1.2.320

चौपाई
परिजन मातु पितहि मिलि सीता। फिरी प्रानप्रिय प्रेम पुनीता।।
करि प्रनामु भेंटी सब सासू। प्रीति कहत कबि हियँ न हुलासू।।
सुनि सिख अभिमत आसिष पाई। रही सीय दुहु प्रीति समाई।।
रघुपति पटु पालकीं मगाईं। करि प्रबोधु सब मातु चढ़ाई।।
बार बार हिलि मिलि दुहु भाई। सम सनेहँ जननी पहुँचाई।।
साजि बाजि गज बाहन नाना। भरत भूप दल कीन्ह पयाना।।
हृदयँ रामु सिय लखन समेता। चले जाहिं सब लोग अचेता।।
बसह बाजि गज पसु हियँ हारें। चले जाहिं परबस मन मारें।।

दोहा/सोरठा
गुर गुरतिय पद बंदि प्रभु सीता लखन समेत।
फिरे हरष बिसमय सहित आए परन निकेत।।320।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: