि लछिमन रघुबीरा।।
दहँ दिसि धावहिं कोटिन्ह रावन। गर्जहिं घोर कठोर भयावन।।
डरे सकल सुर चले पराई। जय कै आस तजहु अब भाई।।
सब सुर जिते एक दसकंधर। अब बहु भए तकहु गिरि कंदर।।
रहे बिरंचि संभु मुनि ग्यानी। जिन्ह जिन्ह प्रभु महिमा कछु जानी।।

1.2.96

चौपाई
तुम्ह पुनि पितु सम अति हित मोरें। बिनती करउँ तात कर जोरें।।
सब बिधि सोइ करतब्य तुम्हारें। दुख न पाव पितु सोच हमारें।।
सुनि रघुनाथ सचिव संबादू। भयउ सपरिजन बिकल निषादू।।
पुनि कछु लखन कही कटु बानी। प्रभु बरजे बड़ अनुचित जानी।।
सकुचि राम निज सपथ देवाई। लखन सँदेसु कहिअ जनि जाई।।
कह सुमंत्रु पुनि भूप सँदेसू। सहि न सकिहि सिय बिपिन कलेसू।।
जेहि बिधि अवध आव फिरि सीया। सोइ रघुबरहि तुम्हहि करनीया।।
नतरु निपट अवलंब बिहीना। मैं न जिअब जिमि जल बिनु मीना।।

1.1.96

चौपाई
लै अगवान बरातहि आए। दिए सबहि जनवास सुहाए।। 
मैनाँ सुभ आरती सँवारी। संग सुमंगल गावहिं नारी।।
कंचन थार सोह बर पानी। परिछन चली हरहि हरषानी।। 
बिकट बेष रुद्रहि जब देखा। अबलन्ह उर भय भयउ बिसेषा।।
भागि भवन पैठीं अति त्रासा। गए महेसु जहाँ जनवासा।।
मैना हृदयँ भयउ दुखु भारी। लीन्ही बोलि गिरीसकुमारी।।
अधिक सनेहँ गोद बैठारी। स्याम सरोज नयन भरे बारी।।
जेहिं बिधि तुम्हहि रूपु अस दीन्हा। तेहिं जड़ बरु बाउर कस कीन्हा।।

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