97

3.2.97

चौपाई
બિનતી ભૂપ કીન્હ જેહિ ભાી। આરતિ પ્રીતિ ન સો કહિ જાતી।।
પિતુ સેસુ સુનિ કૃપાનિધાના। સિયહિ દીન્હ સિખ કોટિ બિધાના।।
સાસુ સસુર ગુર પ્રિય પરિવારૂ। ફિરતુ ત સબ કર મિટૈ ખભારૂ।।
સુનિ પતિ બચન કહતિ બૈદેહી। સુનહુ પ્રાનપતિ પરમ સનેહી।।
પ્રભુ કરુનામય પરમ બિબેકી। તનુ તજિ રહતિ છા કિમિ છેંકી।।
પ્રભા જાઇ કહભાનુ બિહાઈ। કહચંદ્રિકા ચંદુ તજિ જાઈ।।
પતિહિ પ્રેમમય બિનય સુનાઈ। કહતિ સચિવ સન ગિરા સુહાઈ।।
તુમ્હ પિતુ સસુર સરિસ હિતકારી। ઉતરુ દેઉફિરિ અનુચિત ભારી।।

3.1.97

चौपाई
નારદ કર મૈં કાહ બિગારા। ભવનુ મોર જિન્હ બસત ઉજારા।।
અસ ઉપદેસુ ઉમહિ જિન્હ દીન્હા। બૌરે બરહિ લગિ તપુ કીન્હા।।
સાચેહુઉન્હ કે મોહ ન માયા। ઉદાસીન ધનુ ધામુ ન જાયા।।
પર ઘર ઘાલક લાજ ન ભીરા। બાઝકિ જાન પ્રસવ કૈં પીરા।।
જનનિહિ બિકલ બિલોકિ ભવાની। બોલી જુત બિબેક મૃદુ બાની।।
અસ બિચારિ સોચહિ મતિ માતા। સો ન ટરઇ જો રચઇ બિધાતા।।
કરમ લિખા જૌ બાઉર નાહૂ। તૌ કત દોસુ લગાઇઅ કાહૂ।।
તુમ્હ સન મિટહિં કિ બિધિ કે અંકા। માતુ બ્યર્થ જનિ લેહુ કલંકા।।

2.7.97

चौपाई
তেহি কলিজুগ কোসলপুর জাঈ৷ জন্মত ভযউসূদ্র তনু পাঈ৷৷
সিব সেবক মন ক্রম অরু বানী৷ আন দেব নিংদক অভিমানী৷৷
ধন মদ মত্ত পরম বাচালা৷ উগ্রবুদ্ধি উর দংভ বিসালা৷৷
জদপি রহেউরঘুপতি রজধানী৷ তদপি ন কছু মহিমা তব জানী৷৷
অব জানা মৈং অবধ প্রভাবা৷ নিগমাগম পুরান অস গাবা৷৷
কবনেহুজন্ম অবধ বস জোঈ৷ রাম পরাযন সো পরি হোঈ৷৷
অবধ প্রভাব জান তব প্রানী৷ জব উর বসহিং রামু ধনুপানী৷৷
সো কলিকাল কঠিন উরগারী৷ পাপ পরাযন সব নর নারী৷৷

2.6.97

चौपाई
প্রভু ছন মহুমাযা সব কাটী৷ জিমি রবি উএজাহিং তম ফাটী৷৷
রাবনু একু দেখি সুর হরষে৷ ফিরে সুমন বহু প্রভু পর বরষে৷৷
ভুজ উঠাই রঘুপতি কপি ফেরে৷ ফিরে এক একন্হ তব টেরে৷৷
প্রভু বলু পাই ভালু কপি ধাএ৷ তরল তমকি সংজুগ মহি আএ৷৷
অস্তুতি করত দেবতন্হি দেখেং৷ ভযউএক মৈং ইন্হ কে লেখেং৷৷
সঠহু সদা তুম্হ মোর মরাযল৷ অস কহি কোপি গগন পর ধাযল৷৷
হাহাকার করত সুর ভাগে৷ খলহু জাহু কহমোরেং আগে৷৷
দেখি বিকল সুর অংগদ ধাযো৷ কূদি চরন গহি ভূমি গিরাযো৷৷

2.2.97

चौपाई
বিনতী ভূপ কীন্হ জেহি ভাী৷ আরতি প্রীতি ন সো কহি জাতী৷৷
পিতু সেসু সুনি কৃপানিধানা৷ সিযহি দীন্হ সিখ কোটি বিধানা৷৷
সাসু সসুর গুর প্রিয পরিবারূ৷ ফিরতু ত সব কর মিটৈ খভারূ৷৷
সুনি পতি বচন কহতি বৈদেহী৷ সুনহু প্রানপতি পরম সনেহী৷৷
প্রভু করুনাময পরম বিবেকী৷ তনু তজি রহতি ছা কিমি ছেংকী৷৷
প্রভা জাই কহভানু বিহাঈ৷ কহচংদ্রিকা চংদু তজি জাঈ৷৷
পতিহি প্রেমময বিনয সুনাঈ৷ কহতি সচিব সন গিরা সুহাঈ৷৷
তুম্হ পিতু সসুর সরিস হিতকারী৷ উতরু দেউফিরি অনুচিত ভারী৷৷

