99

3.2.99

चौपाई
પ્રાનનાથ પ્રિય દેવર સાથા। બીર ધુરીન ધરેં ધનુ ભાથા।।
નહિં મગ શ્રમુ ભ્રમુ દુખ મન મોરેં। મોહિ લગિ સોચુ કરિઅ જનિ ભોરેં।।
સુનિ સુમંત્રુ સિય સીતલિ બાની। ભયઉ બિકલ જનુ ફનિ મનિ હાની।।
નયન સૂઝ નહિં સુનઇ ન કાના। કહિ ન સકઇ કછુ અતિ અકુલાના।।
રામ પ્રબોધુ કીન્હ બહુ ભાિ। તદપિ હોતિ નહિં સીતલિ છાતી।।
જતન અનેક સાથ હિત કીન્હે। ઉચિત ઉતર રઘુનંદન દીન્હે।।
મેટિ જાઇ નહિં રામ રજાઈ। કઠિન કરમ ગતિ કછુ ન બસાઈ।।
રામ લખન સિય પદ સિરુ નાઈ। ફિરેઉ બનિક જિમિ મૂર ગવા।।

3.1.99

चौपाई
તબ મયના હિમવંતુ અનંદે। પુનિ પુનિ પારબતી પદ બંદે।।
નારિ પુરુષ સિસુ જુબા સયાને। નગર લોગ સબ અતિ હરષાને।।
લગે હોન પુર મંગલગાના। સજે સબહિ હાટક ઘટ નાના।।
ભાિ અનેક ભઈ જેવરાના। સૂપસાસ્ત્ર જસ કછુ બ્યવહારા।।
સો જેવનાર કિ જાઇ બખાની। બસહિં ભવન જેહિં માતુ ભવાની।।
સાદર બોલે સકલ બરાતી। બિષ્નુ બિરંચિ દેવ સબ જાતી।।
બિબિધિ પાિ બૈઠી જેવનારા। લાગે પરુસન નિપુન સુઆરા।।
નારિબૃંદ સુર જેવ જાની। લગીં દેન ગારીં મૃદુ બાની।।

2.7.99

चौपाई
নারি বিবস নর সকল গোসাঈ৷ নাচহিং নট মর্কট কী নাঈ৷৷
সূদ্র দ্বিজন্হ উপদেসহিং গ্যানা৷ মেলি জনেঊ লেহিং কুদানা৷৷
সব নর কাম লোভ রত ক্রোধী৷ দেব বিপ্র শ্রুতি সংত বিরোধী৷৷
গুন মংদির সুংদর পতি ত্যাগী৷ ভজহিং নারি পর পুরুষ অভাগী৷৷
সৌভাগিনীং বিভূষন হীনা৷ বিধবন্হ কে সিংগার নবীনা৷৷
গুর সিষ বধির অংধ কা লেখা৷ এক ন সুনই এক নহিং দেখা৷৷
হরই সিষ্য ধন সোক ন হরঈ৷ সো গুর ঘোর নরক মহুপরঈ৷৷
মাতু পিতা বালকন্হি বোলাবহিং৷ উদর ভরৈ সোই ধর্ম সিখাবহিং৷৷

2.6.99

चौपाई
তেহী নিসি সীতা পহিং জাঈ৷ ত্রিজটা কহি সব কথা সুনাঈ৷৷
সির ভুজ বাঢ়ি সুনত রিপু কেরী৷ সীতা উর ভই ত্রাস ঘনেরী৷৷
মুখ মলীন উপজী মন চিংতা৷ ত্রিজটা সন বোলী তব সীতা৷৷
হোইহি কহা কহসি কিন মাতা৷ কেহি বিধি মরিহি বিস্ব দুখদাতা৷৷
রঘুপতি সর সির কটেহুন মরঈ৷ বিধি বিপরীত চরিত সব করঈ৷৷
মোর অভাগ্য জিআবত ওহী৷ জেহিং হৌ হরি পদ কমল বিছোহী৷৷
জেহিং কৃত কপট কনক মৃগ ঝূঠা৷ অজহুসো দৈব মোহি পর রূঠা৷৷
জেহিং বিধি মোহি দুখ দুসহ সহাএ৷ লছিমন কহুকটু বচন কহাএ৷৷
রঘুপতি বিরহ সবিষ সর ভারী৷ তকি তকি মার বার বহু মারী৷৷

2.2.99

चौपाई
প্রাননাথ প্রিয দেবর সাথা৷ বীর ধুরীন ধরেং ধনু ভাথা৷৷
নহিং মগ শ্রমু ভ্রমু দুখ মন মোরেং৷ মোহি লগি সোচু করিঅ জনি ভোরেং৷৷
সুনি সুমংত্রু সিয সীতলি বানী৷ ভযউ বিকল জনু ফনি মনি হানী৷৷
নযন সূঝ নহিং সুনই ন কানা৷ কহি ন সকই কছু অতি অকুলানা৷৷
রাম প্রবোধু কীন্হ বহু ভাি৷ তদপি হোতি নহিং সীতলি ছাতী৷৷
জতন অনেক সাথ হিত কীন্হে৷ উচিত উতর রঘুনংদন দীন্হে৷৷
মেটি জাই নহিং রাম রজাঈ৷ কঠিন করম গতি কছু ন বসাঈ৷৷
রাম লখন সিয পদ সিরু নাঈ৷ ফিরেউ বনিক জিমি মূর গবা৷৷

