9

2.3.9

चौपाई
অস কহি জোগ অগিনি তনু জারা৷ রাম কৃপাবৈকুংঠ সিধারা৷৷
তাতে মুনি হরি লীন ন ভযঊ৷ প্রথমহিং ভেদ ভগতি বর লযঊ৷৷
রিষি নিকায মুনিবর গতি দেখি৷ সুখী ভএ নিজ হৃদযবিসেষী৷৷
অস্তুতি করহিং সকল মুনি বৃংদা৷ জযতি প্রনত হিত করুনা কংদা৷৷
পুনি রঘুনাথ চলে বন আগে৷ মুনিবর বৃংদ বিপুল স লাগে৷৷
অস্থি সমূহ দেখি রঘুরাযা৷ পূছী মুনিন্হ লাগি অতি দাযা৷৷
জানতহুপূছিঅ কস স্বামী৷ সবদরসী তুম্হ অংতরজামী৷৷
নিসিচর নিকর সকল মুনি খাএ৷ সুনি রঘুবীর নযন জল ছাএ৷৷

2.2.9

चौपाई
তব নরনাহবসিষ্ঠু বোলাএ৷ রামধাম সিখ দেন পঠাএ৷৷
গুর আগমনু সুনত রঘুনাথা৷ দ্বার আই পদ নাযউ মাথা৷৷
সাদর অরঘ দেই ঘর আনে৷ সোরহ ভাি পূজি সনমানে৷৷
গহে চরন সিয সহিত বহোরী৷ বোলে রামু কমল কর জোরী৷৷
সেবক সদন স্বামি আগমনূ৷ মংগল মূল অমংগল দমনূ৷৷
তদপি উচিত জনু বোলি সপ্রীতী৷ পঠইঅ কাজ নাথ অসি নীতী৷৷
প্রভুতা তজি প্রভু কীন্হ সনেহূ৷ ভযউ পুনীত আজু যহু গেহূ৷৷
আযসু হোই সো করৌং গোসাঈ৷ সেবক লহই স্বামি সেবকাঈ৷৷

2.1.9

चौपाई
খল পরিহাস হোই হিত মোরা৷ কাক কহহিং কলকংঠ কঠোরা৷৷
হংসহি বক দাদুর চাতকহী৷ হহিং মলিন খল বিমল বতকহী৷৷
কবিত রসিক ন রাম পদ নেহূ৷ তিন্হ কহসুখদ হাস রস এহূ৷৷
ভাষা ভনিতি ভোরি মতি মোরী৷ হিবে জোগ হেং নহিং খোরী৷৷
প্রভু পদ প্রীতি ন সামুঝি নীকী৷ তিন্হহি কথা সুনি লাগহি ফীকী৷৷
হরি হর পদ রতি মতি ন কুতরকী৷ তিন্হ কহুমধুর কথা রঘুবর কী৷৷
রাম ভগতি ভূষিত জিযজানী৷ সুনিহহিং সুজন সরাহি সুবানী৷৷
কবি ন হোউনহিং বচন প্রবীনূ৷ সকল কলা সব বিদ্যা হীনূ৷৷
আখর অরথ অলংকৃতি নানা৷ ছংদ প্রবংধ অনেক বিধানা৷৷

1.7.9

चौपाई
कंचन कलस बिचित्र सँवारे। सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे।।
बंदनवार पताका केतू। सबन्हि बनाए मंगल हेतू।।
बीथीं सकल सुगंध सिंचाई। गजमनि रचि बहु चौक पुराई।।
नाना भाँति सुमंगल साजे। हरषि नगर निसान बहु बाजे।।
जहँ तहँ नारि निछावर करहीं। देहिं असीस हरष उर भरहीं।।
कंचन थार आरती नाना। जुबती सजें करहिं सुभ गाना।।
करहिं आरती आरतिहर कें। रघुकुल कमल बिपिन दिनकर कें।।
पुर सोभा संपति कल्याना। निगम सेष सारदा बखाना।।
तेउ यह चरित देखि ठगि रहहीं। उमा तासु गुन नर किमि कहहीं।।

