1.1.282

चौपाई
देखि कुठार बान धनु धारी। भै लरिकहि रिस बीरु बिचारी।।
नामु जान पै तुम्हहि न चीन्हा। बंस सुभायँ उतरु तेंहिं दीन्हा।।
जौं तुम्ह औतेहु मुनि की नाईं। पद रज सिर सिसु धरत गोसाईं।।
छमहु चूक अनजानत केरी। चहिअ बिप्र उर कृपा घनेरी।।
हमहि तुम्हहि सरिबरि कसि नाथा।।कहहु न कहाँ चरन कहँ माथा।।
राम मात्र लघु नाम हमारा। परसु सहित बड़ नाम तोहारा।।
देव एकु गुनु धनुष हमारें। नव गुन परम पुनीत तुम्हारें।।
सब प्रकार हम तुम्ह सन हारे। छमहु बिप्र अपराध हमारे।।

दोहा/सोरठा
बार बार मुनि बिप्रबर कहा राम सन राम।
बोले भृगुपति सरुष हसि तहूँ बंधु सम बाम।।282।।

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