2.1.97

चौपाई
নারদ কর মৈং কাহ বিগারা৷ ভবনু মোর জিন্হ বসত উজারা৷৷
অস উপদেসু উমহি জিন্হ দীন্হা৷ বৌরে বরহি লগি তপু কীন্হা৷৷
সাচেহুউন্হ কে মোহ ন মাযা৷ উদাসীন ধনু ধামু ন জাযা৷৷
পর ঘর ঘালক লাজ ন ভীরা৷ বাঝকি জান প্রসব কৈং পীরা৷৷
জননিহি বিকল বিলোকি ভবানী৷ বোলী জুত বিবেক মৃদু বানী৷৷
অস বিচারি সোচহি মতি মাতা৷ সো ন টরই জো রচই বিধাতা৷৷
করম লিখা জৌ বাউর নাহূ৷ তৌ কত দোসু লগাইঅ কাহূ৷৷
তুম্হ সন মিটহিং কি বিধি কে অংকা৷ মাতু ব্যর্থ জনি লেহু কলংকা৷৷

1.7.97

चौपाई
तेहि कलिजुग कोसलपुर जाई। जन्मत भयउँ सूद्र तनु पाई।।
सिव सेवक मन क्रम अरु बानी। आन देव निंदक अभिमानी।।
धन मद मत्त परम बाचाला। उग्रबुद्धि उर दंभ बिसाला।।
जदपि रहेउँ रघुपति रजधानी। तदपि न कछु महिमा तब जानी।।
अब जाना मैं अवध प्रभावा। निगमागम पुरान अस गावा।।
कवनेहुँ जन्म अवध बस जोई। राम परायन सो परि होई।।
अवध प्रभाव जान तब प्रानी। जब उर बसहिं रामु धनुपानी।।
सो कलिकाल कठिन उरगारी। पाप परायन सब नर नारी।।

1.6.97

चौपाई
प्रभु छन महुँ माया सब काटी। जिमि रबि उएँ जाहिं तम फाटी।।
रावनु एकु देखि सुर हरषे। फिरे सुमन बहु प्रभु पर बरषे।।
भुज उठाइ रघुपति कपि फेरे। फिरे एक एकन्ह तब टेरे।।
प्रभु बलु पाइ भालु कपि धाए। तरल तमकि संजुग महि आए।।
अस्तुति करत देवतन्हि देखें। भयउँ एक मैं इन्ह के लेखें।।
सठहु सदा तुम्ह मोर मरायल। अस कहि कोपि गगन पर धायल।।
हाहाकार करत सुर भागे। खलहु जाहु कहँ मोरें आगे।।
देखि बिकल सुर अंगद धायो। कूदि चरन गहि भूमि गिरायो।।

1.2.97

चौपाई
बिनती भूप कीन्ह जेहि भाँती। आरति प्रीति न सो कहि जाती।।
पितु सँदेसु सुनि कृपानिधाना। सियहि दीन्ह सिख कोटि बिधाना।।
सासु ससुर गुर प्रिय परिवारू। फिरतु त सब कर मिटै खभारू।।
सुनि पति बचन कहति बैदेही। सुनहु प्रानपति परम सनेही।।
प्रभु करुनामय परम बिबेकी। तनु तजि रहति छाँह किमि छेंकी।।
प्रभा जाइ कहँ भानु बिहाई। कहँ चंद्रिका चंदु तजि जाई।।
पतिहि प्रेममय बिनय सुनाई। कहति सचिव सन गिरा सुहाई।।
तुम्ह पितु ससुर सरिस हितकारी। उतरु देउँ फिरि अनुचित भारी।।

1.1.97

चौपाई
नारद कर मैं काह बिगारा। भवनु मोर जिन्ह बसत उजारा।।
अस उपदेसु उमहि जिन्ह दीन्हा। बौरे बरहि लगि तपु कीन्हा।।
साचेहुँ उन्ह के मोह न माया। उदासीन धनु धामु न जाया।।
पर घर घालक लाज न भीरा। बाझँ कि जान प्रसव कैं पीरा।।
जननिहि बिकल बिलोकि भवानी। बोली जुत बिबेक मृदु बानी।।
अस बिचारि सोचहि मति माता। सो न टरइ जो रचइ बिधाता।।
करम लिखा जौ बाउर नाहू। तौ कत दोसु लगाइअ काहू।।
तुम्ह सन मिटहिं कि बिधि के अंका। मातु ब्यर्थ जनि लेहु कलंका।।

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