1.1.352

चौपाई
जो बसिष्ठ अनुसासन दीन्ही। लोक बेद बिधि सादर कीन्ही।।
भूसुर भीर देखि सब रानी। सादर उठीं भाग्य बड़ जानी।।
पाय पखारि सकल अन्हवाए। पूजि भली बिधि भूप जेवाँए।।
आदर दान प्रेम परिपोषे। देत असीस चले मन तोषे।।
बहु बिधि कीन्हि गाधिसुत पूजा। नाथ मोहि सम धन्य न दूजा।।
कीन्हि प्रसंसा भूपति भूरी। रानिन्ह सहित लीन्हि पग धूरी।।
भीतर भवन दीन्ह बर बासु। मन जोगवत रह नृप रनिवासू।।
पूजे गुर पद कमल बहोरी। कीन्हि बिनय उर प्रीति न थोरी।।

दोहा/सोरठा
बधुन्ह समेत कुमार सब रानिन्ह सहित महीसु।
पुनि पुनि बंदत गुर चरन देत असीस मुनीसु।।352।।

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