1.1.337

चौपाई
अस कहि रही चरन गहि रानी। प्रेम पंक जनु गिरा समानी।।
सुनि सनेहसानी बर बानी। बहुबिधि राम सासु सनमानी।।
राम बिदा मागत कर जोरी। कीन्ह प्रनामु बहोरि बहोरी।।
पाइ असीस बहुरि सिरु नाई। भाइन्ह सहित चले रघुराई।।
मंजु मधुर मूरति उर आनी। भई सनेह सिथिल सब रानी।।
पुनि धीरजु धरि कुअँरि हँकारी। बार बार भेटहिं महतारीं।।
पहुँचावहिं फिरि मिलहिं बहोरी। बढ़ी परस्पर प्रीति न थोरी।।
पुनि पुनि मिलत सखिन्ह बिलगाई। बाल बच्छ जिमि धेनु लवाई।।

दोहा/सोरठा
प्रेमबिबस नर नारि सब सखिन्ह सहित रनिवासु।
मानहुँ कीन्ह बिदेहपुर करुनाँ बिरहँ निवासु।।337।।

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