1.1.315

चौपाई
जिन्ह कर नामु लेत जग माहीं। सकल अमंगल मूल नसाहीं।।
करतल होहिं पदारथ चारी। तेइ सिय रामु कहेउ कामारी।।
एहि बिधि संभु सुरन्ह समुझावा। पुनि आगें बर बसह चलावा।।
देवन्ह देखे दसरथु जाता। महामोद मन पुलकित गाता।।
साधु समाज संग महिदेवा। जनु तनु धरें करहिं सुख सेवा।।
सोहत साथ सुभग सुत चारी। जनु अपबरग सकल तनुधारी।।
मरकत कनक बरन बर जोरी। देखि सुरन्ह भै प्रीति न थोरी।।
पुनि रामहि बिलोकि हियँ हरषे। नृपहि सराहि सुमन तिन्ह बरषे।।

दोहा/सोरठा
राम रूपु नख सिख सुभग बारहिं बार निहारि।
पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरारि।।315।।

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