चौपाई
देखि राम छबि अति अनुरागीं। प्रेमबिबस पुनि पुनि पद लागीं।।
रही न लाज प्रीति उर छाई। सहज सनेहु बरनि किमि जाई।।
भाइन्ह सहित उबटि अन्हवाए। छरस असन अति हेतु जेवाँए।।
बोले रामु सुअवसरु जानी। सील सनेह सकुचमय बानी।।
राउ अवधपुर चहत सिधाए। बिदा होन हम इहाँ पठाए।।
मातु मुदित मन आयसु देहू। बालक जानि करब नित नेहू।।
सुनत बचन बिलखेउ रनिवासू। बोलि न सकहिं प्रेमबस सासू।।
हृदयँ लगाइ कुअँरि सब लीन्ही। पतिन्ह सौंपि बिनती अति कीन्ही।।
छंद
करि बिनय सिय रामहि समरपी जोरि कर पुनि पुनि कहै।
बलि जाँउ तात सुजान तुम्ह कहुँ बिदित गति सब की अहै।।
परिवार पुरजन मोहि राजहि प्रानप्रिय सिय जानिबी।
तुलसीस सीलु सनेहु लखि निज किंकरी करि मानिबी।।
दोहा/सोरठा
तुम्ह परिपूरन काम जान सिरोमनि भावप्रिय।
जन गुन गाहक राम दोष दलन करुनायतन।।336।।