1.2.315

चौपाई
तात तुम्हारि मोरि परिजन की। चिंता गुरहि नृपहि घर बन की।।
माथे पर गुर मुनि मिथिलेसू। हमहि तुम्हहि सपनेहुँ न कलेसू।।
मोर तुम्हार परम पुरुषारथु। स्वारथु सुजसु धरमु परमारथु।।
पितु आयसु पालिहिं दुहु भाई। लोक बेद भल भूप भलाई।।
गुर पितु मातु स्वामि सिख पालें। चलेहुँ कुमग पग परहिं न खालें।।
अस बिचारि सब सोच बिहाई। पालहु अवध अवधि भरि जाई।।
देसु कोसु परिजन परिवारू। गुर पद रजहिं लाग छरुभारू।।
तुम्ह मुनि मातु सचिव सिख मानी। पालेहु पुहुमि प्रजा रजधानी।।

दोहा/सोरठा
मुखिआ मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक।
पालइ पोषइ सकल अँग तुलसी सहित बिबेक।।315।।

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