devanagari

1.2.119

चौपाई
फिरत नारि नर अति पछिताहीं। देअहि दोषु देहिं मन माहीं।।
सहित बिषाद परसपर कहहीं। बिधि करतब उलटे सब अहहीं।।
निपट निरंकुस निठुर निसंकू। जेहिं ससि कीन्ह सरुज सकलंकू।।
रूख कलपतरु सागरु खारा। तेहिं पठए बन राजकुमारा।।
जौं पे इन्हहि दीन्ह बनबासू। कीन्ह बादि बिधि भोग बिलासू।।
ए बिचरहिं मग बिनु पदत्राना। रचे बादि बिधि बाहन नाना।।
ए महि परहिं डासि कुस पाता। सुभग सेज कत सृजत बिधाता।।
तरुबर बास इन्हहि बिधि दीन्हा। धवल धाम रचि रचि श्रमु कीन्हा।।

1.2.118

चौपाई
पारबती सम पतिप्रिय होहू। देबि न हम पर छाड़ब छोहू।।
पुनि पुनि बिनय करिअ कर जोरी। जौं एहि मारग फिरिअ बहोरी।।
दरसनु देब जानि निज दासी। लखीं सीयँ सब प्रेम पिआसी।।
मधुर बचन कहि कहि परितोषीं। जनु कुमुदिनीं कौमुदीं पोषीं।।
तबहिं लखन रघुबर रुख जानी। पूँछेउ मगु लोगन्हि मृदु बानी।।
सुनत नारि नर भए दुखारी। पुलकित गात बिलोचन बारी।।
मिटा मोदु मन भए मलीने। बिधि निधि दीन्ह लेत जनु छीने।।
समुझि करम गति धीरजु कीन्हा। सोधि सुगम मगु तिन्ह कहि दीन्हा।।

1.2.117

चौपाई
कोटि मनोज लजावनिहारे। सुमुखि कहहु को आहिं तुम्हारे।।
सुनि सनेहमय मंजुल बानी। सकुची सिय मन महुँ मुसुकानी।।
तिन्हहि बिलोकि बिलोकति धरनी। दुहुँ सकोच सकुचित बरबरनी।।
सकुचि सप्रेम बाल मृग नयनी। बोली मधुर बचन पिकबयनी।।
सहज सुभाय सुभग तन गोरे। नामु लखनु लघु देवर मोरे।।
बहुरि बदनु बिधु अंचल ढाँकी। पिय तन चितइ भौंह करि बाँकी।।
खंजन मंजु तिरीछे नयननि। निज पति कहेउ तिन्हहि सियँ सयननि।।
भइ मुदित सब ग्रामबधूटीं। रंकन्ह राय रासि जनु लूटीं।।

1.2.116

चौपाई
बरनि न जाइ मनोहर जोरी। सोभा बहुत थोरि मति मोरी।।
राम लखन सिय सुंदरताई। सब चितवहिं चित मन मति लाई।।
थके नारि नर प्रेम पिआसे। मनहुँ मृगी मृग देखि दिआ से।।
सीय समीप ग्रामतिय जाहीं। पूँछत अति सनेहँ सकुचाहीं।।
बार बार सब लागहिं पाएँ। कहहिं बचन मृदु सरल सुभाएँ।।
राजकुमारि बिनय हम करहीं। तिय सुभायँ कछु पूँछत डरहीं।
स्वामिनि अबिनय छमबि हमारी। बिलगु न मानब जानि गवाँरी।।
राजकुअँर दोउ सहज सलोने। इन्ह तें लही दुति मरकत सोने।।

दोहा/सोरठा

1.2.115

चौपाई
एक कलस भरि आनहिं पानी। अँचइअ नाथ कहहिं मृदु बानी।।
सुनि प्रिय बचन प्रीति अति देखी। राम कृपाल सुसील बिसेषी।।
जानी श्रमित सीय मन माहीं। घरिक बिलंबु कीन्ह बट छाहीं।।
मुदित नारि नर देखहिं सोभा। रूप अनूप नयन मनु लोभा।।
एकटक सब सोहहिं चहुँ ओरा। रामचंद्र मुख चंद चकोरा।।
तरुन तमाल बरन तनु सोहा। देखत कोटि मदन मनु मोहा।।
दामिनि बरन लखन सुठि नीके। नख सिख सुभग भावते जी के।।
मुनिपट कटिन्ह कसें तूनीरा। सोहहिं कर कमलिनि धनु तीरा।।

