1.2.300

चौपाई
सोक सनेहँ कि बाल सुभाएँ। आयउँ लाइ रजायसु बाएँ।।
तबहुँ कृपाल हेरि निज ओरा। सबहि भाँति भल मानेउ मोरा।।
देखेउँ पाय सुमंगल मूला। जानेउँ स्वामि सहज अनुकूला।।
बड़ें समाज बिलोकेउँ भागू। बड़ीं चूक साहिब अनुरागू।।
कृपा अनुग्रह अंगु अघाई। कीन्हि कृपानिधि सब अधिकाई।।
राखा मोर दुलार गोसाईं। अपनें सील सुभायँ भलाईं।।
नाथ निपट मैं कीन्हि ढिठाई। स्वामि समाज सकोच बिहाई।।
अबिनय बिनय जथारुचि बानी। छमिहि देउ अति आरति जानी।।

दोहा/सोरठा
सुह्रद सुजान सुसाहिबहि बहुत कहब बड़ि खोरि।
आयसु देइअ देव अब सबइ सुधारी मोरि।।300।।

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