1.6.9

चौपाई
कहहिं सचिव सठ ठकुरसोहाती। नाथ न पूर आव एहि भाँती।।
बारिधि नाघि एक कपि आवा। तासु चरित मन महुँ सबु गावा।।
छुधा न रही तुम्हहि तब काहू। जारत नगरु कस न धरि खाहू।।
सुनत नीक आगें दुख पावा। सचिवन अस मत प्रभुहि सुनावा।।
जेहिं बारीस बँधायउ हेला। उतरेउ सेन समेत सुबेला।।
सो भनु मनुज खाब हम भाई। बचन कहहिं सब गाल फुलाई।।
तात बचन मम सुनु अति आदर। जनि मन गुनहु मोहि करि कादर।।
प्रिय बानी जे सुनहिं जे कहहीं। ऐसे नर निकाय जग अहहीं।।
बचन परम हित सुनत कठोरे। सुनहिं जे कहहिं ते नर प्रभु थोरे।।

1.5.9

चौपाई
तरु पल्लव महुँ रहा लुकाई। करइ बिचार करौं का भाई।।
तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा।।
बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा।।
कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी।।
तव अनुचरीं करउँ पन मोरा। एक बार बिलोकु मम ओरा।।
तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही।।
सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा।।
अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की।।
सठ सूने हरि आनेहि मोहि। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही।।

1.4.9

चौपाई
परा बिकल महि सर के लागें। पुनि उठि बैठ देखि प्रभु आगें।।
स्याम गात सिर जटा बनाएँ। अरुन नयन सर चाप चढ़ाएँ।।
पुनि पुनि चितइ चरन चित दीन्हा। सुफल जन्म माना प्रभु चीन्हा।।
हृदयँ प्रीति मुख बचन कठोरा। बोला चितइ राम की ओरा।।
धर्म हेतु अवतरेहु गोसाई। मारेहु मोहि ब्याध की नाई।।
मैं बैरी सुग्रीव पिआरा। अवगुन कबन नाथ मोहि मारा।।
अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी।।
इन्हहि कुद्दष्टि बिलोकइ जोई। ताहि बधें कछु पाप न होई।।
मुढ़ तोहि अतिसय अभिमाना। नारि सिखावन करसि न काना।।

1.3.9

चौपाई
अस कहि जोग अगिनि तनु जारा। राम कृपाँ बैकुंठ सिधारा।।
ताते मुनि हरि लीन न भयऊ। प्रथमहिं भेद भगति बर लयऊ।।
रिषि निकाय मुनिबर गति देखि। सुखी भए निज हृदयँ बिसेषी।।
अस्तुति करहिं सकल मुनि बृंदा। जयति प्रनत हित करुना कंदा।।
पुनि रघुनाथ चले बन आगे। मुनिबर बृंद बिपुल सँग लागे।।
अस्थि समूह देखि रघुराया। पूछी मुनिन्ह लागि अति दाया।।
जानतहुँ पूछिअ कस स्वामी। सबदरसी तुम्ह अंतरजामी।।
निसिचर निकर सकल मुनि खाए। सुनि रघुबीर नयन जल छाए।।

दोहा/सोरठा

1.2.9

चौपाई
तब नरनाहँ बसिष्ठु बोलाए। रामधाम सिख देन पठाए।।
गुर आगमनु सुनत रघुनाथा। द्वार आइ पद नायउ माथा।।
सादर अरघ देइ घर आने। सोरह भाँति पूजि सनमाने।।
गहे चरन सिय सहित बहोरी। बोले रामु कमल कर जोरी।।
सेवक सदन स्वामि आगमनू। मंगल मूल अमंगल दमनू।।
तदपि उचित जनु बोलि सप्रीती। पठइअ काज नाथ असि नीती।।
प्रभुता तजि प्रभु कीन्ह सनेहू। भयउ पुनीत आजु यहु गेहू।।
आयसु होइ सो करौं गोसाई। सेवक लहइ स्वामि सेवकाई।।

दोहा/सोरठा

1.1.9

चौपाई
खल परिहास होइ हित मोरा। काक कहहिं कलकंठ कठोरा।।
हंसहि बक दादुर चातकही। हँसहिं मलिन खल बिमल बतकही।।
कबित रसिक न राम पद नेहू। तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू।।
भाषा भनिति भोरि मति मोरी। हँसिबे जोग हँसें नहिं खोरी।।
प्रभु पद प्रीति न सामुझि नीकी। तिन्हहि कथा सुनि लागहि फीकी।।
हरि हर पद रति मति न कुतरकी। तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुवर की।।
राम भगति भूषित जियँ जानी। सुनिहहिं सुजन सराहि सुबानी।।
कबि न होउँ नहिं बचन प्रबीनू। सकल कला सब बिद्या हीनू।।
आखर अरथ अलंकृति नाना। छंद प्रबंध अनेक बिधाना।।

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