दोहा/सोरठा

1.2.114

चौपाई
सीता लखन सहित रघुराई। गाँव निकट जब निकसहिं जाई।।
सुनि सब बाल बृद्ध नर नारी। चलहिं तुरत गृहकाजु बिसारी।।
राम लखन सिय रूप निहारी। पाइ नयनफलु होहिं सुखारी।।
सजल बिलोचन पुलक सरीरा। सब भए मगन देखि दोउ बीरा।।
बरनि न जाइ दसा तिन्ह केरी। लहि जनु रंकन्ह सुरमनि ढेरी।।
एकन्ह एक बोलि सिख देहीं। लोचन लाहु लेहु छन एहीं।।
रामहि देखि एक अनुरागे। चितवत चले जाहिं सँग लागे।।
एक नयन मग छबि उर आनी। होहिं सिथिल तन मन बर बानी।।

दोहा/सोरठा

1.2.113

चौपाई
जे पुर गाँव बसहिं मग माहीं। तिन्हहि नाग सुर नगर सिहाहीं।।
केहि सुकृतीं केहि घरीं बसाए। धन्य पुन्यमय परम सुहाए।।
जहँ जहँ राम चरन चलि जाहीं। तिन्ह समान अमरावति नाहीं।।
पुन्यपुंज मग निकट निवासी। तिन्हहि सराहहिं सुरपुरबासी।।
जे भरि नयन बिलोकहिं रामहि। सीता लखन सहित घनस्यामहि।।
जे सर सरित राम अवगाहहिं। तिन्हहि देव सर सरित सराहहिं।।
जेहि तरु तर प्रभु बैठहिं जाई। करहिं कलपतरु तासु बड़ाई।।
परसि राम पद पदुम परागा। मानति भूमि भूरि निज भागा।।

1.2.112

चौपाई
पुनि सियँ राम लखन कर जोरी। जमुनहि कीन्ह प्रनामु बहोरी।।
चले ससीय मुदित दोउ भाई। रबितनुजा कइ करत बड़ाई।।
पथिक अनेक मिलहिं मग जाता। कहहिं सप्रेम देखि दोउ भ्राता।।
राज लखन सब अंग तुम्हारें। देखि सोचु अति हृदय हमारें।।
मारग चलहु पयादेहि पाएँ। ज्योतिषु झूठ हमारें भाएँ।।
अगमु पंथ गिरि कानन भारी। तेहि महँ साथ नारि सुकुमारी।।
करि केहरि बन जाइ न जोई। हम सँग चलहि जो आयसु होई।।
जाब जहाँ लगि तहँ पहुँचाई। फिरब बहोरि तुम्हहि सिरु नाई।।

दोहा/सोरठा

1.2.111

चौपाई
राम सप्रेम पुलकि उर लावा। परम रंक जनु पारसु पावा।।
मनहुँ प्रेमु परमारथु दोऊ। मिलत धरे तन कह सबु कोऊ।।
बहुरि लखन पायन्ह सोइ लागा। लीन्ह उठाइ उमगि अनुरागा।।
पुनि सिय चरन धूरि धरि सीसा। जननि जानि सिसु दीन्हि असीसा।।
कीन्ह निषाद दंडवत तेही। मिलेउ मुदित लखि राम सनेही।।
पिअत नयन पुट रूपु पियूषा। मुदित सुअसनु पाइ जिमि भूखा।।
ते पितु मातु कहहु सखि कैसे। जिन्ह पठए बन बालक ऐसे।।
राम लखन सिय रूपु निहारी। होहिं सनेह बिकल नर नारी।।

दोहा/सोरठा

1.2.110

चौपाई
सुनत तीरवासी नर नारी। धाए निज निज काज बिसारी।।
लखन राम सिय सुन्दरताई। देखि करहिं निज भाग्य बड़ाई।।
अति लालसा बसहिं मन माहीं। नाउँ गाउँ बूझत सकुचाहीं।।
जे तिन्ह महुँ बयबिरिध सयाने। तिन्ह करि जुगुति रामु पहिचाने।।
सकल कथा तिन्ह सबहि सुनाई। बनहि चले पितु आयसु पाई।।
सुनि सबिषाद सकल पछिताहीं। रानी रायँ कीन्ह भल नाहीं।।
तेहि अवसर एक तापसु आवा। तेजपुंज लघुबयस सुहावा।।
कवि अलखित गति बेषु बिरागी। मन क्रम बचन राम अनुरागी।।

दोहा/सोरठा

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