चौपाई
जनक सनेहु सीलु करतूती। नृपु सब भाँति सराह बिभूती।।
दिन उठि बिदा अवधपति मागा। राखहिं जनकु सहित अनुरागा।।
नित नूतन आदरु अधिकाई। दिन प्रति सहस भाँति पहुनाई।।
नित नव नगर अनंद उछाहू। दसरथ गवनु सोहाइ न काहू।।
बहुत दिवस बीते एहि भाँती। जनु सनेह रजु बँधे बराती।।
कौसिक सतानंद तब जाई। कहा बिदेह नृपहि समुझाई।।
अब दसरथ कहँ आयसु देहू। जद्यपि छाड़ि न सकहु सनेहू।।
भलेहिं नाथ कहि सचिव बोलाए। कहि जय जीव सीस तिन्ह नाए।।
दोहा/सोरठा
अवधनाथु चाहत चलन भीतर करहु जनाउ।
भए प्रेमबस सचिव सुनि बिप्र सभासद राउ।।332।।