1.2.208

चौपाई
सो तुम्हार धनु जीवनु प्राना। भूरिभाग को तुम्हहि समाना।।
यह तम्हार आचरजु न ताता। दसरथ सुअन राम प्रिय भ्राता।।
सुनहु भरत रघुबर मन माहीं। पेम पात्रु तुम्ह सम कोउ नाहीं।।
लखन राम सीतहि अति प्रीती। निसि सब तुम्हहि सराहत बीती।।
जाना मरमु नहात प्रयागा। मगन होहिं तुम्हरें अनुरागा।।
तुम्ह पर अस सनेहु रघुबर कें। सुख जीवन जग जस जड़ नर कें।।
यह न अधिक रघुबीर बड़ाई। प्रनत कुटुंब पाल रघुराई।।
तुम्ह तौ भरत मोर मत एहू। धरें देह जनु राम सनेहू।।

दोहा/सोरठा
तुम्ह कहँ भरत कलंक यह हम सब कहँ उपदेसु।
राम भगति रस सिद्धि हित भा यह समउ गनेसु।।208।।

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