2.1.99

चौपाई
তব মযনা হিমবংতু অনংদে৷ পুনি পুনি পারবতী পদ বংদে৷৷
নারি পুরুষ সিসু জুবা সযানে৷ নগর লোগ সব অতি হরষানে৷৷
লগে হোন পুর মংগলগানা৷ সজে সবহি হাটক ঘট নানা৷৷
ভাি অনেক ভঈ জেবরানা৷ সূপসাস্ত্র জস কছু ব্যবহারা৷৷
সো জেবনার কি জাই বখানী৷ বসহিং ভবন জেহিং মাতু ভবানী৷৷
সাদর বোলে সকল বরাতী৷ বিষ্নু বিরংচি দেব সব জাতী৷৷
বিবিধি পাি বৈঠী জেবনারা৷ লাগে পরুসন নিপুন সুআরা৷৷
নারিবৃংদ সুর জেব জানী৷ লগীং দেন গারীং মৃদু বানী৷৷

1.7.99

चौपाई
नारि बिबस नर सकल गोसाई। नाचहिं नट मर्कट की नाई।।
सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिं ग्याना। मेलि जनेऊ लेहिं कुदाना।।
सब नर काम लोभ रत क्रोधी। देव बिप्र श्रुति संत बिरोधी।।
गुन मंदिर सुंदर पति त्यागी। भजहिं नारि पर पुरुष अभागी।।
सौभागिनीं बिभूषन हीना। बिधवन्ह के सिंगार नबीना।।
गुर सिष बधिर अंध का लेखा। एक न सुनइ एक नहिं देखा।।
हरइ सिष्य धन सोक न हरई। सो गुर घोर नरक महुँ परई।।
मातु पिता बालकन्हि बोलाबहिं। उदर भरै सोइ धर्म सिखावहिं।।

1.6.99

चौपाई
तेही निसि सीता पहिं जाई। त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई।।
सिर भुज बाढ़ि सुनत रिपु केरी। सीता उर भइ त्रास घनेरी।।
मुख मलीन उपजी मन चिंता। त्रिजटा सन बोली तब सीता।।
होइहि कहा कहसि किन माता। केहि बिधि मरिहि बिस्व दुखदाता।।
रघुपति सर सिर कटेहुँ न मरई। बिधि बिपरीत चरित सब करई।।
मोर अभाग्य जिआवत ओही। जेहिं हौ हरि पद कमल बिछोही।।
जेहिं कृत कपट कनक मृग झूठा। अजहुँ सो दैव मोहि पर रूठा।।
जेहिं बिधि मोहि दुख दुसह सहाए। लछिमन कहुँ कटु बचन कहाए।।
रघुपति बिरह सबिष सर भारी। तकि तकि मार बार बहु मारी।।

1.2.99

चौपाई
प्राननाथ प्रिय देवर साथा। बीर धुरीन धरें धनु भाथा।।
नहिं मग श्रमु भ्रमु दुख मन मोरें। मोहि लगि सोचु करिअ जनि भोरें।।
सुनि सुमंत्रु सिय सीतलि बानी। भयउ बिकल जनु फनि मनि हानी।।
नयन सूझ नहिं सुनइ न काना। कहि न सकइ कछु अति अकुलाना।।
राम प्रबोधु कीन्ह बहु भाँति। तदपि होति नहिं सीतलि छाती।।
जतन अनेक साथ हित कीन्हे। उचित उतर रघुनंदन दीन्हे।।
मेटि जाइ नहिं राम रजाई। कठिन करम गति कछु न बसाई।।
राम लखन सिय पद सिरु नाई। फिरेउ बनिक जिमि मूर गवाँई।।

1.1.99

चौपाई
तब मयना हिमवंतु अनंदे। पुनि पुनि पारबती पद बंदे।।
नारि पुरुष सिसु जुबा सयाने। नगर लोग सब अति हरषाने।।
लगे होन पुर मंगलगाना। सजे सबहि हाटक घट नाना।।
भाँति अनेक भई जेवराना। सूपसास्त्र जस कछु ब्यवहारा।।
सो जेवनार कि जाइ बखानी। बसहिं भवन जेहिं मातु भवानी।।
सादर बोले सकल बराती। बिष्नु बिरंचि देव सब जाती।।
बिबिधि पाँति बैठी जेवनारा। लागे परुसन निपुन सुआरा।।
नारिबृंद सुर जेवँत जानी। लगीं देन गारीं मृदु बानी।।

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